अधुनिक महाराष्ट्र के शिल्पकार-४१

१९४६ का चुनाव

१९४२ के आंदोलन के बाद होनेवाला यह पहला चुनाव था । इस आंदोलन का प्रचार यह इस आंदोलन का यश का प्रचार था । लोगों का मन उत्साह से इतना लबालब हुआ था कि हम उम्मीदवार भाषण करने के बजाय केवल नमस्कार करने के लिए लोगों के सामने खडे रहे तो तालियों की कडकडाहट होती थीं । लोगों का प्रेम लबालब भरा हुआ था ।  हम जहाँ जाते, वहाँ हजारों लोग हमारी राह देखते हुए खडे रहते थे । यशवंतरावजीने कहा हम चारों उम्मीदवार प्रचार के लिए एकत्र घूमे, फिरे, उसका भी उचित परिणाम हुआ । यशवंतरावजी का चुनाव का काम शुरू होने पर श्री. गणपतरावजीने अस्पताल छोड दिया और सीधे कराड में रहकर वे चुनाव प्रचार के काम में लग गए । यशवंतरावजीने उनसे कहा भी पर उसका कुछ फायदा नहीं हुआ । अपना भाई बम्बई विधान सभा के लिए चुनाव लड रहा है, इसका ही उन्हें बहुत आनंद हुआ था । उनके उस आनंद में कुछ कमी आये, ऐसी इच्छा यशवंतरावजी के मन में नहीं थी । इसलिए यशवंतरावजीने वह प्रश्न वहाँ ही छोड दिया ।

पिछले चालीस वर्षों में यशवंतरावजी ने विधान सभा और संसद के दस चुनाव लडे ।  कभी कम मतों से, कभी लाख मतों से तो कभी बिनाविरोध ऐसे सभी चुनाव यशवंतरावजी ने जीते हैं । हर एक चुनाव में अलग अनुभव, राजनैतिक कसौटियाँ अलग, राजनैतिक पक्ष भी अलग थे, लेकिन १९४६ के चुनाव के समान दूसरा सर्वमान्य चुनाव कभी नहीं हुआ था । यह और नाशिक का लोकसभा का चुनाव छोड दिया जाय तो यशवंतरावजी के सभी चुनाव तूफानी हो गये थे । प्रतिपक्षों ने अपनी अपनी तोफें रोख दी थी । उन्होंने अभद्र और कटुता का प्रचार किया । इन सभी चुनाव में यशवंतरावजी अपने आप के ही प्रचारक थे । यशवंतरावजी के ध्यान में आया था कि संभाषणशैली में मिलनसार स्वभाव, सुसंस्कृत, तत्त्वनिष्ठ और प्रांजल प्रचार ये उनकी बडी शक्ति है ।  इन सभी तूफानों में जनता के आशीर्वादसे और उनके कार्यकर्ता, मित्रों के सहयोग से यशवंतरावजी अपराजित रह गए । जनतंत्र राजनीति में इसकी अपेक्षा अधिक करने की क्या जरूरी है ?

लोकसभा के लिए १९६३ में यशवंतरावजी नाशिक जिले में से चुनाव लडे तब किसी के विरोध के बिना वे चुनकर आये । इसी कारण से लोगों में प्रचार के लिए जाने की आवश्यकता नहीं पडी और जनसंपर्क भी नहीं हुआ । इस चुनाव में यह एक त्रुटि यशवंतरावजी को महसूस हुई । नाशिक के लोगों ने यशवंतरावजी को विरोध किये बिना चुनकर दिया, इसका उन्हें हमेशा अभिमान लगता है । नाशिक के चुनाव के बाद नाशिक में भरी हुई सभा में कवि कुसुमाग्रज ने जो उद्‍गार निकाले थे, वे उद्‍गार यशवंतरावजी कभी नहीं भूलेंगे ।

'भूगोल में कृष्णा-गोदावरी संगम नहीं है - पर इतिहास में इस चुनाव के कारण यह संगम हुआ है ।'

यशवंतरावजी और उनके साथीदार चुनाव जीतकर आये । यशवंतरावजीने जीवन के एक नये क्षेत्र में प्रवेश किया था । इस चुनाव से यशवंतरावजी के जीवन में संपूर्ण बदल हुआ है, यह बात उन्हें स्वीकृत करनी चाहिए । यशवंतरावजी अपने बंधु की सलाह न मानते हुए थोडा दूर रहने का प्रयत्‍न करते तो उनकी जीवन में यह बडी गलती हो जाती । वे इस बात को प्रामाणिकता से स्वीकृत करते हैं ।

चुनाव में यश मिलने पर यशवंतरावजी ने माँ के चरणों को स्पर्श कर के नमस्कार  किया ।

उसके बाद अनेक महिलाओं ने यशवंतरावजी की आरती उतारी ।

यशवंतरावजी की पत्‍नी सौ. वेणूताईजी ने भी यशवंतरावजी की आरती उतारी । तब यशवंतरावजी की आँखों में आँसू आये । उन्होंने उससे कहा -

'वेणूबाई, इस यश में तुम्हारा हिस्सा है ।' वह तनिक हँसी और कहा -

'ऐसा बँटवारा नहीं करना चाहिए ।'

स्वातंत्र्यलडाई में होनेवाले अनेक मित्र आये और आँखों में आँसू लाकर गले में गला डालकर अभिनंदन करके चले गये ।

यशवंतरावजीने यश के आनंद का अनुभव लिया, वह कुछ और ही था ।

जीवन में ऐसे क्षण एकाध बार आते हैं ।