अधुनिक महाराष्ट्र के शिल्पकार-६०

औद्योगिक उपनिवेश की स्थापना

राज्य में औद्योगिक उपनिवेश स्थापन करने की एक सर्वंकष योजना उस समय बम्बई राज्य सरकारने बनायी । शासन के साथ नगरपालिका, सहकारी संस्था और निजी उद्योग इन सब ने इस काम में सहयोग करना चाहिए ऐसी यशवंतरावजी की धारणा थी ।  अशासकीय संस्था को औद्योगिक उपनिवेश स्थापित करने के लिए अनुमति देनेवाला पहला बम्बई राज्य है । उस समय बम्बई राज्य में १५ औद्योगिक उपनिवेश स्थापन करने का तय किया गया । गंदी बस्तियाँ और बेकारी दूर करने की दृष्टि से घनी लोग बस्ती के शहरों में औद्योगिक उपनिवेश स्थापन करने की यह योजना थी । पानी, नाले, रेल सायडिंग, रास्ते, बिजली आदि सुविधाएँ इन उपनिवेश में करनी थीं । कोल्हापूर में उद्यमनगर और पुणे के हडपसर में उपनिवेश की स्थापना करने की योजना प्रत्यक्ष में साकार हो गयी । थोडे ही दिनों में चिंचवड, पिंपरी, भोसरी विभाग में ऐसे उपनिवेश स्थापित किए गये । छोटे और घरेलू उद्योग के लिए बॉम्बे स्टेट फायनान्शियल कार्पोरेशन की ओर से कर्ज देने की व्यवस्था की गयी।

सहकार को प्रेरणा

सहकारी क्षेत्र विस्तृत करने के लिए और अनेक ग्रामीण जीवन की परिस्थिति में सुधार करने के लिए उन्होंने प्रेरणा दी । खेती के लिए कर्ज की पूर्ति करना, खेती के लिए और घरेलू उपयोग के लिए लगनेवाले वस्तु की बिक्री, खेती विकास, खेत माल की बिक्री, दुग्ध उत्पादकों की संघटना ऐसे विविध काम यशवंतरावजी के शासन ने शुरू किये । गृह निर्माण के सहकारी संस्था को प्रेरणा दी । इसलिए सहकारी आंदोलन देहात से शहर तक आ पहुँचा । ग्रामीण भागों में समाज सुधार के लिए उन्हें कर्जपूर्ति की सुविधा उन्होंने सहकारी बँक, भूविकास बँक, प्राथमिक भूविकास बँक के द्वारा कर दी । अगस्त १९५७ में यशवंतरावजी के सरकार ने राज्य में १८ सहकारी शक्कर कारखानों को दर्ज कर के देश में अग्रेसरत्व प्रस्थापित किया । नये शक्कर कारखाने शुरू करने के लिए शासन ने पूँजी की व्यवस्था की । आज शक्कर कारखानों के संबंध में महाराष्ट्र को अग्रेसरत्व का जो मान-सम्मान मिला है, उसका श्रेय यशवंतरावजी के उस समय की नीति को है ।  यशवंतरावजी ने सहकारविषयक एक विधेयक तैयार करके वह विधानसभा में संमत कर लिया । इस विधेयक से सहकारी संस्था स्थापन करने में लचीलापन आ गया ।

हल चलाएगा वही जमीनदार (मालिक)

किसान ही महाराष्ट्र का प्राण और वही महाराष्ट्र का राज्यकर्ता है, ऐसी यशवंतरावजी की धारणा थी । बम्बई राज्य ने नया काश्तकार कानून स्वीकार कर जो खेती करता है उसकी जमीन होती है इस तत्त्व का स्वीकार किया । इसलिए महाराष्ट्र के खेती क्षेत्र में और जमीन के मालिक के क्षेत्र में प्रचंड क्रांति हुई । इसलिए सर्वसामान्य किसान सरकार की ओर एक अपनत्व की दृष्टि से देखने लगा । १ अप्रेल १९५९ से टुकडेबंदी और टुकडे जोड यह कानून प्रत्यक्ष अमल में लाया । जमीन का क्षेत्र सलग होने की दृष्टि से इस कानून का उचित परिणाम हुआ । कानून बनाकर सरकारने जहागिरदारी पद्धती नष्ट की ।  खेत जमीन के कमाल धारणापर मर्यादा डालने का (सिलिंग) कानून कर दिया । इसलिए महाराष्ट्र राज्य पुरोगामी है यह सिद्ध हुआ ।