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अधुनिक महाराष्ट्र के शिल्पकार-३५

यशवंतरावजी का छोटा साला बाबासाहबजी मोरे फलटण में ही था । उसने यशवंतरावजी से आकर कहा कि पुलिस आयी है । यशवंतरावजी समझ चुके कि उनकी भूमिगत आयु समाप्‍त हो गयी । उन्हें एकही चिंता थी कि उनकी गिरफ्तारी का परिणाम वेणूताईजी की तबीयत पर क्या होता है ? क्योंकि पुलिस ने आकर उसके समक्ष यशवंतरावजी को गिरफ्तार किया था । यशवंतरावजी ने वेणूताईजी को समझाया और कहा कि -

'मुझे कुछ नहीं होगा, तुम चिंता मत करो । अब तो तुम अपनी तबीयत की ओर ध्यान दो और फलटण में मत रहो और तुरंत कराड में माँ के पास चली जाओ ।'

सौ. वेणूताईजी की तबीयत अच्छी नहीं थी । लेकिन उन्होंने यशवंतरावजी की गिरफ्तारी का प्रकार बडे धैर्य से सहन किया और उस रात फलटण संस्थान ने बाँधे हुए नये जेल में प्रथम राजकैदी के रूप में यशवंतरावजी का मुकाम हुआ ।

आश्चर्य इस बात का है कि उस रात में यशवंतरावजी गहरी नींद में सो गये ।  यशवंतरावजी की जिम्मेदारियाँ और चिंताएँ समाप्‍त हो गयी थी । दस महिनों का उनका भूमिगत जीवन समाप्‍त हुआ था । अब सरकार के हाथ में जो होगा वह सरकार करेगी, ऐसा विचार उनके मन में आया ।

यशवंतरावजी जेल में है, यह समझने के बाद उनकी माँ उनसे मिलने के लिए आयी ।  यशवंतरावजी ने जेल के प्रमुख अधिकारियों से प्रार्थना की कि मैं जब मेरी माँ से मिलूँगा तब तुम में से कोई पुलिस या अधिकारी वहाँ उपस्थित न हो । वह दुखी है, उसे इससे मुक्त होना है । इसलिए वहाँ तीसरा मनुष्य होना ठीक नहीं है । उस जेल के अधिकारी के पास मानवता थी । उसने कहा कि मैं वैसी व्यवस्था करता हूँ । लगभग छः महिनों के बाद यशवंतरावजी अपनी माँ से मिल रहे थे । दादा की मृत्यु का दुख माँ ने रो-रोकर हलका किया था । यशवंतरावजी ने उसे समझाया । यशवंतरावजी की तबीयत अच्छी है यह देखकर माँ खुश हुई । इस दुख के समय यशवंतरावजी इतने दिन अपनी माँ से मिले नहीं थे । यशवंतरावजी के मन में यह जो चुभन थी, वह कम हो गयी ।

दो-तीन सप्ताह बीत गये और उसके बाद सौ. वेणूताईजी के आग्रह से वह और यशवंतरावजी दोनों भी दो दिन के मुकाम के लिए फलटण चले गये । आश्चर्य की बात तो यह है कि फलटण में रहते हुए फिर से सातारा जिले के पुलिस अधिकारी प्रतिबंधक स्थानबद्धता कानून का वारंट लेकर आये थे । जिस स्थानपर यशवंतरावजी को पहले पहले गिरफ्तार किया था, उस स्थान पर आये थे । सौ. वेणूताईजी को तो धक्का लगा ।  उसे लगा कि यशवंतरावजी फलटण आये कि उन्हें गिरफ्तार किया जाता है । सौ. वेणूताईजी ने यशवंतरावजी से कहा - 'मैंने तुम्हे फलटण आनेका किसलिए आग्रह किया ।' इस प्रकार वह दुख करने लगी । यशवंतरावजी ने उसे समझाया और उसके साथ यशवंतरावजी कराड की ओर निकल पडे । यशवंतरावजी ने पुलिस अधिकारी से कहा - 'मैं मेरी पत्‍नी को घर में छोड दूँगा और वहाँ मैं तुम्हारे कब्जे में आऊँगा । तब तक तुम्हारा प्रबंध मेरे आसपास रखने के लिए मेरा कोई हर्ज नहीं है ।' उसके अनुसार सब हुआ और फिर येरवडा की सफर शुरू हुई ।

इस समय यशवंतरावजी को 'ब' वर्ग नहीं दिया गया । येरवडा के कैदियों के लिए जो तीसरा वर्तुल है उसमें से एक बराकी में यशवंतरावजी को भेज दिया । इस बराकी में यशवंतरावजी को जिले में अनेक कार्यकर्ता, मित्र मिल गये । उन्हें याद आता है कि वहाँ आत्मारामजी जाधव, हरिभाऊजी लाड जैसे अनेक कार्यकर्ता मिले । आत्मारामजी बापू को जो भयंकर यंत्रणाएँ दी गयी थी, उसकी बातें आत्मारामजी बापू ने यशवंतरावजी को इसी बराकी में कह दी । यशवंतरावजी की सामनेवाली बराकी में श्री. ना. ग. गोरेजी और सहयोगी मित्र थे । यशवंतरावजी की और उन मित्रों की बीच बीच में भेट होती थी ।

इन तीन महिनों में यशवंतरावजी का कुछ विशेष पठन नहीं हुआ था । लेकिन उन्हें कार्यकर्ताओं का सहवास तो मिल गया था । उनके साथ गपशप करना, अपने अनुभव कहना, उनके अनुभव सुनना आदि में उनका सारा समय बीत गया । इन तीन महिनों में यशवंतरावजी की तबीयत अच्छी नहीं रही । घर की ओर से गणपतरावजी की तबीयत का समाचार आता था । वे डॉक्टर से औषध लेते थे और गृहस्थी चलाने का प्रयत्‍न कर रहे थे । यशवंतरावजी के मन में विचारसंघर्ष शुरू हुआ था कि मैं मेरे परिवार के लिए कितनी यंत्रणाएँ दूँ ? दादाजी गये, गणपतरावजी गंभीर बीमारी से बीमार है ।
सौ. वेणूताई की तबीयत ठीक नहीं है । माँजीने कुछ बिना बोले सब सहन कर रही थी ।  लेकि वह दुखी है । उन्होंने मुझसे बहुत अपेक्षाएँ की होंगी । लेकिन यशवंतरावजी ने उनकी कुछ भी अपेक्षाएँ पूरी नहीं की । उनके मन में यह जो चुभन है वह उन्हें जीवनभर चुभती रही ।

सौ. वेणूताईजी की तबीयत कभी ठीक रहती, कभी बिगडती । इसलिए वेणूताईजी को मिरज के अस्पताल में रखा गया । यशवंतरावजी भी वहाँ गये । एक डॉक्टरने उनकी तबीयत देखी, उसकी जाँच की और थोडे ही दिनों मे औषध से वेणूताइजी की तबीयत अच्छी हुई । यशवंतरावजी को बहुत आनंद हुआ । उतना आनंद उन्हें कभी नहीं हुआ ।  यशवंतरावजी की यह पत्‍नीनिष्ठा प्रशंसनीय, प्रेरणादायी और अनुकरणीय है ।