अतः मेरा अनुरोध है कि आप लोग निःसंकोच वृत्तिसे मुक्त विचार-विमर्श कर नगरपालिका शासन में आवश्यक सुधारों की दृष्टि से मार्ग खोज निकालनेका प्रयास करें ।'' बडौदा के अधिवेशन में प्रवचन करते हुए कहा था : ''प्रथम पंचवर्षीय योजनामें नगरपालिकाओं की ओर विशेष ध्यान नहीं दिया गया लेकिन द्वितीय पंचवर्षीय योजना में इन पर खास ध्यान दिया जानेवाला है । गंदी बस्तियाँ हटाना प्रत्येक नगरपालिका का आद्य कर्तव्य है लेकिन उन्हें बसने और बढने न देना उससे भी महत्त्वपूर्ण कार्य है ।'' अब तक स्वायत्त शासन संस्थाओं में अनेक कार्यकर्ताओं ने कार्य किया । बहुत सी अच्छी बातें की; मुश्किलियों को हल किया; संकटमें से राह निकाली--लेकिन वह सब उन कार्यकर्ताओं के व्यक्तिगत गुणों का कारण हुआ । लेकिन यशवंतरावने ऐसे कार्यकर्ता एवं अधिकारियों को संगठित हो कार्य करने का आदेश दिया ।
ग्रामपंचायत यह प्रजातंत्र की नींव का पत्थर है और राज्यभर में उसका विस्तार भी बडे पैमाने पर होने के कारण यशवंतरावने अपने सहयोगियों की सहायता से सन् १९५४ में बम्बई राज्यीय ग्राम्य पंचायत संघ की स्थापना की थी । १९५५ के अगस्त ७ को उक्त संघ के पूना में आयोजित द्वितीय अधिवेशन का उद्घाटन करते हुए यशवंतराव ने कहा था : ''ग्राम्य पंचायतें केवल गाँवों की नागरी-शासन चलानेवाली यंत्रणा नहीं है बल्कि उन पर ग्राम्य-समाज के कल्याण की महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी है । पंचायत के सभ्य और अधिकारियों को निजी हित के बजाय समाजके हित को अधिक प्राधान्य देना चाहिए ।''
'जंगली जीवजंतुओं का संरक्षण' विषय पर रेडिओ प्रवचन देते हुए अक्तुबर १९५६ की पहली तारिख को यशवंतरावने बताया कि, वन-प्राणियों का संरक्षण जनता के साथ बिना प्रायः असंभव है । वन के प्राणि उपयुक्त कार्य कर मानव-जीवन की समृद्धि में जो योग प्रदान करते हैं - उस पर हमें गहराई से सोचना चाहिए । लोग सच नहीं मानेंगे लेकिन जंगली जीवजंतु मनुष्य के हितार्थ बहुत-कुछ करते हैं । साँप जैसा जहरीला प्राणी भी चूहें और घूस से फसल की रक्षा करता है । बाघ जंगली सूअर का शिकार करता है तभी जंगली सूअरों से फसल को पहुँचनेवाली हानि कम होती है । चित्ता बंदर का भक्षण करता है अतः बन्दरों से फसल की रक्षा होती है । यशवंतराव ने उपरोक्त प्रवचन द्वारा 'वन-प्राणियों की रक्षा करो' नारे को मानवी-दृष्टिकोण से समझाने का प्रयत्न किया है । सहजीवन और सहअस्तित्व के तथ्य जंगली-प्राणी भी अपनाते हैं तब मनुष्य को मनुष्य का उपयोगी क्यों न बनना चाहिए ?
ग्रामीण समाज को उन्नत बनाने के लिए हमें नये सिरे से प्रयत्न करने चाहिए । जब ब्रिटिश सत्ता भारत पर हावी थी तब उसने गाँवों को सुधारने की ओर जरा भी ध्यान नहीं दिया । लेकिन हमारे देश की आत्मा तो सात लाख गाँवों में बसी हुई है । अगर हमने अपनी आत्मा को ही उन्नत न बनाया तो फिर किया ही क्या जन्म लेकर ? यशवंतराव ग्रामीण समाज को शहरी समाज से अलग रखना नहीं चाहते । ठीक वैसे ही शहरी समाज की प्रगति कुंठित करना भी नहीं चाहते । वे यह चाहते हैं कि ग्रामीण-समाज शिक्षित बन कर अपने आप को पहचाने, अपने महत्त्व को समझे । इसी प्रश्न की बारीकियों में खोते हुऐ उन्होंने १५ अगस्त १९५८ को बम्बई आकाशवाणी केन्द्र से बोलते हुए कहा था : ''हमारे देश के सामने अगर कोई जटिल प्रश्न है तो वह यह है कि वर्तमान सामाजिक और आर्थिक ढांचे में शहरी और गाँवमें रहनेवाला भोला-भाला इन्सान बराबरी में नहीं बैठते - इन दोनों में जमीन आस्मान का अन्तर पड गया है, जिसे रोक कर भारतीय प्रजातंत्र की दोनों शक्तियों को एक सूत्र में बांधना होगा । उनमें परस्पर सद्भावना और अपनापन निर्माण करना होगा । और यह तभी हो सकता है जब अनपढ, गँवार ग्रामीण समाज को सुशिक्षित और सुसंस्कृत बनाया जाय । ग्रामीण शिक्षण अर्थात् शिक्षण क्षेत्र का कोई नया प्रकार नहीं - अगर वह शिक्षण लिया जाय तो सुशिक्षित अपने गाँव से दूर नहीं जाता बल्कि अपने गाँव की भलाई, विकास और उन्नतिमें सक्रिय भाग लेता है ।''