रक्षा मंत्री
चीन ने २० अक्तूबर १९६२ को भारत पर आक्रमण किया । इसलिए प्रधानमंत्री पं. नेहरूजी पूरी तरहसे व्यथित हुए । ऐसी परिस्थिति में संसद में कृष्णमेनन को रक्षा मंत्री पद से दूर करने की माँग की जाने लगी । इस कठिन समय में प्रधान मंत्री पं. नेहरूजीने १४ नवंबर १९६२ को रक्षा मंत्री पद पर श्री. यशवंतराव चव्हाण की नियुक्ति की । क्योंकि चीन का आक्रमण अर्थात नैतिक पराजय । यह पराजय पं. नेहरू की नीति की पराजय थी । रक्षा मंत्री बनने पर श्री. यशवंतराव चव्हाण दिल्ली गये । उसके दूसरे दिन चीनने अपनी तरफसे युद्ध विराम कर दिया और १४५०० चौ. मील भारत का प्रदेश हडप लिया । इस घटना का वर्णन ऐसा किया गया - 'सह्याद्रि हिमालय की रक्षा के लिए चला गया ।' १ मई १९६० को स्वतंत्र महाराष्ट्र निर्माण हुआ । इस समय महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री श्री. यशवंतराव चव्हाण ने पं. नेहरूजी के समक्ष भाषण किया कि - 'मराठी भाषिकों के पास जो देने जैसा है, जो उदात्त है, भारत के लिए उसका त्याग करना पडे तो हम वह त्याग करेंगे । क्योंकि भारत रहेगा तो महाराष्ट्र रहेगा, भारत महान हुआ तो महाराष्ट्र भी महान होगा ।' यशवंतरावजी द्वारा व्यक्त की गयी राष्ट्रीय भावना से पं. नेहरूजी बहुत प्रभावित हुए । इसलिए तो ऐसे कठिन समय में यशवंतरावजी पर रक्षा मंत्री पद की जिम्मेदारी सौंपी गयी । रक्षा यह केवल सेना से संबंधित बात न होकर उसे महत्त्वपूर्ण राजनैतिक, आर्थिक और मानसशास्त्रीय पहलू होते हैं, उसे ध्यान में रखते हुए उन्होंने रक्षा विभाग का कार्यभार देखा ।
पं. नेहरूजी ने अलिप्तता नीति का स्वीकार किया और उन्होंने रक्षा नीति की ओर आवश्यक ध्यान केंद्रित नहीं किया । इसलिए तो भारत को चीन से पराजय स्वीकार करना पडा । इसलिए उन्होंने रक्षा व्यवस्था बलवान बनाने के लिए नेफा और लडाख सीमा को भेट देकर युद्ध में सूक्ष्मतर सूक्ष्म बातें समझा ली । १९६२ में चीन से भारत की पराजय हुई । इसलिए सैनिक निराश हो गये थे । तब उन्होंने सीमा भाग में जाकर सैनिकों का मनोधैर्य बढाया ।
यशवंतरावजीने प्राण की बाजी लगाकर महाराष्ट्र की प्रगति की । जब चिनी राज्यकर्ताओं ने भारत को भेट देकर 'हिंदी-चिनी भाई-भाई' की घोषणाएँ दी और उसके बाद विश्वासघात से उन्होंने भारत पर अचानक हमला किया, उस समय भारत की परिस्थिति बहुत नाजूक बनी हुई थी । परंतु उस समय भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री यशवंतरावजी को दिल्ली बुलाया । उन्होंने यशवंतरावजी पर देश का महत्त्वपूर्ण संरक्षण विभाग सौंप दिया । यशवंतरावजी जब बम्बई से नयी दिल्ली जाने के लिए निकल पडे उस समय यशवंतराव चव्हाण के बम्बई के 'सह्याद्री' निवासस्थान से सांताक्रूझ हवाई अड्डे तक हजारों लोग रास्ते के दुतर्फा खडे होकर उन्हें बिदा देने के लिए आये थे । उस समय सब लोग प्रेम से 'यशवंतराव विजयी भव' ऐसी शुभेच्छा व्यक्त करते हुए घोषणा दे रहे थे । लोग 'यशवंत भव, जयवंत भव' ऐसी शुभाशीर्वादात्मक घोषणा दे रहे थे । उसके बाद यशवंतरावजी दिल्ली पहुँच गये । रक्षा मंत्री के रूप में उन्होंने रक्षा का कारोबार अपने हाथ में लिया । आश्चर्य की बात तो यह है कि उन्होंने रक्षा मंत्री के सूत्र हाथ में लेते ही दूसरे दिन चिनी ने अपनी ओर से युद्ध विराम कर दिया । यह तो यशवंतराव चव्हाण की अपूर्व विजय थी ।
भूतपूर्व उपप्रधानमंत्री यशवंतराव चव्हाण का देहावसान २५ नवंबर १९८४ को हुआ । उनकी मृत्यु से भारतीय रक्षा दल को मिला हुआ एक कार्यक्षम रक्षा मंत्री सबको पीछे छोडकर चला गया । जनरल एस.पी.पी. थोरात कहते हैं कि - 'पिछले चालीस वर्षं मैं उन्हें पहचानता हूँ । इसलिए मैं कह सकता हूँ कि भारतीय सार्वजनिक जीवन में उनका व्यक्तिमत्त्व अद्वितीय था । चीनने भारत पर हमला कर भारत की बदनामी की । उस समय प्रधानमंत्री पं. नेहरूजीने कृष्णमेननजी की जगह पर यशवंतराव चव्हाण की नियुक्ति की । रक्षा मंत्री बनने पर यशवंतरावजी का राष्ट्रीय नेता के रूप में उदय
हुआ ।'