अधुनिक महाराष्ट्र के शिल्पकार ९६

सहकारी आंदोलनका जाल ग्रामीण भाग में कृषी क्षेत्र को जोडने का यशवंतरावजी का उद्देश मूलगामी स्वरूप का था । इस सहकारी आंदोलन से ग्रामीण और शहरी भाग में लोग घुलमिल जायेंगे । सहकारी संस्थाओं से जो उत्पादन बढा है वह ज्यादहसे ज्यादह क्षेत्र मे वितरित किया जायेगा । इससे उचित अर्थो में समाजवादी समाजरचना अस्तित्वमें आ सकेगी इसपर उनका प्रचंड विश्वास था । सहकारी आंदोलन पक्षीय राजनीति से अलिप्‍त रहना चाहिए और वह उचित अर्थोंमें जनतंत्र बलवान करने का आंदोलन होना चाहिए । यशवंतरावजी कहते हैं - 'सहकारी आंदोलन यह कुछ एकाध पक्ष का आंदोलन नहीं है । तात्त्विक दृष्टि से ये सहकारी आंदोलन मूलतः जनतंत्र का आंदोलन है यह हमें नहीं भूलना चाहिए । इस आंदोलन के पीछे यह जो दृष्टिकोन है वह हमे अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए । और जनतंत्र का यह स्वरूप कहीं भी खराब नही होना चाहिए इस संबंध में हमे सावधानी बरतनी चाहिए । लेकिन वह खराब हुआ तो वह क्यों खराब हुआ इसकी हमे सतत खोज करनी चाहिए । सामान्य और शोषित समाज के काम आना यह तो इस आंदोलन का प्राण है । लेकिन सच्चे अर्थों में हमे यह आंदोलन चलाना होगा तो उसकी ओर हमे जनतंत्र दृष्टिकोन से देखना चाहिए ।'

महाराष्ट्र में ग्रामीण किसान और बहुजन समाज के विकास के लिए पंचायत राज और सहकार का रचनात्मक कार्यक्रम कार्यान्वित किया । उनका यह कार्य एक दृष्टि से महात्मा फुलेजी के सत्यशोधक आंदोलन के नजदिकी था, तो दूसरी ओर वे महात्मा गांधीजी के स्वायत्त देहात की संकल्पना का स्वीकार कर रहे थे ।

सहकार के क्षेत्र में महाराष्ट्र में होनेवाली पोषक परंपरा का यशवंतरावजी ने पूरी तरहसे उपयोग कर लिया । इस में शक्कर कारखानदारी में उन्होंने सहकार का प्रयोग किया ।  इससे भारत में सबसे ज्यादा सहकारी शक्कर कारखाने निर्माण हुए । इसके सिवाय सहकारी पद्धति से माल की बिक्री, कर्जपूर्ति, गृहनिर्माण, भूविकास बँक आदि उपक्रम उन्होंने शुरू किये । बहुजन समाज की सर्व अर्थ से सुधारना होनी चाहिए । इसलिए उन्होंने बहुविध कार्य किये ।

यशवंतरावजी ने सहकार, पंचायत व्यवस्था और काँग्रेस के तत्त्वज्ञानपर विश्वास रखनेवाली एक पिढी तैयार की । यशवंतराव चव्हाण के प्रारंभिक काल में सहकारी क्षेत्र में पद्मश्री विखेजी पाटील, धनंजयरावजी गाडगील, रत्नाप्पाजी कुंभार, तात्यासाहबजी कोरे, वसंतदादाजी पाटील, अण्णासाहबजी शिंदे, यशवंतरावजी मोहिते, शंकररावजी मोहिते, शंकररावजी काले, शंकररावजी कोल्हे, काकासाहबजी वाघ आदि सहकारमहर्षी तैयार हुए ।  इन सब लोगों ने महाराष्ट्र के कोने कोने में सहकार आंदोलन चलाया । इसके साथ ही काँग्रेस के लोकाभिमुख राजनीति को विश्वासपूर्वक आधार प्राप्‍त कर दिया । यशवंतराव चव्हाण के काल में काँग्रेस के सदस्य अधिक प्रगल्भ कृतिशील और रचनात्मक बन गये । ग्रामीण भाग में 'विना सहकार नहीं उद्धार' का उद्घोष हुआ । हर एक गाँव में सहकारी सोसायटी ने श्रमिक किसान को आर्थिक आधार दिया । ग्रामपंचायत ने भी इस सहकार को सहकार्य किया और काँग्रेस की राजनीति आगे ले जाने में साह्यता की ।  ग्रामसफाई, ग्रामीण भाग में जिला परिषद शालाओंने समाजजीवन में परिवर्तन किया ।  इसका श्रेय यशवंतरावजी को देना पडता है । क्योंकि वे 'सिस्टर बिल्डर' थे । एक हीं समय में बहुविध आयामों को स्पर्श करने की शक्ति उन में थी । महाराष्ट्र के संतुलित विकास का श्रेय भी उन्हें ही देना पडता है । इस संदर्भ में यशवंतराव चव्हाण कहते हैं- 'समाजवादी दिशा की ओर हमने दो कदम आगे रखे हैं । अब भी सौ- डेढ सौ कदम हमे रखने पडेंगे । सब को समान अवसर मिलना चाहिए । आर्थिक विषमता से होनेवाला शोषण बंद होना चाहिए । कल के महाराष्ट्र राज्य का कारोबार उत्तम, साफ और स्वच्छ होना चाहिए । दुसरी बात यह कि पंचवार्षिक योजना का बालक हिंडोला में कदम दिखाकर नव महाराष्ट्र की प्रगति का यकीन दिलानेवाला चाहिए । तिसरी बात यह कि राजनैतिक, सामाजिक और साहित्यिक इन सभी क्षेत्रों में एकात्म भावना का सभी को प्रयत्‍न करना चाहिए । तब ही महाराष्ट्र राज्य जनता का राज्य होगा । वह राज्य लोककल्याण के लिए काम करेगा और भारत के नक्शे में होनेवाले तारों में एक नया तेजस्वी तारा चमक उठेगा ।' यशवंतराव चव्हाण का यह लोकसत्ताक राष्ट्रवाद विकासवादी और संपूर्ण भारतीय प्रगति का विचार करनेवाला था ।