भूमिहीन किसान और श्रीमान किसान इन दोनों में होनेवाली विषमता कम करने के लिए एक व्यक्ति के नाम पर पर्याप्त मात्रा मे खेती होनी चाहिए और शेश रह गयी जमीन खेती में काम करनेवाले मजदूरों को बाँटकर देनी चाहिए । जब ऐसा होगा तब भूमिहिनों का प्रश्न सुलझ जायेगा । यही विचार यशवंतरावजी ने व्यक्त किया था ।
भारत में बहुत बडी मात्रा में जमीन अविकसित रहने से वह अनुत्पादक और अनुपजाऊ रह गयी है । इससे किसानों की और देश की हानि होती है या क्षति होती है । यह हानि टालने के लिए उसकी बोआई होनी चाहिए । सारांश खेती की समस्याएँ स्पष्ट करके उसके संबंध में उन्होंने उपाय सुझाये । तांत्रिक अंगों का विकास करने की जरूरत और महत्त्व है । इसके पीछे उनकी प्रामाणिक लगन दिखाई देती है ।
महाराष्ट्र यह कृषी-प्रधान राज्य है । म. फुलेजी के लेखन से और खुदके अनुभव से उन्हें किसानों की दैन्यावस्था की कल्पना थी । यशवंतरावजी द्विभाषिक राज्य के मुख्यमंत्री थे । तब उन्होंने खेतीविषयक सुधारना का पहला कदम उठाया । खेती के संबंध में स्वातंत्र्य के बाद इ.स. १९५७ का वर्ष महाराष्ट्र में किसानों की दृष्टि से 'युगप्रवर्तक' वर्ष का उदय था । यशवंतरावजी ने खेती के क्षेत्र में पुरोगामी कदम रखकर प्रत्यक्ष निर्णय किया था । ऐसा निर्णय करनेवाला महाराष्ट्र भारत में पहला राज्य ठहरा था ।
१९५६ में नया काश्तकारी अधिनियम (कानून) तैयार किया गया । क्योंकि खेती के क्षेत्रमें धनवान और बलवान किसानो का वर्ग तैयार हुआ था । इससे 'स्वामीत्व एक का और कष्ट दूसरों का था । जो खेत नें बोआई जोताई करेगा इसकी जमीन ।' यह तत्त्व सामने रखकर कानून तैयार किया था । इसके साथ ही खेत जमीन की कमाल धारणा पर मर्यादा डालने का 'सिलिंग' कानून बनाया । सच्चे अर्थो में महाराष्ट्र देश मे पुरोगामी है यही बात यशवंतरावजी ने देश को सर्वप्रथम दिखा दी । १९६१ के जनवरी में महाराष्ट्र में खेत जमीन के संबंधमें विधेयक सामने आया और इस विधेयक से दूरगामी जमीन सुधारने की नींव डाली गयी । खेती में फसल पैदा करने के लिए खेती के लिए पानी पूर्ति की कायम व्यवस्था करने का कठीन प्रश्न सामने था । महाराष्ट्र में नदियों का और भूरचना का अभ्यास कर के नहरे और बिजली निर्मिति इस दो दृष्टियों से संशोधन करना चाहिए था । उसके लिय यशवंतरावजी ने शास्त्रशुद्ध पद्धति से योजना बनाने का निश्चय किया था । नहरे, पानी की पूर्ति, पानी की उपलब्धता और बिजली निर्मिति ऐसे अनेक हेतू से उन्होंने इन कामों का नियोजन शुरू किया । विदर्भ और मराठवाडा में नहर योजना के लिए सरकारने एक इरिगेशन डिव्हिजन और पाच सब डिव्हिजन स्थापन किये । खेती के लिए पानी पूर्ति और व्यवस्था के संबंध में सरकार को सलाह देने के लिए बम्बई राज्य इरिगेशन बोर्ड की स्थापना इसी काल में हुई ।
कुछ नये बाँधों के, जल विद्युतयोजनाओं के और थर्मल पॉवर स्टेशन के काम यशवंतरावजी ने अपने कार्यकाल में किये । कोयना जल विद्युत योजना का २०७ फीट ऊँचाई का काँक्रीट का बाँध बाँधने का प्रमुख प्रकल्प है । उसका प्रारंभ १ मार्च १९५८ को यशवंतरावजी के करकमलोंद्वारा हुआ । वैसे ही मराठवाडा का परिवर्तन करनेवाले पूर्णा प्रकल्प का खर्च १७ कोटी ५० लाख रुपये था । उस प्रकल्प का प्रारंभ भी यशवंतरावजी ने किया। सिद्धेश्वर और एकलहरे इन दोनों स्थानों पर बाँध था और कार्यालय वसमत में था । नीरा नदी की घाटी का संपूर्ण विकास करना था । इस उद्देश से नीरा नदी पर पीर के स्थान पर वीर बाँध बाँधने की योजना भी उनके कार्यकाल में हुई । उन्होंने इस योजना का दूसरी पंचवार्षिक योजना में समावेश किया और पाँच वर्षों के काल के लिये ४२४ लाख रुपयों का प्रबंध किया और इस योजना से संपूर्ण नीरा नदी की घाटी का क्रांतिकारी परिवर्तन कर दिया । वैसेही विदर्भ में पारस स्थान पर होनेवाला थर्मल पॉवर स्टेशन यह भव्य प्रकल्प यशवंतरावजी ने अपने कार्यकाल में पूर्ण किया ।