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अधुनिक महाराष्ट्र के शिल्पकार-६

देवराष्ट्र

सातारा जिले की सीमा पर एक पहाडी है । उस पहाडी के करवट में देवराष्ट्र नामक एक छोटासा गाँव बसा हुआ है । गाँव का आसमंत ऐतिहासिक अवशेषों से भरा हुआ है ।  यहाँ गुफाएँ हैं, देवालय हैं । गाँव की नैॠत्य दिशा की ओर महादेव के पुराणे मंदिर खडे है । सब में पुराना मंदिर समुद्रेश्वर का अर्थात महादेव का । गाँव उसे 'सागरोबा' कहते है । यह गाँव का दैवत । पहाडी भी सागरोबा की आसपास के टीलों में ॠषि-मुनियों की गुहाएँ हैं । ऐसे कहा जाता है कि देवराष्ट्र यह एक राज्य का स्थान था । सातवाहन के राज्य के बाद महाराष्ट्र में जो अनेक छोटे-बडे राज्यों का उदय हुआ, उन में से एक देवराष्ट्र भी है । इस राज्य की राजधानी कौंडिण्यपूर, अर्थात आज का कुंडल गाँव है ।  ऐसा कहा जाता है कि देवराष्ट्र के राजा का नाम कुबेर था, ऐसी यह कथा है । कुबेरेश्वर का मंदिर भी यहाँ है ।

देवराष्ट्र की नैॠत्य दिशा की ओर होनेवाले सागरेश्वर का मंदिर पार कर के डेढ-दो मील की सागरेश्वर की घाटी लाँघकर नीचे आने पर कृष्णा की घाटी लगती है । आज के स्वातंत्र्योत्तर काल में वहाँ की समृद्धि महसूस होती है । पहले भी वहाँ समृद्धि थी ।  इसकी कल्पना उस प्रदेश में बस हुए गाँवों के नाम पर से आती है । दही, दूध, घी को पूर्व काल में समृद्धि के लक्षणों की कसौटी मानी गयी हे । फिर कल्पना आती है कि एक ही कतार में कृष्णा नदी के किनारे पर बसे हुए दुधारी, दह्यारी, ताकारी, तुपारी इन नामों के गाँव हैं ।

संपूर्ण कृष्णाकाठ यशवंतरावजी के प्रेम का, दिलचस्पी का और आत्मीयता का विषय है ।  महाबलेश्वर में उद्गमसे निकल पडी और कृष्णामाई किनारे किनारे सीधे राजमहेंद्री से लेकर उसके मुख तक जाऊँ ऐसा यशवंतरावजी को हमेशा लगता था । किनारे पर बसे हुए गाँवों से भेंट दे दूँ, लोगों से जान-पहचान करा लूँ, फसल से डोलनेवाले खेत देख लूँ, ऐसा उन्हें लगता था ।

यशवंतरावजी के प्रदेश में बहनेवाली प्रमुख नदी कृष्णा नदी है । इस कृष्णा नदी के किनारे पर वाई, कराड और सांगली जैसे शहर भी हैं । उत्तम खेती के कारण प्रसिद्ध हुए अनेक देहात हैं । ऐतिहासिक काल में इस प्रदेश में अनेक कर्तृत्वसंपन्न व्यक्ति निर्माण हुए हैं । कृष्णा के किनारे पर स्थित मेणवली से नाना फडणविस का संबंध है । वैसे ही उंब्रज से धनाजी जाधव का संबंध है । सहवास से, भावना से यशवंतरावजी और उनके संगी-साथी कृष्णामाई से संबंधित हैं । कृष्णा नदी की याद होने पर, अर्थात बचपन की और यौवनकालीन जीवन का निर्माण करनेवाले काल की याद आने पर उनका मन गद् गद् हो उठता है ।

देवराष्ट्र यह उनका गाँव और ननिहाल होने के कारण उनकी बचपन की यादे ये सब देवराष्ट्र की यादे हैं । उनके पहले चार-पाँच वर्षों की जो यादे हैं, ये सब देवराष्ट्र, वडगाँव, कुंडल, ताकारी इन गाँवों से संबंधित है । यह तो ग्रामीण जीवन की पार्श्वभूमि उनके जीवन का श्रीगणेशा है । आगे वे राजनीतिक काम के निमित्त और सरकारी काम के निमित्त देश में और विदेशी में बहुत घूमे-फिरे । फिर भी इस प्रदेश का आकर्षण उनके मन में हमेशा के लिए रहा है । यह ऐसा क्यों होता है । यह उन्हें मालूम नहीं है ।  लेकिन वस्तुस्थिति ऐसी है ।

कुतूहल और आत्मीयता लगे ऐसा यह प्रदेश है । देवत्व लेकर जन्म लिया हुआ यह गाँव है । लेकिन इस में राष्ट्र यह कल्पना समायी है । सागरोबा के चारों तरफ आनंदबन ही आनंदबन है । धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष ये चार पुरुषार्थ यहाँ विचरते हैं । उपजाऊ जमीन में बीज बोया तो तेजी से बढता है । वैसे यहाँ के मनुष्य और मन । इस मिट्टी का गुण और मनुष्य का मूल्य घूमते-फिरते दिखाई देने लगता है ।

समुद्र में स्नान किया तो त्रिलोक में तीर्थक्षेत्र का पुण्य मिलता है, ऐसे पुराने लोग कहते हैं । उसी तरह अमृत सेवन से सभी जीवन रसों का सेवन मिलता है ऐसे ही कहा जाता है । यहाँ तो समुद्रेश्वर ही कुंड में खडा है और उसके प्रेमामृत से 'सोनहिरा' बहता है ।  इस छोटी-सी नदी को लोग नाला कहते हैं । वहाँ तैरने में ही उनका बचपन बीत गया ।  उसका अमृतमय पानी उनके पेट में है । सोनहिरा की यह अमृतभूमि अर्थात उनका यह ननिहाल । उनका अंकुर अवतरित हुआ तो यहाँ ही ।