शासकीय पदोंपर काम करते हुए उन्होंने अपने कार्य से छाप डाली और प्रगतिशील राष्ट्ररचना का कार्य किया ।
माँ मराठी के महाराष्ट्र के इस 'यशवंत' भूमिपुत्र ने आजन्म देश-सेवा के व्रत का पालन किया था । २५ नवंबर १९८४ में उनका निधन हुआ । उनके निधन से कभी भी भर न आनेवाला उनका स्थान रिक्त हुआ था । यशवंतरावजी एक बडे विचारवंत और नीतिमान, सतशील, तत्त्वशील, पुरोगामी, कर्तृत्वसंपन्न कूटनीतिज्ञ और महाराष्ट्र राज्य के शिल्पकार थे । राजनीति में से समाजकारण करनेवाले कर्तृत्ववान नेता को महाराष्ट्र विन्मुख हो गया ।
रक्षा मंत्री यशवंतरावजी अपने सेनाधिकारियों में, सेना में, सनदी और नागरी अधिकारियों में प्रिय हो गये । रक्षा मंत्री बनने पर उन्होंने संरक्षण शास्त्र में होनेवाली सूक्ष्म बातों का अच्छी तरह अभ्यास किया । १९७१ के युद्ध के समय रक्षा मंत्री न होते हुए भी प्रधानमंत्री इंदिरा गांधीजी ने पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा शरणागति स्वीकार कर एक तरफा युद्धविराम घोषित करने के पूर्व अकेले यशवंतरावजी को बुलाकर प्रथाम विश्वास में लेकर अनौपचारिक विचार-विमर्श कर उनके नेतृत्व के विषय में अपनी आस्था और आदर प्रकट किया था ।
उप प्रधानमंत्री
जुलै १९७९ में उन्हें फिर से मौका आया था, परंतु काँग्रेस संसदीय पक्ष ने चौधरी चरणसिंगजी को समर्थन देने का निर्णय लिया । यशवंतरावजी चरणसिंगजी मंत्रिमंडल में उप प्रधानमंत्री हो गये । परंतु उनकी सरकार अल्पकाल ही सत्ता पर रही । फिर भी उप प्रधानमंत्री की दृष्टि से यशवंतरावजी का कार्यकाल प्रशंसनीय रहा ।
वित्त आयोग के अध्यक्ष
१९८० में हुए चुनाव के बाद श्रीमती इंदिरा गांधीजी फिर से प्रधानमंत्री बन गयी । जनमत का कौल ध्यान में लेकर यशवंतरावजी को आय काँग्रेस में प्रवेश दिया । उसके बाद इंदिराजीने उनकी नियोजन आयोग के अध्यक्ष पद पर नियुक्ति की । यह काम भी उन्होंने अच्छी तरह किया ।