अधुनिक महाराष्ट्र के शिल्पकार-९

उत्तर की तरफ से आनेवाली कृष्णा और दक्षिण की तरफ से आनेवाली कोयना इन दो नदियों का आमने-सामने आकर प्रीतिसंगम होता है । और फिर इन दो नदियों का प्रवाह पूर्व की तरफ बहता है । इन दो नदियों के संगम से होनेवाले काटकोन में कराड नामका गाँव बसा हुआ है । यह बहुत प्राचीन गाँव है, वैसे इस गाँव का इतिहास भी है । वैसे उस समय तक यह शहर बडा नहीं था । पचपन से लेकर साठ हजार तक उस शहर की आबादी थी । लेकिन यशवंतरावजी उस गाँव में बढ रहे थे, तब उस गाँव की आबादी पंद्रह-सोलह हजारों की थी । इसलिए सभी लोग एक दूसरे को पहचान सकते थे । आज भी वैसी स्थिति है ।

यदि यह छोटा कसबा हो तो उसे अपना एक व्यक्तिमत्त्व था । व्यापार का महत्त्वपूर्ण केंद्र, विद्याव्यासंग की और ज्ञानोपासना की पुरानी परंपरा । कृष्णा के किनारे पर ब्राह्मण बस्ती । कोयना के किनारे पर मराठा और अन्य जमाती की बस्ती । गाँव की मध्य बस्ती में व्यापारी मुहल्ला, सब्जी-मंडी और ऊँचाई पर मुस्लिम मुहल्ला । गाँव की पूर्व तरफ हरिजनों की बस्ती । इस गाँव में एक दूसरे के साथ संबंध रखने की नीति थी । यशवंतरावजी की विद्यार्थी अवस्था में इस गाँव में एक हाइस्कूल और किसी तरह चलनेवाला एक सार्वजनिक वाचनालय था । लेकिन यह वाचनालय व्याख्यान और चर्चा का महत्त्वपूर्ण केंद्र बन गया था । इस गाँव को राजनैतिक परंपरा थी । राष्ट्रीय विचारों की अच्छी जानकारी रखनेवाले अनेक व्यक्ति यहाँ थे । आलतेकर पिता-पुत्र, श्री. पांडुअण्णा शिरालकर, बाबूराव गोखले, गणपतराव बटाणे, किसनलाल प्रेमराज ये लोग उक्त विचारों के थे । इस गाँव में प्रमुख लोगों ने यहाँ लोकमान्य तिलक के स्मारक के रूप में एक अंग्रेजी शाला शुरू की । सांस्कृतिक और शिक्षा के क्षेत्र में यह एक महत्त्वपूर्ण घटना थी । आज कराड एक महत्त्वपूर्ण शिक्षा का केंद्र बन गया है । उसका यह प्रारंभ था । इस छोटे से गाँव को राजनीति का बडा आकर्षण था । देश में सभी महत्त्वपूर्ण राजनैतिक आंदोलन के प्रतिनिधि यहाँ थे, और वे सभी क्रियाशील थे । ऐसे गाँव के संस्कार में यशवंतरावजी बढ रहे थे ।
 
कराड के वातावरण में यशवंतरावजी जब बढ रहे थे तब महाराष्ट्र के सामाजिक जीवन में कुछ नये प्रवाह और कुछ नयी शक्तियाँ काम कर रही थीं । संयोग से जिस भाग में और जिस जगह में यशवंतरावजी किराया देकर रहते थे वहाँ कराड में खानदानी मराठा कुटुंब की महत्त्वपूर्ण बस्ती थी । कराड में उसे डुबल गली कहते थे । वहाँ वे रहते थे । ये सब मराठा परिवार समाज में प्रतिष्ठित थे । कराड एक महत्त्वपूर्ण स्थान था । इसलिए यहाँ बहुत से बडे बडे लोग आते-जाते थे । वे लोग यहाँ आकर बातचीत करते थे, वह सब यशवंतरावजी सुनते थे । इसलिए आनेवाले लोगों के विचारों की कल्पना आने लगी ।  यशवंतरावजी की समझ में आया कि उस समय बहुजन समाज की उन्नती के लिए सत्यशोधक आंदोलन चल रहा था । आगे उसे राजनीति में ब्राह्मणेतर आंदोलन का स्वरूप प्राप्‍त हुआ । इसलिए बहुजन समाज में लडके-लडकियो को शिक्षा लेनी चाहिए, पठन करना चाहिए, सार्वजनिक काम में शामिल होना चाहिए । उस समय इस प्रकार का मानसिक और वैचारिक वातावरण वहाँ था ।