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अधुनिक महाराष्ट्र के शिल्पकार-४८

पहला सार्वत्रिक चुनाव

१९५२ में भारत का पहला सार्वत्रिक चुनाव हुआ । महाराष्ट्र में काँग्रेस विरुद्ध शेतकरी और कामकरी पक्ष ऐसा मुकाबला हुआ । इस चुनाव में मोरे-जेधे के पक्ष की पराजय हुई ।  उसके बाद चार-पाँच वर्षों में जेधे-मोरेजी, तुलसीदास जाधवजी, खाडिलकरजी, यशवंतरावजी मोहिते काँग्रेस में यानी कि स्वगृह में वापस आये ।

१९५२ के चुनाव में बालासाहेब खेरजी खडे नहीं हुए । खेरजी का शासन समाप्‍त हुआ ।  सच्चे अर्थों में वह मोरारजी का शासन था । परंतु अब इस चुनाव के बाद मोरारजी पक्षनेता के रूप में चुनकर आये । मोरारजीने अपने मंत्रीमंडल में यशवंतरावजी चव्हाण और भाऊसाहेबजी हिरे इन दोनों ग्रामीण जनता के नेताओंको अपने मंत्रीमंडल में समाविष्ट किया । इस काल में महाराष्ट्र प्रांतिक के अध्यक्षपद भाऊसाहेबजी हिरे की ओर चला गया । यह बहुभाषिक बम्बई राज्य था । इस में गुजरात, महाराष्ट्र और कर्नाटक ये तीन भाषिक प्रदेश समाविष्ट हो गये ।

सीर्फ महाराष्ट्र की राजनीति में नहीं भारत की राजनीति में भी भाषिक राज्यों की माँग का आंदोलन बढ गया । भारत के काँग्रेसपक्षीय केंद्रीय सत्ताधारी भाषिक राज्य निर्मिति के संबंध में साशंक मनःस्थिति में थे, परंतु भाषिक प्रदेश राज्यों की माँग अत्यंत गगनभेदी आवाज से होने लगी । आंध्र में इस प्रश्न का तकाजा बढ गया । प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरूजीने स्वतंत्र आंध्र राज्य की योजना संसद के सामने रखी और आंध्र की माँग को स्वीकृत किया । १९४६ से संयुक्त महाराष्ट्र की माँग का आंदोलन शुरू हुआ । इस आंदोलन में महाराष्ट्र के साहित्यकारों ने अगुआई की । साहित्यकारों द्वारा शुरू किया आंदोलन का जनता के आंदोलन में रूपांतर हो गया । इसका आश्चर्यकारक प्रत्यंतर संयुक्त महाराष्ट्र के आंदोलन में मिल गया । भारत सरकारने भाषावार प्रांत रचना के लिए फाजल अली आयोग की स्थापना की । उस आयोग की रपट १९५५ के अक्तूबर में प्रसिद्ध हुई । तब महाराष्ट्र के काँग्रेस पक्ष में संयुक्त महाराष्ट्र की माँग का प्रस्ताव एकमतसे पारित किया । फाजल अली आयोग ने संयुक्त महाराष्ट्र की माँग को स्वीकृत नहीं किया ।

द्विभाषिक बम्बई राज्य

१ नवंबर १९५६ को द्विभाषिक बम्बई राज्य निर्माण हुआ । उस द्विभाषिक बम्बई राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में यशवंतरावजी चव्हाण ने सत्ता अपने हाथ में ली । उस समय संयुक्त महाराष्ट्र के आंदोलन को अत्यंत विशाल, उत्कट और भव्य रूप प्राप्‍त हुआ था ।  भव्य मोर्चे और बडी विस्तृत प्रचंड सभाओं से संपूर्ण महाराष्ट्र क्षुब्ध होकर खडा हो गया था । मोरारजी देसाई के शासनकाल में, १९५५ से १९५६ तक के कार्यकाल में आंदोलन दबाने के लिए १०५ लोग मारे गये और हुतात्मा हुए ।

फाजल अली आयोग महाराष्ट्र की माँग अस्वीकृत करने पर महाराष्ट्र काँग्रेस में गरम और नरम दल ऐसे दो गुट पडे थे । भाऊसाहेब हिरे गरम (उग्र) दल के नेता थे ।  संयुक्त महाराष्ट्र की लडाई बढ रही थी । भाऊसाहबजी हिरे संयुक्त महाराष्ट्र के आंदोलन को समर्थन दे रहे थे । यशवंतरावजी चव्हाण मन से संयुक्त महाराष्ट्र के माँग के पुरस्कर्ता थे । पर समय आने पर काँग्रेस से फूटकर आंदोलन में सामील हाने के लिए उत्सुक नहीं थे । इसलिए मोरारजी देसाई नेता के लिए खडे नहीं हुए । इसलिए उन्होंने यशवंतरावजी को पक्षनेता के रूप में खडा किया । यशवंतरावजी चव्हाण पक्षनेता के रूप में विजयी हुए । यह सारा इतिहास आँखों के सामने होते हुए भी यशवंतरावजी ने यह कठिन, बडी जिम्मेदारी लेने पर उन्होंने कहा कि 'मैं एक भी गोली नहीं चलाऊँगा । फिर भी राजकारोबार अच्छी तरह चलाऊँगा ।' उन्होंने बडी होशियारी और कुशलता से राज्य चलाया । पंडित जवाहरलाल नेहरूजी जैसे महाराष्ट्र स्थापना के बारे में साशंक होनेवाले वरिष्ठ नेताओं के गले उतार दिया कि गुजराथी, मराठी और कानडी इन तीन भाषिक जनताओं के नेताओं की एक राज्य में रहकर मन से सहकार्य से काम करने की तैयारी नहीं है । अन्त में यशवंतरावजी ने यह भी कहा कि अगले सार्वत्रिक चुनाव में काँग्रेस महाराष्ट्र और गुजराथ राज्य में नहीं आ सकेगी । इन दो राज्यों में काँग्रेस की पराजय होगी । यह बात वरिष्ठ नेताओं के गले उतर गयी । वर्‍हाड (विदर्भ), मराठवाडा और कोकण के साथ उत्तर-दक्षिण महाराष्ट्र को मिलाकर मराठी भाषिक राज्य स्थापन करने का विधेयक संसद और राज्यसभा ने स्वीकृत किया । १ मई १९६० को यशवंतरावजी के नेतृत्व में महाराष्ट्र राज्य की स्थापना हुई । १९४६-६० तक के कालखंड में यशवंतरावजी चव्हाण की बेरीज की राजनीति सफल हुई । मैत्री, सद्‍भावना, शुद्ध चारित्र्य और व्यावहारिक होशियारी इन सद्गुणों के कारण यशवंतरावजी यशस्वी हुए।