वे अप्रैल १९३४ में मॅट्रिक की परीक्षा पास हुए । अगली शिक्षा के लिए उन्होंने कोल्हापूर के राजाराम कॉलेज में प्रवेश लिया । वहाँ से वे बी.ए. हुए । वे कोल्हापूर आकर स्थिर हुए थे । बीच बीच में बाधाएँ आती रही । उनके बंधु गणपतराव और मित्रों ने सारी बाधाएँ दूर की । सातारा जिले मे उनके जो कार्यकर्ता और मित्र थे, उनके काम से वे अलग रहना नहीं चाहते थे । वे तो सातारा जिले में काँग्रेस आंदोलन का एक अटूट भाग बन गये थे । उनसे मिलने के लिए वे कभी सातारा जाते और उनके मित्र उनसे मिलने के लिए कोल्हापूर आते । आंदोलन के काम की अपेक्षा वे पढने के लिए अधिक समय देते थे । पढाई के साधन बहुत होने के कारण बौद्धिक और वैचारिक शक्ति प्राप्त करने के काम में यशवंतरावजी मग्न हो गये थे ।
बी.ए. की परीक्षा के लिए यशवंतरावजी ने राजनीति, इतिहास और अर्थशास्त्र ये विषय लिये थे । इ.स. १९३८ में उन्होंने बी.ए. परीक्षा दी । उनके सामने प्रश्न उपस्थित हुआ कि कानून का अध्ययन कहाँ करना चाहिए । वे उपाधि धारक तो हुए थे और आगे क्या करना चाहिए । अभी आगे क्या करना है । इस संबंध में एल.एल.बी. करूँगा ऐसा उन्होंने विचार किया । एल.एल.बी. करने के पूर्व आर्थिक तैयारी करनी आवश्यक होगी । विटा में उनकी तीन चार एकड खेती थी । वह भी वडिलोपार्जित । उन्हें उसका अच्छा उत्पादन नहीं आता था । उनके दो भाईयोंने सुझाया । उस खेती को बेच डालने से यशवंतरावजी उन पैसों में एल.एल.बी. हो सकते हैं ।
सबने मिलकर विटा में जाकर जमीन का बिक्रीखत कर दिया । यशवंतरावजी के लॉ कॉलेज के दो वर्षों के खर्च की सुविधा हो गयी ।
एल.एल.बी. के लिए उन्होंने पूना चुन लिया । अभ्यास के लिए उत्तम वातावरण था । पहले पहले उन्होंने लॉ कॉलेज देखा । उसकी इमारत हाल ही में बांधी गयी थी । इमारत को देखते ही उनका मन प्रसन्न हुआ । जब उन्होंने कॉलेज की लायब्ररी देखी तब वे बहुत आश्चर्यचकित हो गये । इतना उत्तम वातावरण उसने अन्यत्र क्वचित देखा होगा । वाचन के लिए और ज्ञानार्जन के लिए वहाँ बडा विशाल क्षेत्र था ।
१९३८ साल कैसे बीत गया वह समझ में नहीं आया । फिर कानून की अपेक्षा उन्होंने अन्य बातों का अधिक अभ्यास किया था । उसका परिणाम यह हुआ कि वे १९३९ की कानून की परीक्षा में अनुत्तीर्ण हुए । बहुत अध्ययन करके अगले छः महिनों में वे यह परीक्षा उत्तीर्ण हुए ।
१९४० का वर्ष समाप्त होता आ रहा था । उसने कमरा बदलकर कानून के दूसरे वर्ष की परीक्षा की तैयारी शुरू की । उनकी माँ का उनसे हमेशा संदेश आता था 'अब तुम्हारी परीक्षा होने तक कृपा करके कम से कम जेल में मत जाओ । परीक्षा होने के बाद तुम्हे जो कुछ करना है वह करो ।' माँ की बात यशवंतरावजी ने सुन ली और अध्ययन किया । अप्रैल में उनकी परीक्षा हुई । फिर पूना छोडकर कराड आये । उन पर जिला काँग्रेस के अध्यक्षपद की जिम्मेदारी थी । इसलिए वे हमेशा जिले में घूम रहे थे । परीक्षा का फल अब घोषित होनेवाला था ।
एक-दो महिनों के बाद उनकी परीक्षा का रिझल्ट आया और यशवंतरावजी उत्तीर्ण हुए । उनकी माँ को बहुत आनंद हुआ । यशवंतरावजी ने जो योजना बनायी थी, उसके अनुसार उसने अपनी शिक्षा पूरी की । उनके राजनैतिक कार्य के कारण उनके तीन-चार वर्षं व्यर्थ बीत गये । उसके कारण थोडीसी बढती उम्र में उसने वकील का अभ्यास पूरा किया था । यह बात वे समझ गये थे ।
अब वकिली करने का प्रश्न निर्माण हुआ । सातारा या कराड । यशवंतरावजी ने निर्णय किया कि - 'वकिली करने के लिए मेरा जीवन है ऐसा मुझे नहीं लगता । हुआ है तो वकील, तो कराड में वकिली करने का प्रयत्न करेंगे । उसके साथ राष्ट्रीय आंदोलन कार्य भी किया जा सकता है ।' उसने कराड में गुरुवार पेठ में देशपांडे का घर किराये पर लिया और उसने वहाँ वकिली शुरू की । उसने वर्षभर वकिली की । उनका वकिलीका अनुभव बहुत कुछ अच्छा नहीं था । सातारा जिले में जो कार्यकर्ता लोग थे हमेशा उनकी भीड रहती थी । ऐसी हालत में वकिली संभव नहीं थी । आगे चलकर यशवंतरावजी ने आंदोलन करना, काँग्रेस का प्रचार करना इस कार्य को प्रधानता दी ।
यशवंतरावजी की शिक्षा-दीक्षा इन्फन्ट्री से लेकर मॅट्रिक तक कराड में हुई थी, न कि देवराष्ट्र में । ये सारे प्रमाण मेरे पास है । मेरे पास कराड में शाला नं.१, ४ और शाला नं. २ का दाखिला लिव्हिंग सर्टिफिकेट है । यशवंतरावजी तिलक हाइस्कूल में से मॅट्रिक पास हुए अप्रैल १९३४ । उनका लिव्हिंग सर्टिफिकेट मेरे पास है ।