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अधुनिक महाराष्ट्र के शिल्पकार १०३

कराड में साहित्य संमेलन

आपतकालीन पार्श्वभूमि पर यशवंतरावजी के मतदार संघ - कराड में १९७६ मे अखिल भारतीय मराठी साहित्य संमेलन सम्पन्न हुआ था । मराठी साहित्य संमेलन की अध्यक्ष बडी विदुषी दुर्गा भागवत थीं । यशवंतरावजी संमेलन के स्वागताध्यक्ष थे । तब उन्होंने कहा था - 'राजनीति के जूते बाहर रखकर मैं सरस्वती के मंदिर में आया हूँ ।' सुप्रसिद्ध दलित साहित्यिक 'उपर'कार लक्ष्मण माने के 'बंद दरवाजा' पुस्तक का प्रकाशन करते समय आये हुए 'भटक्या' लोगों के समूह के सामने कहा कि - 'मैंने ग्यारह वर्ष बंजारा समाज का मुख्यमंत्री महाराष्ट्र को दिया, परंतु तुम्हारी ओर देखकर मुझे समझा कि वह तुम में से नहीं था । वह तुम्हारे मालदार वर्गमेंसे था ।'

महाराष्ट्र राज्य निर्मिति के बाद यशवंतरावजी ने वाई में 'मराठी विश्वकोश मंडल' की स्थापना की । तर्कतीर्थ लक्ष्मणशास्त्री जोशीजी को विश्वकोश के संपादन का काम दिया ।  उन्होंने 'महाराष्ट्र राज्य साहित्य संस्कृति मंडल' की स्थापना करके मराठी भाषा और संस्कृति के विकास को प्रेरणा दी । मराठी साहित्य में अनेक अभिजन चव्हाणजी के मित्र थे । ग. दि. माडगूलकरजी को आधुनिक वाल्मिकी कहा जाता है । माडगूलकरजी ने चव्हाणजी के संबंध में लिखा है - 'मराठेशाहीचे तुम्ही पेशवे, सत्तेचे स्वामी । तुमच्या मागे राहील जनता नित्य पुरोगामी । ।'  चव्हाणजीने कविवर्य ना. धों. महानोरजी को विधान परिषद पर सदस्य के रूप में नियुक्त किया ।

आगे इंदिरा गांधीजी की भूमिका से १९७७ के चुनाव में काँग्रेस की पराजय हुई । जनता पक्ष सत्ता पर आया । मोरारजी देसाई की सरकार बहुत काल तक रही नहीं ।  चरणसिंहजी के नेतृत्व मे नया मंत्रिमंडल बनाया गया । इस मंत्रिमंडल में यशवंतरावजी ने उपप्रधानमंत्री पर स्वीकार लिया । उनके इस निर्णय पर बडी आलोचना हुई । बहुत लोगों को यह निर्णय पसंद नहीं आया । तब यशवंतरावजी को लगा कि - 'अपनी कुछ तो गलती हुई है ।' इसलिए वे बहुत अस्वस्थ रहते थे । उपप्रधानमंत्री पद स्वीकार करने का धक्का उन्हें आगे बहुत दिन तक खटकता रहा ।