अधुनिक महाराष्ट्र के शिल्पकार-२०

यशवंतरावजीके आदरणीय अध्यापक

यशवंतरावजी कि शिक्षा का श्री गणेशा देवराष्ट्र में हुआ था । बंडू गोवंडे यशवंतरावजी को पढानेवाले पहले शिक्षक थे । मन लगाकर पढानेवाले प्रेमी शिक्षक थे ।

उस समय यशवंतरावजी की शाला में शेणोलीकर नाम के अध्यापक थे । उन्हें शोक था पढाने का और क्रिकेट का । उन्होंने यशवंतरावजी को क्रिकेट सिखाने का प्रयत्‍न किया, पर उन्होंने उस में रुचि नहीं दिखलायी ।

यशवंतरावजी जेल की बराकी में थे । वहाँ 'शाकुंतल' के वर्ग शुरु हुए थे । कुछ दिनों के बाद आचार्य भागवतने यशवंतरावजी और उनके मित्रों को शेक्सपियर का नाटक सिखाने की बात कबूल की थी । फिर उन्होंने यशवंत को 'ज्युलियर सीझर' नाटक पढाया ।

यशवंतराव ने राजाराम कॉलेज में विद्यार्थी की हैसियत से प्रवेश किया था । उस समय डॉक्टर बालकृष्ण कॉलेज के प्राचार्य थे । वृत्ति से राष्ट्रीय, इतिहास के विद्वान प्राध्यापक, वक्तृत्वसंपन्न आदि कारणों से उन्हें राजाराम कॉलेज में और कोल्हापूर में बहुत मान-सम्मान था । उन्होंने यशवंतरावजी को उपदेश किया कि - 'तुम कृपा करके संस्थानकी राजनीति में भाग न लो और अभ्यास करके सीखते रहो ।' यशवंतरावजी ने उनकी आज्ञा का पालन किया ।

यशवंतरावजी को संस्कृत पढना था । परंतु शास्त्रीबुवाने कहा - 'मैं अब्राह्मणों को देववाणी संस्कृत नहीं पढाऊँगा ।' उसके बाद यशवंतरावजी ने अर्धमागधी विषय लिया ।  डॉक्टर उपाध्ये नाम के प्राध्यापक उन्हें अर्धमागधी पढाते थे । वे बहुत उत्तम शिक्षक थे । थोडे श्रम करने के बाद अर्धमागधी विषय में अच्छे गुण मिलते हैं, इसका यशवंतरावजी को अनुभव आया ।  

उस समय लोकप्रिय उपन्यासकार श्री. ना. सी. फडके राजाराम कॉलेज में प्राध्यापक थे ।  जब यशवंतरावजी इंटरमीजिएट में थे तब वे उन्हें तर्कशास्त्र पढाते थे । ना. सी. फडके बाहर जैसे लोकप्रिय थे वैसे वे विद्यार्थियों में बहुत प्रिय थे । विषय आसान और मनोरंजक करने में फडके उत्तम थे । यह तो उनके अध्यापक होने का उत्तम सबूत था । इसलिए मराठी, इतिहास के साथ ही तर्कशास्त्र भी उनके पसंद के विषय थे ।

उसी राजाराम कॉलेज में 'माधव ज्युलियन' पटवर्धन नाम के प्राध्यापक थे । वे उत्तम कवि के रूप में महाराष्ट्र में प्रसिद्ध थे । इंटरमीजिएट वर्ग में वे यशवंतरावजी को अंग्रेजी पढाते थे । वे विद्वान और प्रकृति से गंभीर थे । शिक्षक और विद्यार्थी इन दोनों के बीच में जो आत्मीयता स्थापित करने की आवश्यकता होती है वह कभी उन में दिखाई नहीं दी । ये दोनों भी अपनी अपनी दृष्टि से बडे आदमी थे । इन दोनों के प्रति यशवंतरावजी के मन में बडा आदर था । पर उसका कारण क्या था यह बात उनकी समझ में नहीं आती ।

उसी राजाराम कॉलेज में डॉ. बोस नाम के अंग्रेजी के प्रोफेसर थे । यशवंतरावजी जब बी.ए. के वर्ग में थे वे उन्हें अंग्रेजी पढाते थे । यशवंतरावजी हाइस्कूल से लेकर कॉलेज तक की अवस्था में अनेक शिक्षकों से कविता सीखे थे । परंतु प्रोफेसर बोस की शैली किसी को साध्य नहीं हुई । जब वे हाइस्कूल में पढते थे तब उनके शिक्षक श्री. दत्तोपंत पाठक में उन्हे बोरा की शैली दिखायी दी । यशवंतराव जब कोल्हापूर में चार वर्षों तक सीखने के लिए थे तब उन्हें उन सबकी याद आती थी ।