यशवंतरावजी का अपमान
१९७८ में श्रीमती इंदिरा गांधीजीने फिर से एक बार काँग्रेस पक्ष फोड दिया और अपने नाम पर उसने 'इंदिरा काँग्रेस पक्ष' स्थापन किया । उसी काल में श्रीमती गांधीजी, तिरपुडेजी, साठेजी इन तीनोंने जो भाषण किये थे वे सब यशवंतरावजी का अपमान करनेवाले थे । चव्हाण को तहस-नहस करने के इरादे रचे जाने लगे । इस का परिणाम महाराष्ट्र की राजनीति पर हुआ । ऐसी स्थिति में महाराष्ट्र में काँग्रेस और इंदिरा काँग्रेस ऐसे संयुक्त सरकार की स्थापना हुई । वसंतदादाजी मुख्यमंत्री और तिरपुडेजी उपमुख्यमंत्री हुए ।
परंतु 'तिरपुडेजी' तो मुख्यमंत्री जैसा बर्ताव करने लगे । वसंतदादाजी को माननेवाले तरुण आमदार, मंत्री बिगड गये । शरद पवारजी के आसपास बडी संख्या में आमदार इकठ्ठा होने लगे । शरद पवारजी के 'रामटेक' बंगले पर महाराष्ट्र की राजनीति को दिशा देनेवाली राजनीति क्रियाशील हो उठी । पवारजी ने दाँव पेंच करके पुलोद सरकार स्थापन की ।
महाराष्ट्र के हित के लिए यशवंतरावजी इंदिरा काँग्रेस में शामिल हुए । परंतु उनके साथ उनके कार्यकर्ताओं का मन से स्वागत नही हुआ । उन्हें अच्छा बर्ताव नहीं मिला । इसके विपरित उनका उपहास होता रहा । उनके पक्षप्रवेश के प्रसंग में बहुत बाधाएँ पैदा की गयी । उनका जो अपमान किया गया, जो मनस्ताप दिया गया, वह तो बहुत अशोभनीय था । १९८१ से १९८४ तक लगभग चार वर्ष यशवंतरावजी को और उनके कार्यकर्ताओं को परेशान कर दिया । उन्हें सम्मान का स्थान, सम्मान का पद तो नहीं दिया गया, पर उनका अपमान कैसे होगा इसका जानबूझकर दिल्ली में से प्रयत्न किया गया । इस बर्ताव से यशवंतरावजी के स्वास्थ्य पर परिणाम हुआ । उनकी पत्नी सौ. वेणूताईजी तो बहुत निराश हो गयी । फायनान्स कमिशन का अध्यक्षपद तो यशवंतरावजी के नेतृत्व को अवसर देनेवाला पद नहीं था ।
दिल्ली में शुरू हुआ यह खेल देखकर यशवंतरावजी जैसा प्रज्ञावंत राजनीतिज्ञ मनुष्य चूप था । दूसरों को धैर्य देनेवाला यह मनुष्य निराश हुआ वह भी वेणूताईजी जाने के बाद । फिर भी यह उन्होंने कभी औरोंके समझमे नहीं आने दिया । वे स्थितप्रज्ञ के समान बर्ताव करते थे । उनकी मानसिक अवस्था खराब हो रही थी । यह बात उनके मित्र जानते थे । पर यशवंतरावजी के सामने किसी ने बोलने की हिम्मत नहीं की ।