अधुनिक महाराष्ट्र के शिल्पकार-७१

यशवंतरावजी की देवी-देवता पर श्रद्धा

लोग साहबजी को देवता के समान मानते थे । साहबजी भी देव को मानते थे ।  साहबजी प्रवास में हो तो भी मकाम के आसपास प्रसिद्ध देवस्थान हो तो वहाँ गये बिना नहीं रहते थे । सातारा जिले में और महाराष्ट्र में कोई देवस्थान हो तो वे सौ. वेणूताईजी को साथ लेकर वहाँ अनेक बार गये हैं । परंतु काशी के विश्वनाथ मंदिर और हरिद्वार की 'हरी की पावडी' का दर्शन कभी चुकाया नहीं । गंगोत्री जाकर गंगा की और शंकर की पूजा करने में कभी नहीं चुके । साहब श्रद्धा से पूजा करने में कभी नहीं चुके । साहबजी की श्रद्धा हिंदू धर्म की देवी-देवताओंके साथ साथ अन्य धर्म पर भी थी । अजमेर और निजामुद्दीन (दिल्ली) दर्गेपर भी जाते थे । १९७७ के चुनाव के बाद यशवंतरावजीने वेणूताईजी से हम आग्रा जायेंगे ऐसे कहा । वेणूताईजी को इसका अर्थबोध नहीं हो सका । तब उन्होंने कहा कि आग्रा के पास फत्तेपूर सिक्री है । वहाँ सलीम चिस्ती का दर्गा है । उसका दर्शन लेने की मेरी इच्छा है । तुरंत दर्गेपर डाली जानेवाली चद्दर, पूजा का साहित्य लाने के लिए मनुष्य भेज दिया । दूसरे दिन सुबह साहबजी, सौ. वेणूताईजी, अनंतराव पाटीलजी ऐसे तीनों फत्तेपूर सिक्री पहुँचे । पंधरा-बीस मिनट ठहरकर समाधि का दर्शन किया । सौ. वेणूताईजी को ९-१० घंटे का सफर करना उनकी तबीयत के लिए असंभव था । लेकिन श्रद्धा के सामने उन्हें उसका महत्त्व नहीं लगता था । साहबजी सुबह साईबाबा की मूर्ति के सामने और देव के सामने ५-१० मिनट नतमस्तक होकर खडे रहते थे और फिर कमरे के बाहर आते थे । एक राजनीतिज्ञ आदमी की श्रद्धा प्रेरणादायी है ।

प्रशासक

मुख्यमंत्री मोरारजीभाई की एकांगी भूमिका से लोगों के मन दुःखित हुए थे । उसके बाद यशवंतरावजी महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने थे । उन्होंने बंदुकी के जोर पर द्विभाषिक राज्य का कारोबार चलाना अनुचित समझा । समिति के आंदोलन का रेला, लोगों के मत का जोर और यशवंतरावजी के कारोबार की जोड इन सबके कारण महाराष्ट्र राज्य की स्थापना हुई, तब मराठी मन में नयी आशा की कोंपले फूट पडी । इसलिए कुसुमाग्रज जैसे बडे मराठी कवि ने घोषणा की.....

''नव्या जीवनाचा नाद
मला ऐकू येत आहे ॥
लक्ष शून्यातून
काही श्रेय आकारत आहे ॥''

यशवंतरावजी ने शक्कर कारखानों की योजना और उसे पूरी करने के लिए सरकार की नीति बनायी और सरकार की ओर से उन्हें मदद भी की । शिक्षा प्रसार के लिए शाला और महाविद्यालय खोल दिये । मराठवाडा और शिवाजी विद्यापीठ की स्थापना की ।  उन्होंने महाराष्ट्र के सभी क्षेत्रों में उन्नति की नींव डाली । और इसी कारण देश में महाराष्ट्र अग्रेसर हुआ ।