जीवनविषयक दृष्टिकोन
यशवंतरावजी का जीवनविषयक दृष्टिकोन आशावादी और समर्पित वृत्ति का था । वे कहते हैं कि 'चरम सीमा तक समर्पित जीवन होगा तो वह जीर्ण नहीं होता, चंद्र कभी पुराना नही होता, सूर्य कभी बूढा नहीं होता । सागर कभी संकुचित नहीं होता । इस में हर एक के जीवन में चरम सीमा का समर्पण है । पर अनंत युग बीत गये तो भी विनाश उनके पास पहुँचा नहीं । काल ने उन्हें घेरा है, पर उनका परिवर्तन कभी नहीं हुआ । स्थित्यंतर नहीं हुआ । वह निःश्वसन सतत चल रहा है ।' वे अखंड अपने जीवन में आनंद के क्षण खोजते रहते हैं । उन क्षणों के बारे में वे कहते हैं - 'जीवन में आनंद के क्षण सूर्य के कोमल किरणों के समान होते हैं । जंगल से गुजरते हुएँ गरमी के समय एकाध झरना दिख पडा कि उसका पानी पिते समय कितना आनंद महसुस होता है । नाले के किनारे जामून का पेड है । वह पेड जामुनों से ठसाठस भरा हुआ है । उस पेड के चार जामून मूँह मे डाल दिये तो कितने मीठे लगते हैं । जीवन में आनंद के क्षण ऐसे ही होते हैं ।'