अधुनिक महाराष्ट्र के शिल्पकार-५८

सत्ता ग्रहण करने के बाद केवल १५ दिनों में यशवंतरावजी ने राज्य में दौरा करके नये राज्य के विषय में जनता के मन में विश्वास निर्माण करने का प्रयत्‍न किया ।  विभागीय विकास के कामों को गति देने के लिए उन्होंने सलाहगार मंडल की स्थापना की । राज्य के सभी भागों में औद्योगिक कंपनियाँ थी । उनके उद्योगधंदे की जरूरते पूरी करने के लिए उन्होंने बम्बई राज्य फायनान्शियल (अब का महाराष्ट्र राज्य वित्तीय महामंडल) कार्पोरेशन की स्थापना की । उद्योग विभाग में सभी अधिकारियों की बैठक बुलाकर उन्हें राज्य में सभी सामग्री का ज्यादह से ज्यादा उपयोग कर लेने की आवश्यकता पर बल दिया ।  

नाटयकला को उत्तेजन देने के लिए २.१६ लाख रुपयों की योजना बनायी । नाटकों के पुस्तकों को पुरस्कार, उत्साही कलावंतों का नाटय महोत्सव, खुले नाटयगृहों की निर्मिति, विपन्न अवस्था में कलावंतों को सहाय्य, संगीत और नाटय शालाओं को अनुदान, तमाशों को पुरस्कार आदि योजनाएँ महाराष्ट्र में यशवंतरावजीने शुरू करके प्रशासकीय गुणों के साथ अपनी रसिक और कलाप्रेमी वृत्ति का परिचय जनता को कर दिया ।

यशवंतरावजीने संपूर्ण राज्य का दौरा किया । उन्होंने सभी विभाग में असंतोष कम करने का और सभी के मन जोडने का प्रयत्‍न किया । अपने विनम्र और मिठास भाषणों से उन्होंने जनता के मन जीते । इनकी यह बडी विजय थी । भारत के हित में ही महाराष्ट्र का हित समाया हुआ है, यही बात सभी को समझायी । यह जनतंत्र राज्य चलाने के लिए, समृद्ध करने के लिए उन्होंने सभी लोगों को सहकार्य का आवाहन किया था ।  यशवंतरावजी की लोकप्रियता बढ रही थी । फिर भी संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन का जोर कम नहीं हुआ था । विरोधी पक्ष की ओर से उनकी आलोचना होती थी । इसके बाद छः महिनों में यशवंतरावजी को फिरसे चुनाव के सामने जाना पडा । १२ अप्रैल से फिर से यशवंतरावजी मुख्यमंत्री बने । विशुद्ध, कार्यक्षम, निःपक्षपाती कारोबार का विश्वास देकर उनका कार्यकाल फिर शुरू हुआ ।

पंचवार्षिक योजनाएँ शुरू हुई थी । औद्योगीकरण के और जमीन सुधार के क्षेत्र में उत्पादन कार्य को प्रेरणा मिलनी चाहिए । उस पद्धतीसे नीति तैयार करना और उसके साथ सभी को न्याय मिला देना सरकारने अपना कर्तव्य मान लिया था । यशवंतरावजी ने औद्योगीकरण की एक सर्वंकष योजना बनायी थी । उत्पादन का लाभ मालिक, श्रमिक और जनता इन सभी को हो और उस में समानता और एकसूत्रता हो इस पर उन्होंने बल दिया ।

उद्योगधंदों के विकास से देश की अर्थव्यवस्था ही नहीं तो देश के सामर्थ्य में भी महाराष्ट्र ने बहुमूल्य योगदान दिया ऐसा उनका दृष्टिकोन था । उद्योगों की वृद्धि केवल शहर में हो जाने से शहर और देहात उन दोनों में खाई अधिक बढती जा रही थी ।  उसमें से अनेक समस्याएँ निर्माण हो जाती हैं । उसे ध्यान में रखते हुए ग्रामीण जीवनके नागरीकरण को बढावा दिया ।

जमीन सुधार से लाखों किसान बांधवों के जीवन पर महत्त्वपूर्ण परिणाम होते है । यह प्रश्न मानवी और आर्थिक स्वरूप का होने से वह सहानुभूति से और कल्पकता से सुलझाने पर उन्होंने जोर दिया । राज्य में प्रत्येक समाज को, प्रदेश को और गुट को उचित और न्याय्य बर्ताव मिलना चाहिए ऐसी नीति उन्होंने अपनायी । ये सब कार्य करनेवाले प्रशासन की कार्यपद्धति भी निश्चित की । उन्होंने शासन यंत्रणा को जनता के जरूरतों के संबंध में जागृत रहने की सलाह दी ।

लोगों को विश्वास में लेने के लिए उन्होंने जाहीर किया कि जिस समय मुख्यमंत्री एकाध जिला, तहसील को भेंट देने के लिए आ जायेंगे, उस समय वहाँ के लोग उनकी भेट लेंगे और अपनी शिकायते और समस्याएँ कह देंगे । इसलिए वे एक-डेढ घंटे का समय लोगों के लिए सुरक्षित रखते थे । जनता की शिकायते और समस्याएँ सुनने की दृष्टि से इस निर्णय का अनुकूल परिणाम हुआ ।

शिक्षा, खेती, अर्थव्यवस्था, उद्योग-कारोबार का विकेंद्रीकरण, सहकार, बाँध, नहरे, कला, वाङ्मय, भाषा, साहित्य और संस्कृति, कृषिउद्योग, दुग्धोत्पादन आदि सभी क्षेत्रों की समस्याओं का अभ्यास कर उन्होंने पुरोगामी विचारधारा रखकर उस संबंध में निर्णय लिये और उसका अंमल भी शुरू किया । काम को गति दी और सभी विभागों का लगाम मुख्यमंत्री के नाते अपने हाथ में रखा । इसलिए उनका ध्येय साध्य हुआ । वे एक के पीछे एक जनकल्याणकारी निर्णय लेकर उसका अंमल जोर से कर सके ।