काकासाहेब गाडगीलजी भाषण के लिए कराड आये थे । उस समय उन्होंने उन्हें प्रथम देखा । काकासाहेबजी ने ब्रिटिश साम्राज्यशाही की प्रखर आलोचना की थी । उनका भाषण आवेशपूर्ण था । उनके शैलीदार भाषण का लोगों पर परिणाम हुआ । तब उनकी गाडगीलजी से पहचान हो गयी ।
यशवंतरावजी के मत से तर्कतीर्थजी के भाषण का वैचारिक प्रभाव सामान्य मनुष्यों पर और विशेषतः युवकों पर अधिक पडा । उन्होंने कहा कि - 'तुम कृष्णा के किनारे पर जहाँ बैठे हो, वह जैसे गर्म हुआ है, वैसे तुम्हारी बुद्धि और मन भी गर्म होना चाहिए ।' तर्कतीर्थ शास्त्रीजी ने इसी एक वाक्य से सभा को जीत लिया ।
यशवंतरावजी के आंदोलन के दो-तीन केंद्र बन गये थे । ये गाँव हैं मसूर, इंदोली और तांबवे । मसूर के राघूजी आण्णा लिमये, डॉ. फाटकजी, विष्णुमास्तरजी निगडीकर, सीतारामपंती गरुड, इंदोली के दिनकररावजी निकम और उनके साथी ये प्रमुख कार्यकर्ता थे । तांबवे के काशिनाथपंतजी देशमुख यशवंतरावजी के मित्र थे । देखमुखजी ने अपने आसपास कार्यकर्ताओं का बडा समूह खडा कर दिया था । और उन्होंने जंगल-सत्याग्रह का बडा कार्यक्रम भी किया था । इसलिए वहाँ के कुछ लोग जेल में गये थे ।
इस आंदोलन में जो संघटित विद्रोह हुआ था वह बिलाशी में । वह वारणा नदी का प्रसिद्ध भाग है । श्री. बाबूरावजी चरणकर और गणपतरावजी पाटील के नेतृत्व में लगभग चालीस गाँव में पाटील लोगों ने सरकारी नौकरी के इस्तीफे दिये थे । जंगल सत्याग्रह बडे पैमाने पर हुआ और एक अर्थ से ब्रिटिश सरकार का अंमल समाप्त हुआ । ये सब यशवंतरावजी के संगी साथी थे ।
रत्नागिरी में यशवंतरावजी की सावरकरजीसे भेट हुई थी ।
सातारा के 'समर्थ' साप्ताहिक के संपादक श्री. अनंतरावजी कुलकर्णी और यशवंतरावजी दोनों एक ही शाला में और एक ही वर्ग में पढते थे । वे यशवंतरावजी के राजनैतिक आंदोलन को समर्थन देते थे । उन्होंने यशवंतरावजी को संस्कृत भी पढाया ।
रावसाहब गोगटेजी और यशवंतरावजी दोनों भी मित्र थे । दोनों भी तिलक हाइस्कूल में पढते थे और दोनों एकही बेंच पर बैठते थे । गोगटेजी की पत्नी उषाजी और यशवंतरावजी की पत्नी सौ. वेणूताईजी इन दोनों में मित्रता थी ।
माधवराव अणेजी, माधवराव बागलजी, किसनवीरजी, आत्माराम पाटीलजी, पांडुरंगजी मास्तर, गौरीहर सिंहासनेजी ये सभी यशवंतरावजी के साथी थे । यशवंतरावजी को स्वातंत्र्य आंदोलन में इन लोगों की बडी मदद हुई है ।
तात्या डोईफोडेजी और यशवंतरावजी झंडा लगाने के कारण दोनों को अठहरा महिनों की सजा हुई । आचार्य भागवतजी, ह.रा. महाजनीजी उनके स्नेही थे । मानवेंद्ररायजी के विचारों की ओर यशवंतरावजी आकर्षित हुए थे । परंतु उनके विचार यशवंतरावजी को पसंद नहीं आये इसलिए वे उनसे दूर हो गये ।
समाजवादी विचारों के समर्थक श्री. एस. एम. जोशीजी और भुस्कुटेजी के साथ भी उनका स्नेह था । यशवंतरावजी के मित्र आत्मारामजी बापू पाटील रायसाहेब के विचारों को समर्थन देने की मनःस्थिति में थे । और यशवंतरावजी काँग्रेस के विचारों के समर्थक बन गये । फिर दोनों के मार्ग अलग हो गये ।
यशवंतरावजी पूना में लॉ कॉलेज में पढते थे । उन्हें पढाने के लिए पूना के वकील श्री. ल. ब. भोपटकरजी थे । वे प्रसिद्ध वकील थे । वे यशवंतरावजी को टॉर्ट विषय पढाते थे । उनका भाषा पर प्रभुत्व था और वे उत्तम शिक्षक थे । पूना के कम्युनिस्ट नेता श्री. विष्णुपंतजी चितले के साथ यशवंतरावजी का स्नेह था । श्री. चितलेजी मार्क्सवादी विचारधारा के समर्थक थे ।
चंद्रोजी पाटील यशवंतरावजी के स्नेही थे । वे सांगली जिले में कामेरी के थे । उनकी सहायता से कामेरी के के. डी. उर्फ केशवरावजी पाटील से यशवंतरावजी की पहचान हो गयी । उनकी पहचान यशवंतरावजी की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण थी । आगे लगभग सात-आठ वर्ष उन से यशवंतरावजी का प्रगाढ स्नेह था और राजनीति में उन्होंने यशवंतरावजी को बहुत सहयोग दिया ।
तासगाव के श्री. विठ्ठलरावजी पागे के साथ भी यशवंतरावजी के संबंध थे । वे स्वातंत्र्यसैनिक थे । दोनों के विचार एकसाथ जुड गये थे । वे पहले से निष्ठावान गांधीवादीजी थे । आगे उन्होंने तात्त्विक विचार स्वीकार किया । उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी बडे होशियार सेनापति है । वे काल और साधनों का उचित समय पर चुनाव करेंगे और वे अपने पीछे आने का संदेश देंगे । तब धैर्य न छोडते हुए विश्वास से बर्ताव करना चाहिए ।