इंदिरा और यशवंतरावजी अलग
१ जनवरी १९७८ को इंदिरा गांधीजी ने 'इंदिरा काँग्रेस' की स्थापना की । तब से इंदिराजी और यशवंतरावजी अलग हुए । परस्परविरोधी दल में काम करने लगे । इंदिरा गांधीजी ने इंदिरा काँग्रेस के नाम से चुनाव जीते । यशवंतरावजी को लगा कि काँग्रेस के मुख्य प्रवाहसे हम अलग हो रहे हैं । काँग्रेस एस को जनता ने व्यापक समर्थन हीं दिया था । इसलिए यशवंतरावजी नाराज थे । उनके मन में विचार आया कि हम मुख्य प्रवाह से दूर रहकर काँग्रेस की और जनता की अच्छी सेवा नहीं कर सकेंगे । इंदिरा काँग्रेस में शामिल होना चाहिए और मुख्य प्रवाह के साथ रहकर संघटनात्मक कार्य करना चाहिए । यशवंतराव चव्हाण ये काँग्रेस पक्ष के एक निष्ठावान कार्यकर्ता थे । उन्होंने जनहित सामने रखकर राजनैतिक प्रवास किया ।
इंदिरा काँग्रेस में प्रवेश
उदात्त हेतु रखकर यशवंतरावजी ने इंदिरा काँग्रेस में प्रवेश किया । परंतु उनके जीवन के अन्त तक उनकी उपेक्षा होती रही । वे बहुत निराश हो गये थे ।
सारांश रूप से यशवंतराव चव्हाण के राजनीति काल का सिंहावलोकन करते समय ऐसा कहना पडता है कि- 'यशवंतरावजी ने अपने संपूर्ण आयुष्य में सत्ता के लिए तत्त्वों से, जनहित से कभी समझौता नहीं किया । उन्होंने अपनी निष्ठा से कभी बेईमानी नहीं की । घरानेशाही की प्रथमावस्था में बढनेवाला भारतीय जनतंत्र यशवंतरावजी को न्याय नहीं दे सका । आगे भी दे नहीं सकेगा । क्या राजनैतिक दृष्टि से यशवंतरावजी ने गलती की है ? इसका उत्तर है, हाँ ! उन्होंने बहुत गलती की, पर उन्होंने गरिबों को उद्ध्वस्त करनेवाली गलतियाँ कभी नहीं की ।'
वर्तमान काल में भारत में राजनीति एक प्रकारका धंदा हुआ है । संसद में सरकार को जबाब पूछने के लिए और लोगों के प्रश्न, समस्या पेश करने के लिए पैसे लेने वाले जनप्रतिनिधि (धंदेवाले राजनीतिज्ञ) जनतंत्र के पवित्र मंदिर में स्वच्छंदता से घूमते फिरते हैं । इस प्रदूषित राजनैतिक वातावरण में यशवंतराव चव्हाण के एकनिष्ठ, ध्येयनिष्ठ, तत्त्वनिष्ठ, जनसामान्य के कल्याण की इच्छा करनेवाले, सबके उत्थान की अपेक्षा करनेवाले, मार्गदर्शक प्राणवायुरूपी विचार ही आज भारत की और महाराष्ट्र की राजनीति को प्रदूषणमुक्त, स्वच्छ और निर्दोष बना सकेंगे ।
यशवंतराव चव्हाण का राष्ट्रीय राजनीतिक प्रवास देखनेपर निश्चित ऐसा लगता है कि प्रारंभिक काल बहुत सुनहरा और पूर्वार्ध में जो पूँजी राजनीतिक दाँवपेंच करके चव्हाणने एकत्र की थी उसके बलपर उनकी सफल और प्रभावी केंद्रीय मंत्री के रूप में गणना की गयी और आगे भी होती रही ।