१९५२ में घटना का अंमल शुरू हुआ और देश में पहला सार्वत्रिक चुनाव हुआ । इस चुनाव में काँग्रेस पक्ष को बडा यश मिला । भारतीय राज्य घटना के द्वारा भाषावार प्रांतरचना अभिवचन काँग्रेसने देश को दिया था । उसके अनुसार मराठी भाषिकों का राज्य होना चाहिए, वह तो प्रत्यक्ष था ही । महाराष्ट्र का कुछ भाग उदा. वर्हाड प्रांत (आज का विदर्भ), मध्यप्रदेश, डांग, उमरगाव और बम्बई गुजराथ में; बेलगाव, निपाणी, कारवार, कर्नाटक में; मराठवाडा के कुछ जिले हैदराबाद में ऐसी महाराष्ट्र की विचित्र अवस्था थी । तीन करोड मराठी भाषिकों में से नब्बे लाख लोग इन तीन विभाग में रहते हैं । इसलिए मराठी भाषिक राज्य की माँग मराठी साहित्यिकों ने की । प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलालजी नेहरू संयुक्त महाराष्ट्र की भूमिका के लिए अनुकूल नहीं थे और बम्बई प्रांत के मुख्यमंत्री मोरारजी देसाईजी दर्पोक्ति कर रहे थे कि- 'जब तक चंद्र, सूर्य, तारे हैं तब तक बम्बई महाराष्ट्र को नहीं मिलेगी ।' तथा 'गुजराथी पूँजीपतियों के विरुद्ध यह मराठी भाषिक जनता की लडाई है ।' ऐसी माँग कॉम्रेड डांगे और कम्युनिस्ट नेता कर रहे थे । यशवंतराव चव्हाण महाराष्ट्र के समर्थक थे । पर यशवंतरावजी इस माँग के लिए आक्रमक नीति के विरुद्ध थे । पंडित नेहरूजी का मन राजी करके महाराष्ट्र निर्माण किया जा सकेगा ऐसा यशवंतरावजी का मत था । परंतु मराठी जनमत चव्हाण की इस नरम नीति के पक्ष मे नहीं था । इस संघर्ष में बम्बई में १०५ हुतात्माओं का बलिदान हुआ । इसी काल में प्रतापगड पर शिवाजी महाराज की प्रतिमा का अनावरण करने के लिए देश के प्रधानमंत्री आये थे । उस समय मराठी जनताने उग्र निदर्शन करके अपनी भावनाएँ व्यक्त की थी । प्रधानमंत्री के साथ राज्य के प्रमुख यशवंतरावजी दोनों भी एक ही गाडी में थे । यशवंतरावजीने नेहरू का मन राजी कर दिया और १ मई १९६० को यशवंतरावजी महाराष्ट्र का मंगल कलश ले आये । वे बम्बईसह संयुक्त महाराष्ट्र के पहले मुख्यमंत्री हो गये ।
मुख्यमंत्री यशवंतरावजी ने आधुनिक महाराष्ट्र के सपने के बारे में कहा है - 'यह नया महाराष्ट्र राज्य मराठी जनता के कल्याण का काम तो करेगा ही । परंतु मराठी भाषिकों के पास जो देनेलायक है, उनके जीवन में जो अच्छा है, जो उदात्त है, उसका भारत के लिए त्याग करने का समय आयेगा तो हम वह त्याग प्रथम करेंगे ... हमारा पहलेसे ही विश्वास है कि भारत रहेगा तो महाराष्ट्र रहेगा । भारत बडा हुआ तो महराष्ट्र बडा होगा । महाराष्ट्र का और भारत का हित जब एकरूप होता है तब भारत भी बडा होता है और महाराष्ट्र भी बडा होता है । यह इतिहास महाराष्ट्र के खून खून में समा गया है ।'
महाराष्ट्र के सहकारी आंदोलन को यशवंतरावजी ने शक्ति दी । शक्कर कारखानदारी और उसके पूरक उद्योग को प्रेरणा दी । सहकार में से और किसानों में से नये नेतृत्व आगे आया । महाराष्ट्र की कार्यकर्ताओं को मधुमक्खियों का छत्ता कहते हैं । गन्ने की मीठी शक्कर से यह मधुमक्खियों का छत्ता जमाया । ये नेता और कार्यकर्ता विविध सार्वजनिक संस्था, ग्रामपंचायत, जिला परिषद, पंचायत समितियों में नेतृत्व करते हुए दिख पडते हैं । राजनीति का विकेंद्रीकरण और सहकार में संघटन यह चव्हाणप्रणीत राजनीति की विशेषता है ।