अधुनिक महाराष्ट्र के शिल्पकार-४२

पार्लमेंटरी सेक्रेटरी

१९४६ के मार्च महिने में चुनाव हुआ था और मार्च की तीस तारीख को काँग्रेस पार्लमेंटरी बोर्ड की सभा बम्बई प्रदेश काँग्रेस कमिटी के कार्यालय में भरी थी । पक्ष की सभा यह एक औपचारिक सभा थी । श्री. बालासाहेबजी खेर पक्षनेता चुने गये । उस समय सरदार पटेलजी भी उपस्थित थे । उन्होंने आशीर्वादात्मक भाषण किया और सभा समाप्‍त हुई ।  मंत्रिमंडल बनाने की चर्चा शुरू हुई । उनकी और श्री. बालासाहेबजी खेर की पहचार नहीं थी । इसलिए बालासाहब से मिलने की बात यशवंतरावजी के मन में नहीं आयी । श्री. भाऊसाहेबजी सोमण हरिजन उम्मीदवार के लिए प्रयत्‍न करने के लिए आये थे ।  यही बात उन्होंने यशवंतरावजी से कहीं थी । श्री. सोमणजी यशवंतरावजीके लिए किसी से कह दे, ऐसा प्रश्न ही निर्माण नहीं हुआ । लेकिन श्री. के. डी. पाटीलजी की इच्छा थी कि हमे भी कुछ प्रयत्‍न करना चाहिए । उनकी और मोरारजीभाई देसाईजी की येरवडा जेल में पहचान हुई थी । उनके मन में आया कि मोरारजीभाई से मिलना चाहिए । लेकिन यशवंतरावजीने उन्हें रोक लिया । यशवंतरावजीने उनसे कहा -

'अपना काम और अपने नाम नेताओं को मालूम होने चाहिए । नहीं तो वे नेता कैसे ?  आप कृपा करके मेरे लिए प्रयत्‍न करने के लिए मत जाओ । तुम्हारे लिए प्रयत्‍न करना है तो जरूर जाओ ।'

यशवंतरावजीने कहा -'मुझे मंत्रिमंडल में जाने की बिलकुल इच्छा नहीं है । प्रयत्‍न करना होगा तो तुम्हारे लिए ।'

ऐसा ही एक दिन बीत जानेपर यशवंतरावजी के जिले में से चुनकर आये हुए विधानसभा सदस्य श्री. बाबासाहेब शिंदेजी और शिराला पेटा के निवासी बम्बई में वकालत करनेवाले श्री. माधवराव देशपांडेजी यशवंतरावजी की खोज करते हुए माधवाश्रम में आये ।

श्री. के. डी. पाटीलजी कहीं बाहर गये थे । वहाँ यशवंतरावजी अकेले ही थे ।

श्री. बाबासाहेब शिंदेजीने यशवंतरावजी को अपने साथ चलने का आग्रह किया । उन्होंने कहा -

'श्री. माधवराव देशपांडेजी तुम्हे ले जाने के लिए आये हैं । उनके साथ हम जायेंगे ।'

'किसलिए ? कहाँ ?' यह यशवंतरावजीने पूछा । पर उन्होंने उत्तर देने के लिए टालमटोल की । वे गाडी लेकर आये थे और वे उनकी गाडी में ही गये ।
यशवंतरावजी ने उनसे पूछा -

'हम कहाँ जा रहे हैं ?

श्री. माधवराव देशपांडेजी ने कहा -

'हम उपनगर में चले जा रहे है । श्री. बालासाहेबजी खेर ने तुम्हे ले आने के लिए कहा  है । इसलिए मैं तुम्हारे पास आया हूँ ।'

इस समय तक हम श्री. बालासाहेबजी के बंगले के दरवाजे तक पहूँचे । यशवंतरावजी कुछ आश्चर्यचकित हो गये थे । वे कुछ झुँझला गये थे । मेरे साथ होनेवाले दो ज्येष्ठ मित्रों के साथ यशवंतरावजी ने उस घर में प्रवेश किया और हम बालासाहेबजी की बैठक में जाकर खडे रहे । साधा पोशाख पहने हुए श्री. बालासाहेबजी खेर हमेशा की तरह हँसते हुए, नमस्कार करते हुए आगे आये और कहा -
'आइए चव्हाणजी, आइए, बैठिए ।'

'मैं तुम्हें मंत्रिमंडल में ले नहीं सकता । पर मैंने पार्लमेंटरी सेक्रेटरी (संसदीय सचिव) के लिए तुम्हारा चुनाव किया है ।'

यह सब यशवंतरावजी को बिलकुल अनपेक्षित था । उसके संबंध में क्या बोलना चाहिए, यह यशवंतरावजी के ध्यान में नहीं आया । उन्होंने कहा, 'ठीक है, मैं घर जाकर वापस आता हूँ । मैं कुछ जल्दी उपस्थित नहीं रहूँगा ।'