अधुनिक महाराष्ट्र के शिल्पकार-८६

विविध विषयोंपर यशवंतरावजी के विचार

राष्ट्रवाद 

प्रामाणिक राष्ट्रवादी विचार ये स्वातंत्र्योत्तर काल में प्रारंभिक २० वर्षों में नेतृत्व का वैशिष्ट्य था । यशवंतरावजी के विचारों को अनुभवों की साथ थी । उसमें सीधापन और सरलता थी । इसलिए सामान्य मनुष्य को उनके विचार पसंद पडते थे ।

१९५७ में नाशिक में महाराष्ट्र सामाजिक परिषद के तीसरे अधिवेशन का उद्घाटन करते हुए यशवंतरावजी ने अपने भाषण में कहा कि - 'भारत एक राष्ट्र बना हुआ है ऐसे अपने नेता चिल्लाहकर कहते रहते हैं । राज्य घटना ने भारतीय नागरिकत्व की व्याख्या मंजूर की है । पर उस नागरिकत्व का अनुभव आना चाहिए । हमे राजनैतिक स्वातंत्र्य मिला हुआ है । उसके पीछे सामाजिक मूल्य और सामाजिक प्रेरणा न हो तो वह स्वातंत्र्य व्यर्थ है । पुरानी श्रद्धाओं को चिपककर न रहकर नयी श्रद्धाओं की खोज करनी चाहिए ।  राजनीति पहले या समाजकारण पहले यह भाग अप्रस्तुत है । क्योंकि राजनीति समाजकारण का एक भाग है ।'

सांप्रत के विज्ञान युगमें विज्ञान के विध्वंसक स्वरूप से दुनिया को बचाने के लिए सामाजिक परिषद जैसी संस्थाओं को नये मूल्य और नयी प्रेरणाएँ देनी चाहिए ।

भारत ने कठीन प्रयत्‍न करके स्वातंत्र्य प्राप्‍त किया है । लेकिन अब हमे केवल राजनैतिक स्वातंत्र्य नहीं चाहिए । उसके लिए नये मूल्य, नयी प्रेरणा और नये विचार समाजनेता ही दे सकते हैं । अब आत्मसंशोधन की अधिक जरुरत है । निडर भारतीय नागरिकत्व का पालनपोषण होना चाहिए । निडर भारतीय नागरिकत्व केवल राजनैतिक नेता निर्माण नहीं कर सकते । उसके लिए समाजकारणों की अधिक जरुरत है ।

इस विचार से एक सच्चा भारतीय अपने सामने खडा रहता है । आज हमे यह निश्चित रूप से स्वीकार करना पडेगा कि हम लोगों ने भारत का एक जनतंत्र राज्य निर्माण किया है । पर भारत का एक जनतंत्र राष्ट्र निर्माण नहीं हुआ है । राज्य यह भौतिक संकल्पना है । जनसंख्या, भूप्रदेश, शासनसंस्था और सार्वभौमत्व ये चार घटक होनेपर राज्य निर्माण होता है । राष्ट्र यह मानसिक अवस्था है । प्रत्येक नागरिक के मन में यह दृढ होना आवश्यक है । 'यह देश मेरा है' ऐसे प्रत्येक भारतीय नागरिक को प्रामाणिकता से लगेगा तो एक राष्ट्र निर्माण होगा । परंतु आज ही आप भारत यह एक राष्ट्र है ऐसा कहने का साहस कोई नहीं कर सकता । धर्म, जात, पंथ, भाषा के आधारपर छोटे-छोटे घेरे देश में निर्माण हुए हैं और व्यक्ति की निष्ठा इस घेरे के आसपास केंद्रित हुई है ।  देश के विषय में विचार करने के लिए समय है किस के पास ? पहले परिवार, फिर जात, उसके बाद धर्म, प्रदेश, भाषा, फिर समय शेष रहा तो देश !