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अधुनिक महाराष्ट्र के शिल्पकार-३६

यशवंतरावजी की करुणा

वडूज जि. सातारा का स्वातंत्र्य आंदोलन - इतिहास में अमर हो गया है । वडूज में जब सब आंदोलनकारियों ने एकत्र होकर मोर्चा निकाला तब अँग्रेज सरकार की पुलिसों ने उन पर अंदाधुंद गोलीबार किया था । उन में छः सात लोग मारे गये । सबके आगे परशुरामजी घार्गे था ।

यशवंतरावजी ने यह सब देखा और वे एक तरफ जाकर छुपकर बैठे थे । उनकी आँखों से आँसू बह रहे थे । उस समय वहाँ व्यंकटरावजी आये और उन्होंने यशवंतरावजी से पूछा - 'आपकी आँखों में आँसू क्यों ?' तब यशवंतरावजी ने कहा - 'व्यंकटरावजी, इन लोगों ने स्वतंत्रता के लिए बलिदान किया हैं । उन्होंने अपने परिवार तक का विचार नहीं किया हैं । अब उनके परिवार में लोगों की क्या हालत होगी । वे क्या खायेंगे, और कैसे
रहेंगे ? उन्हें किसका आधार है, इसी चिंता में मैं हूँ ।'

व्यंकटरावजीने कहा - 'यशवंतरावजी, चिंता मत किजिए । मैं उन सब हुतात्माओं के परिवार की देखभाल करूँगा ।' तब उनकी बात सुनकर यशवंतरावजी को अच्छा लगा और उनके दुख का बोझ भी कम हुआ ।

देशभक्तों के प्रति यशवंतरावजी की निष्ठा

अनेक क्रांतिकारकों को जेल में भेज दिया था । वहाँ उन्हें बेहद यंत्रणाएँ दी गयी ।  नौकरशाही का जिनपर गुस्सा था, ऐसे अनेक क्रांतिकारियों को कोलाहोर के षडयंत्र के जाल में उलझाया था । इसी समय यशवंतरावजी के भाव-विश्व में क्रांति करनेवाली एक विशेष घटना घटित हो गयी थी । वह घटना है 'यतीन्द्रनाथ दास ने शुरू किया हुआ आमरण उपोषण ।'

वस्तुतः लाहोर के षडयंत्र से यतीन्द्रदास का दूर से भी संबंध होने का सबूत अँग्रेजों के पास नहीं था । लेकिन २० साल के असहयोग आंदोलन में भाग लेने के कारण सरकार का उनपर गुस्सा था । पाँच वर्षों में उन्हें चार बार जेल में भेज दिया था । चौथी बार जब मैमनसिंग के जेल में थे, तब उन्हें बहुत यंत्रणाएँ दी गयी, इससे परेशान होकर उन्होंने जेल सुपरिंटेंडंट के साथ संघर्ष किया । इसलिए उन्हें कालकोठरी की प्रखर सजा दी गयी ।

राजनैतिक कैदियों के साथ गुनाहगार जैसे बर्ताव किया जाता था यह देखकर सात्विक संताप से यतीन्द्रने जेल में उपोषण शुरू किया था । इससे पहले सरदार भगतसिंग और बटुकेश्वर दत्त इन दोनों ने उपोषण शुरू किया था । उस समय इस उपोषण ने सारे देश का ध्यान आकर्षित किया था । पहले चार-छः दिन बीत जाने पर बहुत चिंता लगी रही ।  उस समय यशवंतरावजी की झोपडी कृष्णा नदी के किनारे पर एक खेत में थी । वहाँ से कराड में आकर वे वृत्तपत्र देखते थे कि उपोषण में यतीन्द्रनाथ दास की तबीयत कैसी है ।

क्रांतिकारियों के उपोषण से यशवंतरावजी अस्वस्थ हुए थे । यतीन्द्रनाथ दास की तबीयत उपोषण से कमजोर होती जा रही थी । प्रत्येक दिन यशवंतरावजी की अस्वस्थता बढ रही थी । उस समय अखबार में आनेवाले वर्णन हृदयद्रावक थे । यतीन्द्रदास के शरीर पर मुर्दनी छा गयी है, यह बात पढकर यशवंतरावजी अस्वस्थ हो रहे थे । वे बेचैन हो गये थे और घायल हो गये थे । ब्रिटिश सरकार की यह निष्ठुर अमानुषता यम को भी लज्जित करनेवाली है ऐसा उन्हें लगा । जमानत देने की शर्त पर सरकार ने उसकी मुक्तता करने की अनुचित उदारता दिखायी । पर स्वयं यतीन्द्रदास ऐसी बदनामी के लिए तैयार नहीं थे । उसकी अपेक्षा उसने इस इहलोक के बंदीवास में से छुटकारा कर लेने की बात सोची होगी ।