१४८. मैं सेवा में हाजीर था – गंगाराम (साहेबांचा नोकर)
मै थानेश्वर शर्मा। सन १९६३ से साहब और बाईजी की सेवा मे हाजीर हुआ। मै उस वक्त छोटा ही था। धीरे धीरे मुझे वहाँ का अनुभव होता रहा। और माँ-बाप की तरह मुझे प्यार मिलता रहा। दिन बीतते - मुझे अपना घर और माँ-बाप का खयाल नही आया। साहब और बाईजी बहुतही नम्र स्वभाव के थे। उनके सभी के साथ अच्छे बर्ताव थे और प्यार से सभी लोगों ने उन्हे चाहा है। उस समय साहब गृहमंत्री थे। उन्होने कभी भी हमे अपने नौकरी की तरह नही बल्कि सगे बच्चों से भी ज्यादा चाहा है। जब भी साहब और बाईजी टूरपर जाते थे तो कहते थे कि घर का ख्याल रखना। उन्होंने कभी भी हमे किसी चीज की कमी महसूस होने नही दी। और हम भी १२ महिने हमेशा रात दिन उनकी सेवा मे लगे रहे। और बाईजी यह कहती थी की जब तक हम है तुम चिंता मत करना। अचानक दो तीन दिन बिमार होनेसे उनका १ जून १९८३ मे निधन हो गया। बाईजी अपने जीवन मे बीती हुई बाते बताती थी। फिर साहब अकेलेही रह गए। साहब बाईजी के रात दिन सेवा करते थे। साहब के रिश्तेदार आते थे और चले जाते थे। हमने साहब को बाई साहेब की कमी महसूस होने नही दी।
सन १९८४ मे २२ नवम्बर की रात को साहब की तबियत अचानक खराब हो गई। और २५ नवम्बर की शाम को उनका स्वर्गवास हो गया। और हम सब बेघर हो गए। साहबका पार्थिव शरीर को हम बाहर लेकर आए और कोठी बंद कर दी। उसके बाद उनके रिश्तेदार ५ फरवरी १९८५ को आए और ६-७ दिन में सामान लेकर चले गये। और हमने उन्हे कहाँ की हमारे लिए कुछ करिये तो उन्होने कहाँ की हम क्या कर सकते है। अब तो साहब गुजर गये है। लेकिन साहब और बाईजी की कृपा से हमे दो वक्त की रोटी तो मिलती है।
सन १९६३ से लेकर १९८४ तक हमे उनके साथ रहते हुए ही गए है। और हमारी इमानदारी, और सच्चा प्यार उनके साथ है। वे हमारे लिए अपना आशीर्वाद छोड गए है। यही भविष्य के लिए अच्छा है।
हमेशा साहब और बाईजी गंगा कहते थे। लेकिन मेरा नाम थानेश्वर शर्मा है।