अधुनिक महाराष्ट्र के शिल्पकार-६८

जनता जनार्दन की पूजा

किसी ने विठाईसे प्रश्न पूछा - 'क्या यशवंतरावजी देवपूजा करते है ?' श्रीमती विठाईने उत्तर दिया - 'हम कराड में देवपूजा करते हैं । यशवंतरावजी पूजा नहीं करते । लेकिन देव उनके हृदय में है ।' देवघर में पत्थर-मिट्टी के निर्जीव धातु के देवदेवताओं की पूजा ना. यशवंतरावजी नहीं करते । लेकिन जनकल्याण की योजनाओं की रूपरेखा तैयार कर उसे पूरा करने के लिए वे रात-दिन कष्ट करते हैं । यही उनकी जनता जनार्दन की पूजा है । विठाई के कहने में सत्यता तो है ही और गहरा अर्थ भरा हुआ है ।

ग्रंथप्रेमी यशवंतराव

ग्रंथप्रेम यह यशवंतरावजी की विशेषता थी । उत्कृष्ट ग्रंथों का संग्रह करना यह उनकी विशेषता थी । उनके मलबार हिल के निवासस्थान में उत्तमोत्तम चुने हुए ग्रंथों का एक ग्रंथालय था । उनके ग्रंथ ठीक तरहसे लगाने के लिए एक मनुष्य जाता था । वह यशवंतरावजी के इस विलक्षण छंद की प्रशंसा करता था ।

कभी कभी ऐसा हो जाता कि यशवंतरावजी अच्छे ग्रंथ पर एक छोटा कागज चिपकाते थे और उस पर स्वहस्ताक्षर में लिखते थे कि - 'यह पुस्तक मैंने पूर्ण पढी है । अच्छी है ।  आप भी पढिए ।' यह शिफारिस अपने मंत्रीमंडल में एकाध मंत्री को की जाती थी ।  यशवंतरावजी अपने काम की व्यस्तता में ग्रंथों का पठन कब करते हैं, इस बात का सबको आश्चर्य लगता था ।

जीवन में निर्णायक चुनावी प्रतियोगिता

१९५७ में संयुक्त महाराष्ट्र का आंदोलन चल रहा था । कराड में उस चुनाव में साहबजी और केशवराव दादाजी इन दोनों उम्मीदवारों में निर्णायक प्रतियोगिता थी । उस मतदार संघ में धों. म. मोहितेजी एक सप्ताहभर दादा का प्रचार करने के लिये घूम रहे थे ।  हमारी छोटी बहन इसी मतदार संघ में कोरेगाव नामक देहात में ब्याही गयी थी ।  कोरेगाव और कार्वे ये दोनों गाँव काँग्रेस के थे । विपक्षी लोगों को वहाँ प्रवेश नहीं था ।  हमारी बहन ने एक युक्ति की । उसने छोटे लडके को एक घोषणा पढायी । जहाँ मनुष्य बैठे रहते है, वहाँ वह लडका जाता और कहता कि - 'बैल बाँधो पेड को, मत दो गाडी को ।' बहन के पति गाँव के पाटील थे । वे खूब बेचैन हो जाते थे । पर करेंगे क्या ?  साहब का दौरा कोरेगाव आया । गाँव के प्रवेशद्वार पर गाँववाले एकत्र हुए । साहबजी की आरती उतारने के लिए गाँव की सुवासिनी तैयार थीं । हमारी बहन गाँव की पाटलीण ।  इसलिए आरती उतारने का सर्वप्रथम मान उसका । उसे डाटते हुए उसने बहन को गडबड न करने की सलाह दी । छोटा लडका दूर रहे ऐसी व्यवस्था की गयी ।

साहबजी आये । बहन ने उनके माथेपर कुंकुमतिलक लगाया । आरती उतारते समय उसने कहा - 'साहब, मैं धों. म. मोहिते की बहन ।' परंतु उसके कंधे पर हाथ रखकर साहबजीने उससे पूछा - 'फिर तू किसे मत दोगी ?' उसने तुरंत उत्तर दिया - 'मत देते समय तय करूँगी ।' अन्त में इस चुनाव में यशवंतरावजी विजयी हुए । उसके बाद यशवंतरावजी आगे ही बढते गये ।