महाराष्ट्र राज्य का शासन, बम्बई नगरी की विशेष स्थिती के कारण एक नाजुक विषय है, जिसमें अनेक प्रकारो के संतुलन की आवश्यकता है । श्री चव्हान की नीति की अच्छी प्रतिक्रिया हुई है, यह संतोष की बात है, कारण यह स्मरण रखने की बात है कि इस समस्या के अस्तित्व ने बम्बई सहित महाराष्ट्र का निर्माण एक राष्ट्रीय उलझन का विषय बना रक्का था । 'बम्बई राज्य' से गुजरात के बहिर्गमन के बाद बम्बई के औद्योगिक व्यावसायिक महत्त्व को स्थापित ही नहीं, वृद्धींगत रखना और महाराष्ट्र राज्य भर को बम्बई के औद्योगिक साहस व व्यावसायिक गतिशीलता का लाभ देना, दूरदर्शी नीति का तकाजा है । श्री चव्हान इस विषय में पर्याप्त सजगता दर्शा रहे है, जिसका लाभ महाराष्ट्र को मिलना अवश्यम्भावी है ।
महाराष्ट्र की राजनैतिक अवस्था इधर के वर्षो में अस्वाभाविकता की मोड लिये हुये बढी है । लोकमान्य तिलक की राष्ट्रीय चेतना ने भारत में जहां शुद्ध राष्ट्रीयता की जोरों को प्रेरणा दी, वहां उनके बाद महाराष्ट्र की राजनीतिक अवस्था में उद्दण्डता का प्रादुर्भाव अधिक मात्रा में हुआ और महाराष्ट्र का 'प्रेस' और जनजीवन दोनो की शुद्ध निष्ठा पर इसकी उल्टी छाप पडी । ये परिस्थितियाँ राष्ट्रीय नेतृत्व को आज भी एक चुनौती है । भाषावार राज्य रचना, स्वयंमें जहां एक अनिवार्य गति रखती थी, वहां इसक फल स्वरूप क्या हमारी राष्ट्रीय चेतना व एकात्मता संकुचित हुई है, यह विषय, हमारे राष्ट्रनायकों क लिये चिंतन का विषय बन गया है । आर्थिक दृष्टि से महाराष्ट्र कुछ पिछडा हुआ है । जन-जीवन को ऊपर उठाने का कार्य यहां और मी दुस्तर व परम आवश्यकता का स्वरुप रखता है । इन परिस्थितियों में महाराष्ट्र राज्य का नेतृत्व और मी कठिन है । यहां राष्ट्रीयता विरोधी तत्त्व इन परिस्थितियो का लभा उठाने को तैयार खडे है और जनजीवन को प्रभावित करनेवाला नेतृत्व एक कसौटी बन जाता है । श्री चव्हान ने इस कसौटी पर उत्तीर्ण होकर ही देश के नेतृत्व की श्रृंखलामें अपना स्थान बनाया है । महाराष्ट्र राज्य में बिना बडी विघ्न-बाधाओं के भविष्य के पति विश्वास जागृत हुआ है । और इसका श्रेय निश्चिय ही उन्हे प्राप्त है ।
श्री चव्हान के चार वर्षो के नेतृत्व ने उनकी योग्यता की छाप तो अंकित की ही है, इस काल में उनके व्यक्तित्व की प्रखरता व व्यापकता मी उभरी है । महाराष्ट्र में एक ओर मराठाशाही की, सही माने में, राष्ट्रीयतापूर्ण भावुकताके तो दूसरी ओर न्यू उत्तरदायित्वशील सार्वजनिक जीवन की गति-विधियोंके, बेढब राजनैतिक प्रांगण में श्री यशवंतराव चव्हान का व्यक्तिमत्व अपना आकर्षण अपनी चेतना, अपनी निर्णयशक्ति, अपनी भावना और अपना बल लिये हुये ऊपर उठा है, जिसने महाराष्ट्र की राजनैतिक अवस्था में सुधार ही नहीं किया बल्कि जो अपना मापदण्ड भी बना रहा है । देश के लिये यह एक सुचिन्ह है । उनके ४८ वें जन्म दिवस पर मेरी कामना है कि वे दीर्घायु हों और महाराष्ट्र एवं देश के नव-निर्माण के महान प्रयास में बढता हुआ योगदान दें ।
"महाराष्ट्र के सभी लोगों के साथ, चाहे वे राज्य के किसी भी भाग में क्यों न रहते हों, राज्य की ओरसे समान बर्ताव किया जाएगा । महाराष्ट्र सरकार का यह प्रयत्न रहेगा कि वह विदर्भ, मराठवाडा और शेष राज्य की जनता में उद्देश्यों की एकता तथा वैचारिक एकता के विकास की दिशा में प्रयत्न करे । इस प्रकार के उद्देश्य की एकता के जरिये राज्य की ओरसे प्रदान किये जानेवाली लाभों का समान वितरण स्वत: हो जायगा । राज्य पर औरंगाबाद और नान्देड, और चांदा तथा भण्डारा का वही दावा रहेगा जो कोल्हापूर और सातारा और पूना तथा रत्नागिरी का होगा ।
राज्य के नये विस्तारो अर्थात् विदर्भ और मराठवाडा को उनके वैध हितों के संरक्षण के बारे मे किसी प्रकार की आशंकाएं नहीं करनी चाहिए । बल्कि इसके विपरीत उनकी बडीं सतर्कता के साथ देखभाल की जाएगी और उनको महाराष्ट्र सरकार के एक पवित्र न्यास के रुप में माना जायगा ।"