अब श्री. रामभाऊ जोशी ने यशवंतरावजी के जन्म की तारीख १२ मार्च १९१४ लिखी है । लेखक यशवंतरावजी ने 'कृष्णाकाठ' में लिखा है - ''ऐसे देवराष्ट्र गाँव में मेरा जन्म १२ मार्च १९१३ को हुआ है । शाला का सर्टिफिकेट इतना ही इसका सबूत हुआ है । मैं मेरी माँका पाँचवाँ अथवा छटवाँ अपत्य होने के कारण मेरे जन्म की तारीख किसी ने नहीं लिखी । मेरा जन्म अर्थात् महत्त्वपूर्ण सुवर्णक्षण है ऐसी कोई परिस्थिति नहीं थी । आज अनेक लोग मुझसे कहते हैं - 'तुम्हारी निश्चित जन्मतारीख कहिए ।' और इसी जन्मतारीख को मैं मेरी सालगिरह मनाता हूँ । लेकिन शत-प्रतिशत यही मेरी जन्मतारीख है, यह मैं निश्चित रूप से नहीं कह सकता । परंतु मेरी माँ ने और नानी ने मुझे मेरे जन्म-समय की विस्तृत जानकारी मेरे बचपन में कही थी । आगे माँ से पूछ कर मैंने वह तारीख निश्चित की थी ।'' (यशवंतराव चव्हाण - 'कृष्णाकाठ', पृ. १३) इससे स्पष्ट है कि यशवंतरावजी की जन्मतारीख १२ मार्च १९१४ न होकर १२ मार्च १९१३ ही है । इस में दो मत नहीं हो सकते ।
यशवंतरावजी आगे कहते है, ''ननिहाल में मेरी माँ को सभी 'आक्का' कहते थे । वह घर में सब में बडी थी । इसलिए आने-जानेवाला मनुष्य भी उसे 'आक्का' ही कहता था ।''
एक बार यशवंतरावजी ननिहाल में थे तब उसने नानी से पूछा था, तब उसने कहा था - 'आक्का का नाम देव का है । विठाई अपना देव है ।'
''आगे नानी क्या कहती है, वह मेरी समझ में नहीं आया । लेकिन उसने कुछ अच्छा कहा है ऐसे मुझे लगा ।
इस समय बोलते बोलते उसने मेरे नाम के पीछे जो कथा थी वह मुझे कही । उसने कहाँ - 'तुम्हारे जन्म के समय बडी पीडा हुई थी । वह बेहोश हो गयी थी । अपना गाँव एक छोटासा देहात था । वहाँ दवापानी की सुविधा नहीं थी । घरेलू औषधपानी किया, पर उसका कुछ उपयोग नहीं हुआ । मुझे चिंता लगी । आखिर सागरोबा को गुहार लगायी । अंतःकरण से देव की प्रार्थना की । आक्का को जिंदा रखने में मेरे हाथ को यश दे । तुम्हारे स्मरण के रूप में लडके का नाम यशवंत रख्रूगी । सागरोबा ने मेरी प्रार्थना सुन ली । इसलिए तुम्हारा नाम 'यशवंत' रखा है ।'
नानी ने संकट दूर हो जाए इसलिए अपने गाल पर से अपनी उंगलियाँ घुमायी और अपनी उंगलियों की कडकड आवाज कर दी ।''
रात में नानीने 'यशवंतरावजी' को भस्म लगाया । 'विठाई' और 'यशवंत' दो नामों के पीछे का इतिहास पहले पहले उनको मालूम हुआ ।
माँ के प्राण की साक्ष - यशवंत का नाम 'यशवंत' है । यह समझने के बाद 'माँ' ही यशवंतरावजी का प्राण बन गयी ।