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यशवंतराव राष्ट्रीय व्यक्तिमत्त्व-सुसंस्कृत रसिक व्यक्तिमत्त्व-ch ३१

३१. व्यक्तित्व का सुगंध (अटलबिहारी वाजपेयी)

देवराष्ट्र से महाराष्ट्र, और महाराष्ट्र से भारत राष्ट्र यह किसी एक सामान्य व्यक्ति की असामान्य जीवन-यात्रा की कीर्तिकथा मात्र नाहीं, यह भारतीय लोकतंत्र की गौरवगाथा है ।

स्वाधीनता के संघर्ष ने सभी भारतीयों को, फिर वे निर्धन हों या धनवान, ग्रामीण हों या शहरी, उच्चवर्णीय हों या सामाजिक दृष्टि से दलित, त्याग और कष्ट सहन का समान अवसर प्रदान किया था ।  स्वाधीनता के बाद वयस्क मताधिकार पर आधारित लोकतंत्र की स्थापना ने सैंकडों वर्षों से जमी हुई सामाजिक जडता को जड से हिला दिया और गांव के गरीब तथा साधनविहीन तरुण के लिए भी उज्ज्वल भविष्य के रुद्ध द्वार खोल दिए ।

चार वर्ष की अत्यधिक छोटी-सी उम्र में जो बालक पितृस्नेह की छाया से वंचित हो गया, जिसके हितैषियों का सबसे बडा सपना यह था कि उनका लाडला एक दिन मामलेदार बनेगा, वह बालक आर्थिक, सामाजिक और शिक्षा संबंधी सभी सीमाओं को लांघता हुआ एक दिन राष्ट्रीय नेताओं में मूर्धन्य स्थान प्राप्‍त कर योग्य प्रशासक तथा चतुन राजनेता के रूप में विपुल कीर्ति अर्जित करेगा, यह शायद ही किसी ज्योतिषाचार्य की भविष्यवाणी का विषय रहा हो ।

श्री यशवंतराव चव्हाण उन बिरले व्यक्तियों में से थे जो अपना भविष्य आप गढते हैं ।  जीवन के धरातल पर धडे होकर उन्होंने संस्कारक्षम मन, श्रमसिद्ध शरीर और कुछ करने की संकल्पशक्ति के बदल पर, उत्कर्ष के एक-एक सोपान को पार कर नेतृत्व के शिखर तक पहुंचने में सफलता पाई ।  श्री चव्हाण की यशस्वी जीवनयात्रा उन सभी नौजवानों के लिए प्रेरणादायक हो सकती है जो आज केवल इसलिए हताश या निराश है क्योंकि वे किसी बडे खानदान से संबंधित नही हैं ।

२३ जनवरी, १९६३

कम्युनिस्ट चीन के हाथों भारतीय सेनाओं की भारी पराजय से उत्पन्न राष्ट्रीय अपमान के घाव अभी पूरी तरह भरे  नहीं थे ।  प्रधानमंत्री श्री नेहरू की अनिच्छा के बावजूद श्री कृष्ण मेनन को रक्षा मंत्री के पद से हटना पडा था ।  श्री यशवंतराव चव्हाण नए रक्षा मंत्री बने थे ।  उनकी नियुक्ति का व्यापक स्वागत हुआ था ।  कुछ पत्रों ने तो यहां तक लिखा था कि हिमालय की सहायता के लिए सह्याद्रि आ गया है ।

गणतंत्र दिवस के अवसर पर प्रतिवर्ष की भांति उस वर्ष भी दिल्ली प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन की ओर से एक अखिल भारतीय कवि सम्मेलन का आयोजन हुआ था ।  कवि सम्मेलन का स्थान लाल किले से बदलकर रामलीला मैदान कर दिया था ।  सम्मेलन का उद्धाटन करने के लिए श्री यशवन्तराव चव्हाण आमंत्रित थे ।  रक्षा मंत्री का दायित्व संभालने के बाद शायद भारत की राजधानी में यह उनका पहला सार्वजनिक कार्यक्रम था ।  कवियों को सुनने के साथ-साथ दिल्ली के नागरिकों में नये रखा मंत्री को देखने और सुनने की भी उत्सुकता थी ।  राष्ट्र की रक्षा के लिए बंदूक उठाने वाले और पहाडी पगडंडियों को पार करने के लिए छडी हाथ में धारण करके चलनेवाले श्री यशवन्तराव चव्हाण का रसों के सागर में अवगाहन करने वाले कवियों से क्या सम्बन्ध ?  श्री चव्हाण ने कवि सम्मेलन में आने का निमंत्रण क्यों माना ?  मराठी भाषी श्री चव्हाण हिन्दी के कवि सम्मेलन में क्या कहेंगे, किन शब्दों में कहेंगे ?

रामलीला मैदान में बना पंडाल खचाखच भरा था ।   श्री चव्हाण की प्रतीक्षा हो रही थी ।  श्री चव्हाण संयोजकों के द्वारा निर्धारित ठीक समयपर पहुँचे ।  उनके ऊंचे तथा भरेपूरे डीलडौल ने दर्शकों को प्रभावित किया ।  अपने संक्षिप्‍त भाषण में श्री चव्हाण ने आयोजकों के प्रति आभार प्रकट किया और कवियों को अपनी रचनाओं द्वारा जवानों तथा जनता का मनोबल बढाने के लिए धन्यवाद दिया ।  चीन के साथ हुए सीमा संघर्ष का उल्लेख करते हुए श्री चव्हाण ने कहा कि हमें हिम्मत नहीं हारना चाहिए ।  उन्होंने यह भी कहा कि अगर चीन, चीन है तो भारत प्राचीन है ।

श्री चव्हाण के इस वाक्य को सुनकर सारी सभा में बिजली-सी दौड गई ।  पंडाल तालियों की गडगडाहट से गूंज उठा ।  औरों से वाह-वाह सुनने के आदी कवि भी वाह-वाह कर उठे ।  श्री चव्हाण से लोगों ने जो अपेक्षाएं की थी, पूरी हई वे यदि वे अन्य राजनीतिक नेताओं की तरह से लम्बा भाषण देने की भूल कर बैठते तो उन्हें कठिनाई का सामना करना पडता ।  यदि वे संक्षिप्‍त भाषण देते, किन्तु उसमें कोई मर्मस्पर्शी बात न करते, तो भी उनका प्रभाव नहीं जमता ।  चीन के साथ प्राचीन की पुट जोडकर उन्होंने बता दिया कि उनकी खुरदरी काया में एक रसिक हृदय धडक रहा है ।  उन्होंने इस बात का भी संकेत दे दिया कि राष्ट्र की नाडी पर उनका हाथ है ।