यशवंतरावजी ने कहा था कि यह लडकी सातारा आयेगी तो मैं उसे देख लूंगा । मई महिने के प्रारंभ में तय किये समय पर यशवंतरावजी ने लडकी देखी ।
वधु पसंदगी का यशवंतरावजी का एक दृष्टिकोन था । यशवंतरावजी के घर में और विशेषकर माँ से मिलती-जुलती रहेगी ऐसी वधु चाहिए ऐसा उनका विचार था । स्व. रघुनाथरावजी फलटण के होते हुए उनका संपूर्ण परिवार बम्बई में रहता था । एक वर्ष पहले उनका निधन हुआ था । बडोदा के राजघराणे के निजी खाते में वे महत्त्व के गृहस्थ थे । मई महिने के प्रारंभ में तय किये स्थानपर यशवंतरावजी ने लडकी देखी ।
स्व. रघुनाथरावजी मोरे की फलटण में खेती थी । वे वर्ष में एक बार फलटण आते थे । वे दो महिने फलटण में रहते थे । खानदानी लडकी को अच्छे संस्कार मिले, इसलिए वे चिंता करते थे ।
शिक्षित, पर संयुक्त परिवार में दिल लगाकर काम करेगी और परिवार में सभी सदस्यों के साथ प्रेम से बर्ताव करेगी, ऐसी वधु उन्हें चाहिए । सातारा में यादो गोपाल उनके रिश्तेदारों के घर में यशवंतरावजी ने वेणूताईजी को देखा । कुछ प्रश्नोत्तरे हुई ।
उस समय यशवंतरावजी ने कहा कि - 'मैं वकील हूँ, फिर मैं राजनैतिक कार्यकर्ता हूँ' यह बात मैंने स्पष्ट कर दी । मेरी बात सुनने पर मुझे विलक्षण सौम्य प्रसन्नता दिखाई दी । दीये के समान चमकदार बडी आँखे देखकर मेरे मन ने अनुमति दी ।
कराड वापस जाकर यशवंतरावजी ने अपनी अनुमति अपनी माँ से कह दी । मई महिने के प्रारंभ में ये सब हुआ । और २ जून १९४२ को उनका सौ. वेणूताईजी के साथ विवाह संपन्न हुआ ।
आज जब मैं पीछे मुडकर देखता हूँ, तब एक तरफ से जन आंदोलन की तरफ से अपना मन तैयार करनेवाले यशवंतरावजी, और यह जन आंदोलन देहलीज पर आते समय यशवंतरावजी विवाह के लिए कैसे खडे रहे, यह विचार कभी कभी उनके मन में रहता है, परंतु निर्णय हुआ, यह सच है । और उसमें से उनका अगला जीवन निर्माण होता रहा । तर्क और जीवन हमेशा हाथ में हाथ डालकर चलते है, यह सच नहीं है यही उसका अर्थ है ।
और एक दृष्टि से जन आंदोलन का अगला तूफान देखना था । उसके लिए आवश्यक वह साथी - यशवंतरावजी को मिलनेवाली थी । उसका यह एक संयोग था अथवा अर्थ था, ऐसे कहा जाय तो चलेगा ।
यशवंतरावजी के विवाह के लिए हजारों कार्यकर्ता बडे आनंद से और प्रेम से एकत्र हो गये थे । विवाह के लिए स्वामी रामानंद भारतीजी भी उपस्थित थे । विवाह के लिए उन्होंने भाषण भी दिया । उन्होंने भाषण में कहा -
'यह जन आंदोलन बडा सूचक है ।' यशवंतरावजी का जो विवाह हुआ, उस में जो भीड थी, उसका वर्णन करना असंभव है । पर इतना निश्चित है कि इतना बडा विवाह कराड में पहले कभी नहीं हुआ था ।
श्री. के. डी. पाटीलजी यशवंतरावजी के स्नेही थे । लेकिन उन्हें इस्लामपूर में बडे प्रसिद्ध वकील श्री. रानडेजी का सहयोग मिलता था । श्री. के. डी. जी ने श्री. रानडेजी के साथ मेरा परिचय कर दिया था । वे प्रवृत्ति से धीर गंभीर थे । कोर्ट के काम में हमेशा यश मिलता रहता था ।