विरोधी पक्ष नेता
१९७७ के चुनाव में इंदिरा काँग्रेस की पराजय हुई और यशवंतरावजी विरोधी पक्ष नेता बन गये । परंतु यह नयी भूमिका उन्हें अप्रिय लगी । विरोधी पक्ष नेता के रूप में उनका कार्यकाल बहुत अच्छा नहीं रहा । अनेक प्रसंगों में उन्हें इंदिरा गांधीजी का रोष स्वीकारना पडा । इस काल में राजनीति के दाँवपेंच कम पडने लगे ।
यशवंतराव चव्हाण सच्चे अर्थ में महाराष्ट्र के नेता थे । वे महाराष्ट्र प्रशासन में और पक्ष के भी प्रमुख थे । जब वे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे तब उनका कार्यकाल यशस्वी हुआ । उनके प्रत्येक निर्णय का स्वागत हुआ, परंतु केंद्रीय राजनीति में उनके प्रत्येक निर्णय का स्वागत नहीं हुआ । अनेक प्रसंगों में उन्हें दूसरों के विचार स्वीकार करने पडे । जब वे विभिन्न विभागों के मंत्री थे तब उन्हें स्वतंत्र निर्णय लेना संभव नहीं हो सकता था । इन सब बातों के कारण उनके विचार में और कार्य में बाधा पडी थी ।
यशवंतरावजी अन्ततक महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहते तो सद्य स्थिति में महाराष्ट्र का चित्र अलग दिखाई देता । शायद महाराष्ट्र की अभूतपूर्व प्रगति हो जाती । परंतू यह नियति के मन में नहीं था । मराठी राज्य की स्थापना होने के बाद यशवंतरावजी केवल दो वर्षं ही महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रह सके । उन्होंने केवल विकासों की दिशाएँ निश्चित की थी । उन्होंने योजनाएं बनायी । परंतु उनके मन में महाराष्ट्र के लिए जो योजनाएँ थी, वह प्रत्यक्ष कृति में नहीं आयी । अन्ततक उन्हें महाराष्ट्र के प्रति अंतर्मन में आस्था और प्रेम था ।
कुल मिलाकर यशवंतराव चव्हाण ने संसदीय सचिव से स्वतंत्र विभाग तक अनेक पद विभूषित किये । इन में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री, भारत के रक्षा मंत्री, गृहमंत्री, विदेशमंत्री, अर्थमंत्री, विरोधी पक्षनेता आदि महत्त्वपूर्ण उच्च पद सँभाले । इन पदों पर रहकर राष्ट्रीय स्तर पर जो महत्त्वपूर्ण कार्य किया उसके कारण भारत की पहचान संसार में एक महत्त्वपूर्ण राष्ट्र के रूप में निर्माण हुई । यह हमारे देश के लिए महत्त्वपूर्ण घटना है ।
सारांश - कुछ मनुष्य जन्मतः बडे होते है, कुछ मनुष्य पर बडप्पन लादा जाता है । कुछ अपवादात्मक मनुष्य अपने अंग के गुणों से और कर्तृत्व से बडे होते हैं, ऐसा जगप्रसिद्ध नाटककार शेक्सपियर का एक वचन है । स्वकर्तृत्व से और कार्य से गुणवंत, यशवंत और कीर्तिवंत होनेवाले अपवादात्मक मनुष्यों में यशवंतरावजी यह एक अग्रगण्य थे ।
अपने कर्तृत्व और नेतृत्व से यशवंतरावजी सामान्य में से असामान्य थे । यशवंतरावजी नाम की व्यक्ति बडी थी । विचार से, आचार से, बुद्धिमत्ता से, कर्तृत्व से और मनुष्यता से । १९४० से १९८० के दरमियान जो पिढी थी उसका अनुभव उस पिढी को आया है । जिन्होंने यशवंतरावजी को ४० वर्षों से देखा, उन्होंने उद्गार निकाले - 'ऐसा मनुष्य होना भविष्य में असंभव ।'
एक छोटेसे देहात में गरीब, अशिक्षित परिवार में उनका जन्म हुआ । आर्थिक विवंचना और गरिबी में उनका बचपन बिता । शिक्षा लेते समय अनेक बाधाएँ आयी । शिक्षा लेते समय उन्होंने स्वातंत्र्य आंदोलन में भी भाग लिया । ऐसा कर्तृत्ववान विद्यार्थी मनुष्य कराड के मुहल्ले से राजधानी दिल्ली तक जा पहुँचा । उन्होंने महाराष्ट्र में ही नहीं, तो देश में और संसार में कीर्ति, ख्याति प्राप्त की । यह कितना प्रशंसनीय कार्य कर्तृत्व है ।
राजनीति में, समाजकारणों में, शिक्षा में, साहित्यकाल में रस लेकर अपना सहयोग देकर यशवंतरावजी ने महाराष्ट्र के विविध क्षेत्रों को रंग, रूप दिया और महाराष्ट्र बडा करने में और आगे ले जाने में अपना महत्त्वपूर्ण हिस्सा उठा लिया । सार्वजनिक जीवन में काम करनेवाली एक नयी पिढी तैयार की और यशवंतरावजी उस नयी पिढी के शिलेदार बन गये ।