अधुनिक महाराष्ट्र के शिल्पकार-७३

स्वच्छ प्रतिमा का नेतृत्व

एक देदिप्यमान गुण यशवंतरावजी के पास था । वह गुण यहाँ कहना चाहिए । आज की राजनीति में यह बहुत दुर्लभ गुण है । यशवंतरावजी से राजनैतिक मतभेद करनेवाला कोई भी मनुष्य यशवंतरावजी अनाचारी थे ऐसा इलजाम स्वप्न में भी नहीं कर सकेगा ।  यशवंतरावजी ने पैसे लिये, यशवंतरावजी के आदमी खुद के काम के लिए सरकार चलाते है, यशवंतरावजी ने सिफारिश की होगी ऐसा इलजाम कोई भी नहीं कर सका । स्वच्छ प्रतिभासंपन्न नेतृत्व ऐसा लौकिक यशवंतरावजीने पिछले २५-३० वर्षं सुरक्षित रखा है और वह भी आखिर तक । यह बात देखने के लिए आसान लगती है, पर व्यवहार में बहुत बडी मुश्किल है । महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने अच्छा, आदर्श और अनुकरणीय काम किया है । देश के रक्षामंत्री, अर्थमंत्री, विदेशमंत्री आदि विविध और बडे पदों पर उन्होंने काम किया और वह काम करते समय वे किसी प्रकार के मोह में उलझे नहीं और उनके खिलाफ कुछभी अनुचित बातें किसी भी अखबार में छपकर नहीं आयी ।  राजनीति के गढे में रहते हुए भी उन्होंने अपने शरीर पर कीचड की जरा भी छींटे नहीं आने दी । उनके मतानुसार सफेद धोती और सफेद कमीज पहनकर राजनैतिक जीवन जीता जा सकता है । यह महाराष्ट्र की राजनीति में सर्वोत्कृष्ट प्रयोग कहा जा सकता है । राजनीति में रहकर इतनी निर्मलता, इतनी साधनशुचिता, इतना सामंजस्य, इतनी शब्दों की मृदुता और चारित्र्य की स्वच्छता आजतक किसी नेता ने दिखाई नहीं और शायद आगे कोई दिखायेगा नहीं । इसलिए यशवंतरावजी का नेतृत्व विलोभनीय और सबको प्रिय था ।

उच्च राष्ट्रीय चारित्र्य

और एक बहुत दुर्लभ गुण यशवंतरावजी में था । उन्होंने व्यक्तिगत राष्ट्रीय चारित्र्य को जीवन में बडा महत्त्व दिया था । आज की राजनीति में बहुत नेता स्वयं की सुविधा देखते हैं । स्वयं का आर्थिक फायदा कहाँ होता है, इसका वे विचार करते हैं और अपने पश्चात के दो पीढियों का प्रबंध करते हैं । यशवंतरावजी कितने उच्च दर्जा के नेता थे ।  पिछले चार-पाँच वर्षों में उन्होंने महाराष्ट्र और भारत को उन्नत बनाने में बडा योगदान दिया है । इससे उनके महान कार्य का दर्शन होता है । १९७५-१९८० में उन्होंने इंदिरा गांधीजी का विरोध करने की भूमिका अदा की । पर उस भूमिका में उन्होंने कभी गंदी बाते नहीं की । पर जिस क्षण उन्हें लगा कि सारा देश इंदिराजी के पीछे हैं उस क्षण उन्होंने विचार किया कि अब काँग्रेस पक्ष को शक्ति देनी चाहिए । अतः उन्होंने व्यक्तिगत मान-अपमान एक तरफ रखकर इंदिराजी की सहायता की । उनके मित्रों ने उनकी इस नीति की आलोचना की । यशवंतरावजी के विचारों की ऊँचाई बहुत बडी थी ।  राष्ट्रीय प्रश्नों को महत्त्व देने की उनकी भूमिका निर्णयात्मक थी । यशवंतरावजी ने चार वर्षं के पूर्व यह बात स्पष्ट की थी । राष्ट्रीय हित के सामने व्यक्तिगत राग, लोभ तुच्छ होते है, यह बात यशवंतरावजी ने अपनी निर्णायक कृति से दिखा दी । पद मिले अथवा न मिले राष्ट्रीय कर्तव्य में कभी भी कसूर नहीं की । यशवंतरावजी की राजनैतिक जीवन की महत्ता ऐसे प्रसंगों से सिद्ध हुई है ।

राजीव गांधीजी प्रधानमंत्री होने के बाद देश के सामने जो आवाहन है ऐसे समय समझदारी से और होशियारी से सलाह देनेवाले मनुष्य राजनीति में धीरे धीरे कम हो रहे है । ऐसे समय यशवंतरावजी जैसा तारा उखल जाना यह महाराष्ट्र का और देश का दुर्दैव है ।

पीछले डेढ वर्ष से वे उदास थे । वे अकेले थे । लेकिन देश के अनेक प्रश्नों को स्वतः को उलझकर मन को उत्साह देने का वे प्रयत्‍न कर रहे थे । उस में से वे बाहर नहीं आ सके और अंत में एक सुसंस्कृत नेतृत्व को हम सब वंचित हो गये । ऐसा लगता है कि महाराष्ट्र आज निराधार हुआ है । एक कर्तृत्वसंपन्न जीवन का अंत हुआ है । एकाध हराभरा पेड गिर पडे और सारा प्रदेश रुखा-सूखा लगे वैसे अब महाराष्ट्र के राजनैतिक जीवन का चित्र बन रहा है । यशवंतरावजी की 'महत्ता' यह वादातीत महत्ता थी । अब उनके पश्चात् महाराष्ट्र को सुसंस्कृत, समंजस और मजबूत वैचारिक दिशा देनेवाला नेतृत्व कब निर्माण होगा ? नेहरूजी के चले जाने के बाद देश जैसा निराधार हुआ था वैसे ही यशवंतरावजी के निधन के बाद महाराष्ट्र भी निराधार हुआ ।