साहित्यिकों की लडाख मोर्चे को भेट
इस संबंध में दो घटनाएँ याद आती हैं । यशवंतरावजी ने बिनती करने पर महाराष्ट्र में कुछ लेखक और कवियों की एक टुकडी ने लडाख में मोर्चे (सरहद पर सैनिकों के ठाने को) को भेट दी । इस टुकडी में ग. दि. माडगूलकर, पु. भा. भावे और वसंत बापट आदि समाविष्ट थे । उनके आवेशपूर्ण लेखन से रक्षाविषयक समस्या सामान्य जनता को समझने के लिए मदद हुई । अन्य राज्यों में होनेवाले लेखक और कवियों के ऐसे ही दौरे आयोजित किये गये । उनकी सूचना से ही लता मंगेशकर ने 'ए मेरे वतन के लोगों' यह प्रसिद्ध गीत ध्वनिमुद्रित किया । यह गीत लता मंगेशकर ने १९६३ में गणराज्य दिन के समारोह में नैशनल स्टेडियम पर गाया था । इस ग्रामोफोन रिकार्ड का बिक्री का उत्पन्न राष्ट्रीय रक्षा निधि में जमा कर दिया जाय तो बहुत अच्छा होगा, यह यशवंतरावजी की इच्छा कवि प्रदीप, संगीतकार सी. रामचंद्र और गायिका लता मंगेशकरने तुरंत पूरी की ।
संयुक्त महाराष्ट्र निर्मिति में संघर्ष काल में निर्माण हुआ काँग्रेसविरोधी वातावरण धीरे-धीरे शांत करने में यशवंतरावजी की राजनैतिक कुशलता सफल हुई । संयुक्त महाराष्ट्र की निर्मिति के लिए जो प्रखर आंदोलन हुआ था उसी कारण ही बम्बई के साथ संयुक्त महाराष्ट्र की निर्मिति हो सकी, यह सत्य कभी भी इन्कार नहीं किया जा सकता । संयुक्त महाराष्ट्र निर्मिति के बाद बम्बई, पश्चिम महाराष्ट्र, मराठवाडा और विदर्भ इन सब विभागों में भावनात्मक ऐक्य निर्माण करने का ऐतिहासिक कार्य यशवंतरावजी ने किया । यह सत्य भावी इतिहासकार कभी भी भूल नहीं सकते । डॉ. गोपालरावजी खेडकर, दादासाहेब कन्नमवार, वसंतरावजी नाईक, नरेन्द्रजी तिडके, शेषरावजी वानखेडे, नासिकरावजी तिरपुडे, शंकररावजी चव्हाण, प्रा. चौहानजी, देशमुखजी आदि विदर्भ, वर्हाड, मराठवाडा में वैसेही पश्चिम महाराष्ट्र में असंख्य सहकारी मित्रों को इकठ्ठा करके संयुक्त महाराष्ट्र की भावनात्मक एकता की मजबूत नीव रखने का काम यशवंतरावजी के नेतृत्व में हुआ । उनके नेतृत्व में ही महाराष्ट्र काँग्रेस कमिटी को पुरोगामी विचार और दिशा देने का कार्य कार्यान्वित हुआ । भारत में उस दृष्टि से महाराष्ट्र प्रदेश काँग्रेस कमिटी सभी की चर्चा का और कुतूहल का विषय हुआ था । जिलानिहाय और प्रांतनिहाय कार्यकर्ताओं के असंख्य शिबिर आयोजित किये गये और उस में समता पर आधारित कृषि औद्योगिक समाजरचना निर्माण करने का निर्धार व्यक्त किया गया ।
यशवंतरावजीने उनके मुख्यमंत्री पद के शासन काल में सहकारी आंदोलनविषयक एक विधेयक तैयार किया । १८ अक्तूबर १९६० को यह बिल राजपत्र में जाहिर किया । राज्य घटना में मार्गदर्शक तत्त्वनुसार सहकारी आंदोलन का क्रमशः उचित विचार करने के लिए यह विधेयक चव्हाण सरकारने प्रस्तुत किया था । सहकारी कानून के अनुसार इस विधेयक ने बहुत सारी दुरुस्तियाँ की थी । इसलिए संस्था स्थापन करने के बारे में लवचिकता आयी और परिणामतः सहकारी क्षेत्र समाज के निचले स्तर तक पहुँचकर विस्तृत होने के लिए मदद हुई । लोगों ने उसका संपूर्ण फायदा उठाया । सहकारी आंदोलन ग्रामीण क्षेत्र में बडे अनुपात से छा गया । उस में से सहकारी कारखानदारी खडी हुई । हजारों लोगों को ग्रामीण विभाग में व्यवसाय और रोजगार मिल गया । पेट भरने के लिए शहर की ओर भागनेवाले लोगों की भीड बडे अनुपात में रोकी गयी और यहाँ की खेती सुधार को प्रेरणा मिल गयी ।
किसान महाराष्ट्र का प्राण है, किसान महाराष्ट्र के राज्यकर्ता है, यह बात प्रकट रूप से कहनेवाले यशवंतरावजी महाराष्ट्र के पहले मुख्यमंत्री थे । खेती और आवश्यक उद्योगधंदों के लिए व्यक्तियों को प्रशिक्षित करने के लिये खेतीविषयक शालाओं की निर्मिति की । महाराष्ट्र के प्रत्येक देहात में बिजली पहुँचाने के लिए उन्होंने योजना बनायी । खेती क्षेत्र में सीलिंग अॅक्ट बनाया । यह देखकर भारत सरकारने दस-बारह वर्षों के बाद सीलिंग का कानून बनाया यानी कि कमाल जमीन धारणा विधेयक बनाया ।
शासकीय कार्य करते समय यशवंतरावजी मानवता को नहीं भूले । नवंबर १९६६ में उन्होंने केंद्रीय पदभार संभाला । तब सात-आठ दिनों में दिल्ली पुलिसों ने एकाएक आंदोलन शुरू किया । असंख्य पुलिसोंने उनके निवासस्थान को घेर दिया । इतनाही नहीं तो शाम के समय कुछ पुलिस अहातें में घुसे और उन्होंने घोषणा देने की शुरुवात की । यह सब खेल मन को मनस्ताप देनेवाला था । ये लोग दूसरे दिन भी कामपर नहीं गये । साहब ऑफिस के बाहर आये और उन्होंने पुलिसोंको संबोधित करके कहा, 'आप अपनी डयूटी पर वापस जाओ । आपके प्रश्न मैं समझ सकता हूँ । आप का बर्ताव उचित नहीं है । फिर भी मैं आप के बच्चों की तरफ देखकर कहूँगा कि यदि आप वापस डयूटीपर गए तो मैं सब भूल जाऊँगा । किसी ने आप को बहकाया है ।'