अधुनिक महाराष्ट्र के शिल्पकार-६१

सिंचन योजना

महाराष्ट्र की खेती बरसात पर निर्भर है । खेती में फसल पैदा करने के लिए पानी मिलने के लिए हमेशा की व्यवस्था करने की दृष्टि से सिंचन योजना, उसके द्वारा पानी व्यवस्था, पानी की उपलब्धता और बिजली की निर्मिति आदि विविध हेतु से उन्होंने काम का नियोजन किया । इसलिए उन्होंने राज्य में इरिगेशन डिव्हिजन और सब डिव्हिजन स्थापन करके उपलब्ध पानी पूर्ति की सुविधा का निरीक्षण करने के आदेश दिये ।  उन्होंने बम्बई राज्य इरिगेशन बोर्ड की स्थापना की । सिंचन योजना और जल संपत्ति के संबंध में महाराष्ट्र का फिरसे एक बार संपूर्ण निरीक्षण करने के लिए स. गो. बर्वेजी की अध्यक्षता में राज्य सिंचन मंडल स्थापन किया ।

महाराष्ट्र का भाग्य प्रकाशित करने के लिए कोयना जल योजना का प्रारंभ १ मार्च १९५८ को यशवंतरावजीके करकमलों द्वारा उद्घाटन हुआ । योजना में पहला जनित्र भी १६ मई १९६२ में यशवंतरावजीके करकमलों द्वारा शुरू हुआ ।

मराठवाडा का क्रांतिकारी परिवर्तन करने के लिए पूर्णा प्रकल्प का प्रारंभ यशवंतरावजी के करकमलों से हुआ । विदर्भ में पारस थर्मल पॉवर स्टेशन यह भव्य दिव्य प्रकल्प यशवंतरावजी के कार्यकाल में पूर्ण हुआ । यह प्रकल्प वैदर्भीय जीवन का औद्योगीकरण करने की दृष्टि से एक महत्त्वपूर्ण घटना है ।

सत्ता का विकेंद्रीकरण

यशवंतरावजी के कार्यकाल में सत्ता के विकेंद्रीकरण का कानून स्वीकृत हुआ था ।  बलवंत मेहता समिती ने सूचित की हुई विकेंद्रीकरण की सूचनाओं का विस्तृत विचार करने के लिए वसंतरावजी नाईक की अध्यक्षता में एक समिति नियुक्त की । इस समिती ने छः-सात महिनों में अभ्यास करके अपना अहवाल पेश किया ।  यशवंतरावजीने वह अहवाल ७ अप्रैल १९६१ को विधानसभा में रख दिया । यह अहवाल विधेयक के रूप में ८ दिसंबर १९६१ को संमत हुआ । सरकार ने भी यह अहवाल स्वीकृत करने की बात जाहिर की । १ मई १९६२ को प्रतयक्ष रूपसे जिला परिषद और पंचायत समिति अस्तित्व में आयी । इस प्रकार की योजना अंमल में लानेवाला महाराष्ट्र राज्य पहला राज्य है ।

मनोरंजन कर में छूट

नाट्य कला को प्रोत्साहन देने के लिए नाट्य महोत्सव, नाट्य कला के शिबिरों को उन्होने प्रोत्साहन दिया । अप्रैल १९५७ से चित्रपटों को मनोरंजन कर में छूट देने की नयी पद्धत लागू की । प्रादेशिक भाषा में उत्कृष्ट पुस्तकों को पुरस्कार जाहिर किये ।  यशवंतरावजी ने शासन की ओर से कलावंतों को आर्थिक साहाय्य देने की प्रथा शुरू की ।  बालगंधर्व को उनकी विपन्नावस्था में रु. ३०० मासिक मानधन शुरू किया । वैसेही राजकवि यशवंत को 'महाराष्ट्र कवि' उपाधि से विभूषित कर उन्हें आमरण ४०० रुपये मासिक मानधन देने का निर्णय लिया ।