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अधुनिक महाराष्ट्र के शिल्पकार-४९

महाराष्ट्र का सर्वांगीण विकास

१९५६ से लेकर १९६२ तक के छः वर्षों के शासन काल में यशवंतरावजीने महाराष्ट्र के सर्वांगीण विकास की नीव डाली । गरीब मनुष्य को शिक्षा के संबंध में कहीं समस्या न हो, इसलिए उन्होंने शिक्षाविषयक महत्त्वपूर्ण बिल अमल में लाया । ग्रामीण भागों की दुर्दशा दूर करने के लिए स्थानिक स्वराज्य संस्था को समर्थ बनाने का कानून पारित किया । सहकारी संस्था का विस्तार कर के महाराष्ट्र के कृषि-औद्योगिक अर्थव्यवस्था की नीव डाली । इस अवधी में यशवंतरावजी की महाराष्ट्र में राजनैतिक कर्तृत्व की कीर्ति सारे भारत में तेजी से फैल गयी ।

रक्षामंत्री

१९६२ में चीन ने भारत पर आक्रमण किया । इस आक्रमण तक 'हिंदी-चिनी भाई-भाई' की भावना में भारतीय राज्यकर्ता नेतागण मग्न थे । इस समय के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरूजी के सच्चे मित्र कृष्णमेनन थे । उन्हें इस आक्रमण की तनिक भी चिंता नहीं आयी । उनके विरुद्ध लोगों का क्षोभ चरणसीमा तक पहुँचा । संसद ने और राज्यसभाने कृष्णमेनन को हटाने की माँग की । यशवंतरावजी ने महाराष्ट्र के विकास का भविष्यकालीन चित्र अपने सामने रखकर महाराष्ट्र का कारोबार चलाया था । भारत सरकारने उन्हें रक्षा मंत्री पद स्वीकारने के लिए निमंत्रित किया । उन्होंने निरूपाय होकर महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री पद छोड दिया और केंद्र सरकार में रक्षा मंत्री का पद स्वीकार किया ।

काँग्रेस की पराजय

१९७७ में लोकसभा के चुनाव में इंदिराजी के नेतृत्व में काँग्रेस की पराजय हुई । उसके बाद १९८० तक यशवंतरावजी और भूतपूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधीजी इन दोनों में दुरावा आया । बाद में १९८१ में यशवंतरावजी ने इंदिरा काँग्रेस में प्रवेश किया ।

इतना होने पर भी यशवंतरावजी के मन में कभी कटुता की, तिरस्कार की भावना निर्माण नहीं हुई । उनके मन में इंदिराजी के प्रति उदार भावना थी । ऐसी उदारता अन्यत्र दुर्लभ है ।

यशवंतरावजी की भूमिका में एक प्रकार की दूरदर्शिता थी । क्योंकि संयुक्त महाराष्ट्र की निर्मिति का निर्णय केंद्रीय सरकार लेनेवाली थी । विशेषतः काँग्रेस पक्ष की कार्यकारिणी इस संबंध में निर्णय लेनेवाली थी । निर्णय लेने की जिम्मेदारी बहुत बडे पैमाने पर पंडित जवाहरलाल नेहरूजी पर थी । यशवंतरावजी पहले से राष्ट्रीय एकता और राष्ट्र के राजनैतिक मुख्य प्रवाह या इस संबंध में अत्यंत सुस्पष्ट मत होनेवाले नेता थे और इसलिए उनकी भूमिका के बारे में गलतफहमी हुई । फिर भी वे अपनी भूमिका के आग्रही रहे । इसलिए उस मंच पर रहकर महाराष्ट्रीय जनता का मनोगत स्पष्ट करने का जब अवसर मिला तब उन्होंने अपना और जनता का मनोगत स्पष्ट किया और अपनी भावनाएँ व्यक्त की । पंडित जवाहरलाल नेहरूजी को इस प्रश्न के बारे में राजी करके उन्होंने अपने साथ लिया । इसलिए तो सच्चे अर्थों में संयुक्त महाराष्ट्र की निर्मिति होने के लिए बहुत बडा सहाय्य हुआ । इसका अर्थ संयुक्त महाराष्ट्र की निर्मिति के लिए संयुक्त महाराष्ट्र समितिद्वारा किया हुआ जनजागरण और उस में अनेक तरुणों का हौतात्म्य इसका महत्त्व कम नहीं है । समिति ने जनजागरण करने का और जनमत संघटित करने का बडा महत्त्वपूर्ण काम किया । इसलिए दिल्ली को यही बात दर्ज करनी पडी । पंडित जवाहरलाल नेहरूजी और तत्कालीन काँग्रेस अध्यक्षा श्रीमती इंदिरा गांधीजी इन दोनों को साथ लेने में चतुरता दिखाई । इसलिए संयुक्त महाराष्ट्र निर्मिति में उनका बहुत बडा हिस्सा है इस बात में दो मत नहीं हो सकते ।