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अधुनिक महाराष्ट्र के शिल्पकार १०१

महाराष्ट्र और भारतीय राजनीति में यशवंतरावजी का स्थान

महात्मा गांधीजीने १९४२ में शुरू किये हुए 'चले जाओ' के आंदोलन में यशवंतरावजी शामिल नहीं हुए थे । पर भूमिगत रहकर सातारा जिले की जिम्मेदारी सफलता से पूरी की । उन्होंने कराड, वडूज, पारवा, वालवे, तासगाव में स्थित दफ्तर पर मोर्चे निकालकर वे यशस्वी किये । उसके लिए उन्हें जेल में जाना पडा । ऐसी हालत में किसी प्रकार की शिकायत न करते हुए वेणूबाईजी ने गृहस्थी चलायी ।

१९४५ में जेल में से छुटकारा होने पर नये उत्साह से स्वातंत्र्य काम में लग गये । इसी समय १९४६ में ब्रिटिश सरकारने बम्बई प्रांत के चुनाव लिये । इस चुनाव में यशवंतरावजी विजयी हुए । उसके बाद वे बालासाहब खेरजी के मंत्रिमंडल में गृह विभाग के संसदीय सचिव बने । जब तक वे इस पद पर थे तब तक सुरक्षा व्यवस्था के लिए होमगार्ड संस्था की स्थापना की । इतना ही नही, तो उन्होंने महाराष्ट्र में लोककलावंतों की कला को और कलावंतों को आधार देने के लिए तमाशा बोर्ड की स्थापना की । यहाँ से ही उनके राजनैतिक कार्य का आरंभ हुआ । फिर उन्होंने पीछे मूडकर कभी नहीं
देखा ।

यशवंतरावजी पर महाराष्ट्र के समूचा मराठी मनुष्य प्राण से भी अधिक प्रेम करता है, वह उन्हें आदर्श मानता है । वह उनके लिए सर्वस्व अर्पण करने के लिए तत्पर रहता है ।  क्योंकि वे उन्हें अपने परिवार के एक प्रमुख व्यक्ति मानते थे । इसलिए उनका नाम न लेते हुए आदर से सारा महाराष्ट्र उन्हें 'साहब' नाम से पहचानता है । उन्होंने जो कार्य किया था, मन का जो बडप्पन दिखाया था, उसके लिए जनता उन्हें साहब नाम से पुकारती थी । साहब ये जाति-धर्म के पार थे । गुणी मनुष्यों की उन्हे लालच थी ।  साहित्यिक और सांस्कृतिक उपक्रमों को उनका सतत मार्गदर्शन और प्रोत्साहन मिलता था । गरजू को सहकार्य और वंचितों को मानसिक और आर्थिक बल देने का वे सतत प्रयत्‍न करते थे । निराधार लोगों को आधार देने का वे प्रयत्‍न करते थे । गांधीहत्या के समय आगकांड में जिनका सर्वस्व गया था उनके आँसू पोंछकर पुनः उनका आयुष्य खडा करने का प्रयत्‍न किया ।

दादासाहबजी गायकवाड

डॉ. बाबासाहबजी आंबेडकर के बाद महाराष्ट्र में कर्मवीर दादासाहबजी गायकवाड जैसा शक्तिमान जननेता दूसरा नहीं था । आंबेडकरी विचार कृति में लाते समय उन्होंने किसी की भी परवाह नहीं की । महाराष्ट्र में दलित शोषितों पर होनेवाले अन्याय-अत्याचार नष्ट करने के लिए मुख्यमंत्री चव्हाणजी कुछ उपाय योजना करें यही उनकी इच्छा थी ।  दादासाहबजी गायकवाड ने देहातों में होनेवाले अन्याय, अत्याचार, अनुपजाऊ खेतो का प्रश्न, भूमिहिन, खेतमजदुरों के प्रश्न हल करने के लिए साहब के साथ गहरी चर्चा की ।  तब साहबने कहा - 'मैं इस राज्य का प्रमुख और बहुजन समाज का प्रतिनिधि हूँ और फुले, शाहू और डॉ. आंबेडकर के विचारपरंपरा का आदर करता हूँ ।' ये सब करने के लिए प्रयत्‍न करना मेरा कर्तव्य है । पर आप काँग्रेस के साथ सतत संघर्ष की नीति रखने की बजाय सहयोग की भूमिका ली तो मुझे और काँग्रेस को महाराष्ट्र में दलितों के लिए बहुत कुछ करने का अवसर मिलेगा । आपसे कहना चाहता हूँ कि महाराष्ट्र काँग्रेस पुरोगामी विचारधारा की है । कम से कम हम दोनों को महाराष्ट्र में मित्रतापूर्ण सहकार्य का प्रयोग करने के लिए क्या हर्ज है ? दादासाहबजी गायकवाड आर.पी.आय. के प्रमुख नेता थे ।  विरोधी पक्ष नेता के रूप में वे सर्वपरिचित थे ।  

इस पर दादासाहबजी गायकवाडने गंभीर विचार और चिंतन करके काँग्रेस के साथ सहयोग करने की नीति अपनायी । तब से महाराष्ट्र में काँग्रेस और आर.पी.आय. की युती हो गयी है । इससे स्पष्ट है कि विपक्ष के मनुष्य भी अपने साथ ले जाने की किमया और दूरदृष्टि यशवंतरावजी के पास थी ।