अभिनंदन ग्रंथ - (हिंदी लेख)-महाराष्ट्र दर्शन-3

अभी कुछ समय पूर्व तर अनेक भागों में छिन्नभिन्न रुप से फैले हुए महाराष्ट्र की दशा एक भूलभुलैया के समान पहेली सी बनी हुई थी । स्वाधीनता प्राप्ति के अनन्तर देशी रियासतों और रजवाडों के विलीनीकरण के साथ भारत की प्रादेशिक सीमाओं का पुनर्गठन हुआ । गत मई मास में बम्बई के द्विभाषी प्रान्त का विभाजन इस प्रक्रिया का अंतिम चरण था । सांस्कृतिक दृष्टि से एकरूप राज्यो के तर्क को यदि स्वीकार कर लिया जाय तो महाराष्ट्र में अथवा किसी भी अन्य भाषाभाषी क्षेत्र में एकीकरण के जो आन्दोलन हुए, वे निरापद दिखाई देंगे । कम से कम महाराष्ट्र में भाषा और संस्कृति के आधार पर एकीकरण एक प्रबल जनजागरण की श्रीगणेश हुआ दीख पडता है । इस प्रदेश में जागरण की यह लहर एक वरदान के समान है जिसे यहां के विवेकशील नेताओ ने राज्य के विकासार्थ एक सुअवसर के रुप में बदल दिया है ।

जन और साधन दोनो ही दृष्टि से महाराष्ट्र सम्पन्न प्रदेश है । केन्द्रीय सरकार तथा योजना आयोग जनहित के लिये इन साधनो के समुचित उपयोग के लिये प्रयत्नशील है. किन्तु यह समस्या जितने विकट रूप में आप उपस्थित है ऐसी पहले कमी नही थी । जब हम वहा के विभिन्न मागों में कार्यान्वित योजनाओ का दर्शन करते है तो हमें आश्चर्य होता है कि किस प्रकार यहां के लोग शासन को सहयोग देने और उनसे लाभ उठाने में एक दुसरे से होड कर रहे है । यह महाराष्ट्र की समृद्धि और उनके सुन्दर भविष्य का प्रमाण है और इस प्रकार समस्त भारत के उज्ज्वल भविष्य का भी सूचक है ।

जिन लोगो के यह कल्पना की थी कि बम्बई के विभाजन के बाद अपने अनुभव की कमी के कारण महाराष्ट्र उद्योग और व्यापार चलाने और बढाने में पीछे रह जाएगा या कठिनाइयों से टकराकर पीछे इट जाएगा, उनकी भविष्यवाणी गलत सिद्ध हुई है । पहले तो व्यापार की दृष्टि से इस प्रदेश के लोगों की असमर्थ क्षमता को आंकना ही अतिशयोक्तिपूर्ण था । दुसरे, यह सोचना भी निरर्थक था कि महाराष्ट्र बन जाने के बाद अन्य भाषाभाषी व्यक्ति इस प्रदेश से अपना कामकाज समेटकर बाहर चले जाएंगे । इसका श्रेय इस प्रदेश के दूरदर्शी और योग्य मुख्यमंत्री हो ही देना होगा जिन्होने इस विभाजन के समय,महाराष्ट्र की नवनिर्माण वेला पर अपने पहले पहल भाषण में यह घोषणा की और विश्वास दिलाया की पूर्वनिर्मित बम्बई प्रान्त में बसने वाले सभी व्यक्तियों के साथ भाषा-भेद के विचार के बिना समान व्यवहार किया जाएगा । यह विचार और आश्वासन कितना सत्य था और कितने सच्चे दिल से कहा गया था यह अब स्पष्ट हो चुका है । भाषा-भेद के कारण कोई भी व्यापार या उद्योग आज बम्बई ( महाराष्ट्र) में बन्द नहीं हुआ । दुसरी और कई गुजराती व्यापार केन्द्रो का विस्तार राज्य सरकार की सहायता से हुआ है । किसी भी बाहरी दर्शक के लिये सच्ची राष्ट्रीयता की यह भावना और श्री चव्हान तथा उनकी सरकार की यह उदारता ही इस नवोदित महाराष्ट्र का बहुत बडा संबल है । जब तक विवेकशील उदारतापूर्ण यह महाराष्ट्र की रीति नीति बनी रहती है, अपने गौरवपूर्ण भूतकाल के स्थिर आधार पर खडा महाराष्ट्र प्रगति के भवन की मंजिलें बनाता चला जाएगा, व्यापार और उद्योग में बढता जाएगा और साहित्य तथा संस्कृति की उस परंपरा को निर्माता रहेगा ।

आइये, अब हम महाराष्ट्र के भौतिक साधनों और उसकी औद्योगिक संभावनाओ को देखें । कृषि उत्पादन की दृष्टि से महाराष्ट्र आत्मभरित ही नहीं बल्कि दुसरों को भी कुछ दे सकता है । इसमें कपास, तिलहन और गन्ने की खेत बडे पैमाने पर होती है और इस प्रकार राज्य के बडें उद्योगो के लिये कच्चा माल सुरक्षित है । जैसे जैसे नयी योजनाएं अमल में आती जाऐगी, अधिकाधिक भूमि में सिंचाई होगी और उत्पादन बढेगा । खानदेश, विदर्भ और कोंकण के क्षेत्रो में किसानो को नयी सुविधाएं मिलने जा रही है । कुछ तटवर्ती इलाकों में भी काजू, सुपारी, नारियल इत्यादि नकदी फसलो को बहुत प्रोत्साहन दिया जा रहा है । इन सबके फलस्वरुप किसान वर्ग की संपन्नता और उत्पादन में वृद्धि निश्चित है ।