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अधुनिक महाराष्ट्र के शिल्पकार १०४

यशवंतरावजी का अपमान

१९७८ में श्रीमती इंदिरा गांधीजीने फिर से एक बार काँग्रेस पक्ष फोड दिया और अपने नाम पर उसने 'इंदिरा काँग्रेस पक्ष' स्थापन किया । उसी काल में श्रीमती गांधीजी, तिरपुडेजी, साठेजी इन तीनोंने जो भाषण किये थे वे सब यशवंतरावजी का अपमान करनेवाले थे । चव्हाण को तहस-नहस करने के इरादे रचे जाने लगे । इस का परिणाम महाराष्ट्र की राजनीति पर हुआ । ऐसी स्थिति में महाराष्ट्र में काँग्रेस और इंदिरा काँग्रेस ऐसे संयुक्त सरकार की स्थापना हुई । वसंतदादाजी मुख्यमंत्री और तिरपुडेजी उपमुख्यमंत्री हुए ।

परंतु 'तिरपुडेजी' तो मुख्यमंत्री जैसा बर्ताव करने लगे । वसंतदादाजी को माननेवाले तरुण आमदार, मंत्री बिगड गये । शरद पवारजी के आसपास बडी संख्या में आमदार इकठ्ठा होने लगे । शरद पवारजी के 'रामटेक' बंगले पर महाराष्ट्र की राजनीति को दिशा देनेवाली राजनीति क्रियाशील हो उठी । पवारजी ने दाँव पेंच करके पुलोद सरकार स्थापन की ।

महाराष्ट्र के हित के लिए यशवंतरावजी इंदिरा काँग्रेस में शामिल हुए । परंतु उनके साथ उनके कार्यकर्ताओं का मन से स्वागत नही हुआ । उन्हें अच्छा बर्ताव नहीं मिला ।  इसके विपरित उनका उपहास होता रहा । उनके पक्षप्रवेश के प्रसंग में बहुत बाधाएँ पैदा की गयी । उनका जो अपमान किया गया, जो मनस्ताप दिया गया, वह तो बहुत अशोभनीय था । १९८१ से १९८४ तक लगभग चार वर्ष यशवंतरावजी को और उनके कार्यकर्ताओं को परेशान कर दिया । उन्हें सम्मान का स्थान, सम्मान का पद तो नहीं दिया गया, पर उनका अपमान कैसे होगा इसका जानबूझकर दिल्ली में से प्रयत्‍न किया गया । इस बर्ताव से यशवंतरावजी के स्वास्थ्य पर परिणाम हुआ । उनकी पत्‍नी सौ. वेणूताईजी तो बहुत निराश हो गयी । फायनान्स कमिशन का अध्यक्षपद तो यशवंतरावजी के नेतृत्व को अवसर देनेवाला पद नहीं था ।

दिल्ली में शुरू हुआ यह खेल देखकर यशवंतरावजी जैसा प्रज्ञावंत राजनीतिज्ञ मनुष्य चूप था । दूसरों को धैर्य देनेवाला यह मनुष्य निराश हुआ वह भी वेणूताईजी जाने के बाद ।  फिर भी यह उन्होंने कभी औरोंके समझमे नहीं आने दिया । वे स्थितप्रज्ञ के समान बर्ताव करते थे । उनकी मानसिक अवस्था खराब हो रही थी । यह बात उनके मित्र जानते थे । पर यशवंतरावजी के सामने किसी ने बोलने की हिम्मत नहीं की ।