मुख्यमंत्री : ऐसा कदापि नहीं हो सकता । इतना बडा बोझा शासन बर्दाश्त नही कर सकता ।
वातावरण गभ्भीर हो उठा । यह एक पत्रकार ने कहा - "जी चव्हान साहब, आपने हम लोगों का मामला एक मिनिट में खत्म कर दिया । कमसे कम कुछ 'गोला गोला' तो बोलना चाहिए ( जैसा कि बडे बडे नेता बोला करत है ) अगर इस मामले को आप विचाराधीन भी रखते तो हम लोगों को सन्तोष होता । "
मुख्यमंत्री तथा पास बेठे लोग ठहाका मार कर हँस पडे । मुख्यमंत्री ने झट जबाब दिया - "भाई, देखो, सभी मामले अगर 'विचाराधीन' ही रहेंगे तो कुछ मामलों के फैसले भी तो होने चाहिए न ? पर ठीक है, अगर हमारे विचाराधीन रखने से आप लोगों को सन्तोष होता है तो यह मामला विचाराधीन ही समझिए" "चलिए- आगे बढिए" मुख्यमंत्री ने कहा ।
यशवंतरावजी के लोकप्रियता की कुंजी
एक पत्रकार : आप सदा भावनात्मक एकता की बातें करते है, पर हम देखते है कि आपके 'कथनी' और 'करनी' में काफी अन्तर है ।
मुख्यमंत्री : (बीच में ) आपका क्या मतलब ?
मतलब यह कि -
"द्विभाषी बम्बई और महाराष्ट्र शासन में पुलिस विभाग में हिन्दी भाषा भाषियों की भर्ती पर रोक लगा दी गई है । अधिकारियों का कहना है कि 'ऊपर' का आर्डर है । आखिर यह 'ऊपर' क्या है ? किसी विभाग में किसी वर्ग विशेष को भर्ती होने से रोकना, न्याय-संगत नहीं । इससे प्रान्तीयता फैलती है । आपली भावनात्मक एकता के विपरीत यह बातें है । यद्यपि हम 'मराठी' नही जानते, फिर भी हमको पुलिस विभाग में भर्ती होने से वंचित करना अन्याय और भारी अन्याय है ।
मुख्यमंत्री : हमारा इस प्रकार का कोई आदेश नहीं कि हिंदी भाषा भाषियों को पुलिस विभाग में भर्ती न किया जाए । (पास बैठे डी.एस. पी. की ओर इशारा करते हुए ) कौन सा ऐसा आर्डर है ? ( पुलिस डी. एस. पी. मौन रहे । )
एक पत्रकार : आप का आदेश हो या न हो, पर पुलिस आफीसर यही कहते है । शायद आप का कोई 'गुप्त' आर्डर होगा ।
पत्रकार की बात सुनते ही सभी पुन: ठहाका मार कर हँस पडें । और मुख्यमंत्री बोल उठे ।
"अरे भाई, कोई गुप्त आर्डर नहीं है । हिन्दी भाषियो को भर्ती करने का मेरा आदेश है । जो अधिकारी इस आदेश का पालन नही करेगा उसके विरुद्ध कार्यवाही की जाएगी ।
एक पत्रकार : तो क्या आप सच्चे दिल से यह आदेश दे रहे है ?