इ.स. १९२० में गांधीजी असहयोग के दृढ समर्थक को गये । उनके असहयोग का तात्पर्य था - आत्मबल द्वारा विदेशी सत्ता से असहयोग, सरकारी उपाधियों और सम्मानों का त्याग । डॉ. बक के मत से - स्वातंत्र्य आंदोलन के इतिहास में प्रथम बार किसी राष्ट्रीय नेता के लिए सदस्यों की संख्या में सांप्रदायिक भेद-भाव भुलाकर जनता एकत्रित हुई । इ.स. १९२८-२९ में पुनः देश में छात्र वर्ग एवं युवक समूह में राष्ट्रीय भावना प्रमुख हुई । 'देश में युवक आंदोलन का प्रादुर्भाव होना इस वर्ष (१९२८) की विशेषता थी । इ.स. १९२८ में साइमन कमिशन भारत आया । साइमन का विरोध करने के लिए लाहोर में लाला लजपत के नेतृत्व में एक विशाल जुलूस निकाला गया । आतंकवादी सरकार ने इस जुलूस को कुचलने के लिए लाठी चार्ज कराया । फलतः घटना स्थल पर लाला लजपतराय की मृत्यु हो गयी ।
२६ जनवरी १९३० को पूर्ण स्वराज्य दिवस मनाया गया । इसी वर्ष १२ मार्च, १९३० को गांधीजी ने दण्डीग्राम की ओर प्रस्थान किया । ६ अप्रैल, १९३० को गांधीजी ने नमक कानून तोडा । ५ मई को गांधीजी को बंदी बना लिया गया, फलतः देश में हडतालें हुई । यशवंतरावजी इन घटनाओं से अछूते न रहे । इसके बाद गांधी-इर्विन समझौता और गोलमेज सम्मेलन की ब्रिटिश कूटनीतिक चालों ने न केवल इस प्रवाह को रोक दिया, लेकिन बाद में विलिंग्डन के शासन काल के प्रारंभ (१९३१) में तीव्र दमन चक्र शुरू हो गया । द्वितीय गोलमेज सम्मेलन से गांधीजी को निराश लौटना पडा, उनके सहित सारे नेताओं की गिरफ्तारियाँ, फिर सांप्रदायिक निर्णय, और तीव्र से तीव्रतर होता ब्रिटिश सत्ता का दमन चक्र । फलतः आंदोलन में कुछ ठंडापन आ गया । समाजवादी विचारधारा के स्वरूप इ.स. १९३४ में काँग्रेस में समाजवादी दल की स्थापना हुई ।
इ.स. १९३५ के बाद भारतीय राष्ट्रवाद समाजवाद के प्रगतिशील तत्त्वों से अनुप्रेरित हुआ । काँग्रेसने इ.स. १९३७ के चुनावों में भाग लिया और ग्यारह में से छः राज्यों में उसकी विजय हुई । अब कोई हलचल न थी ।
१ सितंबर १९३९ को द्वितीय विश्वयुद्ध छिड गया और ३ सितम्बर को भारत को भी उस में सम्मिलित कर लिया गया । मार्च १९४० में मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की माँग प्रस्तुत की । जुलाई १९४० में सुभाष बोस को बन्दी बना लिया गया । इ.स. १९४२ तक भारत में रक्त-रंजित क्रांति हुई, जो कि असफल रही । १९४२ के अन्त तक लगभग ५३८ बार देश में गोली चली । ३ जून १९४७ को गांधीजी ने विभाजन स्वीकार कर लिया । हाँ, स्वयं गांधीजी इससे संतुष्ट नहीं थे ।
विभाजन के बाद गांधीजी की मृत्यु, गणराज्य की स्थापना, इ.स.१९६२ का चिनी आक्रमण, इ.स.१९६५ का पाकिस्तानी आक्रमण, नेहरू-शास्त्री की मृत्यु आदि प्रमुख घटनाओं के साथ दिसंबर १९७१ में भारत-पाकिस्तान युद्ध और 'बांगला देश' का उदय हुआ । इन सब घटनाओं से यशवंतरावजी अछूते न रहे । इन सब राजनैतिक घटनाओं का यशवंतरावजी पर परिणाम हुआ । इसलिए उन्होंने स्वातंत्र्य आंदोलन में हिस्सा लिया । इसके लिए उन्हें जेल में जाना पडा । देश स्वतंत्र होने के बाद वे राजनीति में ही रहे और विविध शासकीय पदोंपर आसनस्थ होकर देश की प्रगति करने के काम में जुट गये ।