अक्सर राजनीतिज्ञो में देखा जाता है कि उन्हे वाचन, अध्ययन करने के लिए एक तो वक्त नहीं रहता और दुसरे रुचि भी नहीं होती । श्री यशवंतरावजी चव्हान इसके अपवाद है । वे बद्धिवादी है, अध्ययनशील है, और साहित्य, राजनीतिशास्त्र, अर्थशास्त्र आदि विषयो की पुस्तकें अक्सर खरीद कर पढां करते है । उन्होने औरंगाबाद के किसी भाषण में कहा था कि महाराष्ट्र में संतो और विद्वानो के सामने सिर झुकाने की परम्परा चली आई है । भक्ति, ज्ञान और साहित्य के प्रति इतनी आस्था संस्कारिता के लक्षण है । ऐसी व्यापक बुद्धिमता चतुर्विध रुची, सत्ता के साथ ही साथ शील और सौजन्य, कुशल राजनीतिज्ञता तथा लोकनीति के प्रति आस्था, चारित्र्य और व्यक्तित्व एक साथ कम दिखाई पडता है ।
श्री यशवंन्तराव चव्हान आज अपने जीवन के ४८ वर्ष पूरे कर रहे हैं । वे काफी तरुण है, और इतनी छोटी उम्र में उन्होने नेतृत्व की जो योग्यता बतलाई है वह भारतीय नेतृत्व की अगली पीढी के लिए शुभ लक्षण है । गांधीजी ने मिट्टी से वीर पुरुष बनाए और धुरन्धर राष्ट्रनेताओं की एक लोह-पंक्ति खडी कर दी । गांधीजी की पीढी धीरे धीरे विराम पा रही है । सब देशप्रेमियो को इस बात की चिन्ता और शिकायत रही है कि हम लोक अपने देश में नेतृत्व की दुसरी पंक्ति खडी नही कर जाए । इस चिन्ता और शिकायत के श्री यशवन्तरावजी अपवाद है । काश, उनके जैसे व्यक्ती और होते, हरेक सूबे में होत ! महाराष्ट्र राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री के रुप मे वे उपलब्ध हुए यह सौभाग्य की बात है । वे न केवल महाराष्ट्र के ही लिए बरन सारे देश के लिए भूषणास्पद साबित होंगे ऐसी हमारी दृढ. धारणा है । वे दीर्घायु हों और अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त करें तथा देश की अधिकाधिक सेवा करने में समर्थ हों यही हमारी ईश्वर से प्रार्थना है ।
"संयुक्त महाराष्ट्र केवल एक साध्य नहीं है बल्कि सामाजिक एकता और समानता की प्राप्ति का वह साधन है । महाराष्ट्र का सभी समस्याए भारत की समस्याए समझकर सुलझानी चाहिये और इस राज्य को भारत का एक आंतरिक घटक समझकर ही उसका विकास किया जाना चाहिये ।"
- यशवंतराव चव्हान