यशवंतरावजी चव्हाण व्यक्ति और कार्य

vyakti aurr karya
यशवंतरावजी चव्हाण

व्यक्ति और कार्य

लेखक : रंजन परमार
--------------------------------

pdf inmg Ebook साठी येथे क्लिक करा

आत्मकथन

राज्यपुनर्गठन आयोग का प्रतिवेदन प्रकाशित होते की भारत के अन्य राज्योंमें जहाँ राहत और उत्साह का वातावरण पैदा हुआ वहाँ बम्बई राज्य में एक सिरे से दूसरे सिरे तक असंतोष, अशांति और रोष की लहर फैल गई । वातावरण में उग्रता आगयी । आपसी तनाव कम होने के बजाय बढ गया और भाषाई-आन्दोलन का भस्मासुर बेकाबू हो, प्रदेशमें सर्वत्र धूम मचाने लगा । इस परिस्थिति पर काबू पाने के लिए तथा गुजराती-मराठी भाषी प्रजामें आत्मविश्वास की भावना निर्माण करने हेतु भारतीय लोकतांत्रिक सर्वोच्च सत्ता लोकसभाने विशाल द्विभाषिक का पर्याय सुझाया ।

सर्व दृष्टि से यह सुझाव उपयुक्त और योग्य था । इस के जरिये सभी के प्रति समुचित न्याय की वृत्ति अपनायी गई थी । गुजराती और मराठी बान्धवों को हाथ में हाथ मिला कर नव भारत में प्रगतिशील एवं आदर्श राज्य की प्रजाजन बनने का पूरा अवसर दिया गया था । लेकिन निहित स्वार्थी गुट न माने । ऐसे अवसर पर श्री मोरारजी देसाई के केन्द्र में चले जाने से विशाल द्विभाषिक की नौका को कार्य-कुशलता, सौजन्य वृत्ति एवं सौहार्दपूर्ण वातावरणमें किनारे लगाने का महत्त्वपूर्ण उत्तरदायित्व जिन नौजवान और शक्तिशाली कंधों पर पडा वह हैं बम्बई राज्य की प्रजाके आँख के तारे जन नेता श्री यशवंतरावचव्हाण !

श्री यशवंतराव चव्हाण ने जिस खूबी से, आत्मविश्वाससे और अद्‍भुत मेधासे राज्य की धूरा वहन कर अपने पूर्वगामी मुख्यमंत्रियों की परंपरा को अन्त तक बनाये रखा--यह उनकी अद्वितीय राजनीतिज्ञता एवं प्रशासन-पटुता का आदर्श उदाहरण है । विरोधियोंने उन्हें संयुक्त महाराष्ट्रका हत्यारा कहा - उसी संयुक्त महाराष्ट्र को साकाररूप देकर जनता की वर्षों पुरानी महेच्छाओं को सामंजस्य वृत्ति और पारस्परिक स्नेहपूर्ण वातावरण में पूर्ण करनेवाले जनसेवक एवं अद्‍भुत प्रतिभासंपन्न युवक मुख्य मंत्री का परिचय बम्बई राज्य के बाहर असंख्य हिन्दी भाषा-भाषी जनता को हो, इसी उद्देश्यवश मैंने यह जीवनचरित्र लिखा है ।

इसे प्रकाशन करने की पूरी जिम्मेदारी उठानेवाले श्री ग. ल. ठोकल, मराठी के मूर्धन्य साहित्यकार और प्रकाशक हैं । उनके मेरे प्रति रहे स्नेह एवं प्रेमके प्रतीक स्वरूप ही यह चरित्र आज प्रकाशित हो रहा है । ठीक वैसे ही चरित्र लेखन समय श्री दयार्णव कोपर्डेकर, श्री दीपक परमार, श्री श्री. द. बोकिल, श्री. गौरिहर सिंहासने, आदि की उपयुक्त सूचनाएँ, श्री ह. रा. महाजनी के लेख, श्री बाबूराव काले कृत मराठी जीवनचरित्र 'विचारधारा' तथा 'नवभारत टाइम्स' के कतरन आदि का भरपूर उपयोग किया गया है अतः सम्बंधित लोगों का अत्यंत आभारी हूँ ।

साथ ही श्री मु. मा. जगताप, रविवार पेठ काँग्रेस के अध्यक्ष श्री नारायण महागांवकर, श्री अरविंद मेहता, श्री रमेश चि. शाह एवं सुश्री शैलजा का कृतज्ञ हूँ, जिन्होंने आवश्यक सहयोग प्रदान कर प्रस्तुत चरित्र पूर्ण कराने में सक्रिय योग प्रदान किया है ।

रंजन परमार
३११, रविवार पेठ, पूना २, रंगपंचमी, २१६