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अधुनिक महाराष्ट्र के शिल्पकार-४७

मोरारजी गृहमंत्री

उस समय मोरारजी देसाईजी गृहमंत्री थे । महाराष्ट्र की राजनीति में अपना स्थान मजबूत किये बिना बम्बई राज्य का प्रशासन अच्छी तरह चला नहीं सकेंगे, यह जानकर उन्होंने सामान्य ग्रामीण जनता में नवोदित, कर्तृत्वसंपन्न तरुण को अपने काम की मदद के लिए आवश्यक समझा । इसलिए मोरारजीभाई ने आत्मीयता और नम्र भाषा में यशवंतरावजी की पूछताछ की कि - 'आप गृह विभाग में दाखिल क्यों नहीं होते ?' फिर यशवंतरावजी गृह विभाग में दाखिल होकर गृह विभाग का कारोबार देखने लगे ।  मोरारजी ब्रिटिश शासन में साहब थे । इस साहब की कृपा संभालकर यशवंतरावजी ने प्रशासन पर बडी खूबी से कब्जा किया । उत्कृष्ट प्रशासक के रूप में मोरारजीभाई की ख्याति थी । यशवंतरावजी ने मोरारजी के प्रशासन की कुशलता प्राप्‍त की । मोरारजी स्वभाव से करारी थे । यशवंतरावजी ने मोरारजी द्वारा सौंपे हुए सभी काम अच्छी तरह से पूरे किये । यशवंतरावजी ने पुलिस यंत्रणा का प्रमुख विभाग बारिकी से जाँच लिया ।

हिंदू-मुसलमानों के दंगे

१९४८-४९ में हिंदू-मुसलमानों के दंगे उमडकर आये । उस समय चव्हाणजी ने होमगार्ड की संघटना तैयार की । संरक्षणार्थ सिद्ध ऐसी स्वतंत्र नागरिकों की एक प्रकार की सेना ही उन्होंने तैयार की । नागरी पूर्ति में अनुशासन लाया । उन में जैसे उच्च अभिजात रसिकता थी वैसेही ग्रामीण भाग में डफली-तुरही के मैदानी लोककला में उन्हें खूब रुचि थी । यशवंतरावजीने पहले पहले तमाशा लोककला को शासकीय मान्यता प्रदान की ।

१९४६ से १९५६ तक विलक्षण संग्राम

१९४६ से १९५६ इन दस वर्षों में महाराष्ट्र में और भारत में राजनीति का रंगमंच विलक्षण संग्राम नाट्य से जल्दी से बदल रहा था । काँग्रेस में दाये-बाये ऐसे गुट निर्माण हुए थे और उन में स्पर्धा शुरू हुई थी । स्वतंत्र भारत की घटना समिति स्वतंत्र और एकात्म भारत की जनतंत्रप्रधान राज्यघटना निर्माण करने में यशस्वी हुई थी । आशिया खंड में एक विशाल जनतंत्र राष्ट्र की अर्थात भारत की निर्मिति हुई । लेकिन यह राज्यघटना निर्माण होते समय राष्ट्रपिता म. गांधाजी की एक हिंदुत्ववादी उग्रवादी ने हत्या की ।  उसकी भीषण प्रतिक्रिया महाराष्ट्र के शहरों में और विशेषकर ग्रामीण भागों में उमडकर आयी । पिछले कईं वर्षों से वृद्धिंगत हुए ब्राह्मण-ब्राह्मणेतर वाद ने हिंसक और विध्वंसक रूप लिया । लगभग ६ महिने तक ऐसी संहारक घटनाएँ शुरू थी । उस में यशवंतरावजी के नेतृत्व की कसौटी लग गयी । उन्होंने कराड और कराड के आसपास के ग्रामीण भागों में स्वयं उपस्थित रहकर प्रक्षुब्ध होकर घूमनेवाले लोगों को शांत किया ।

प्रत्यक्ष काँग्रेस संघटना में महाराष्ट्र में काँग्रेस में से फूटकर निकले हुए बाये गुट का 'शेतकरी कामकरी पक्ष' १९४९ के दरमियान स्थापित हुआ । बहुजन समाज में कुछ अनुभवी नेता काँग्रेस छोडकर इस नये पक्ष का नेतृत्व करने लगे । शंकररावजी मोरे, भास्कररावजी जेधे, दत्ताजी देशमुख, तुलसीदासजी जाधव, र. के. खाडिलकरजी, यशवंतरावजी मोहिते आदिने इस पक्ष प्रसार के लिए गति लायी । यशवंतरावजी भी उनकी चर्चा में सामील हुए थे । पक्ष स्थापना के समय यशवंतरावजी विवेक से दूर हो गये और अंतिमतः वे काँग्रेस में रहे ।