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अधुनिक महाराष्ट्र के शिल्पकार-३४

सौ. वेणूताई की गिरफ्तारी ।

१५ जनवरी को यशवंतरावजी को कराड से संदेश आया कि १४ जनवरी को अर्थात संक्रांति के दिन कराड पुलिस ने उनकी पत्‍नी वेणूताईजी को गिरफ्तार कर कराड के जेल में रखा है । पुलिस वहाँ तक जायेगी ऐसी यशवंतरावजी की अपेक्षा नहीं थी । वह भी उसके विवाह के बाद पहले संक्रांति के दिन उसे इस प्रकार जेल में जाना पडा, यह बात उन्हें अच्छी नहीं लगी । इस बात का उसकी तबीयत पर और मनःस्थितिपर क्या परिणाम होगा ? यशवंतरावजी को इस बात की चिंता लगी हुई थी । यशवंतरावजी के परिवार को आंदोलन का अनुभव था । लेकिन वह जिस घर में से यशवंतरावजी के घर में आयी थी, वह घर यशवंतरावजी के घर की अपेक्षा अधिक सुस्थिति में था । उसके पिताजी अभी अभी चल बसे थे । वे बडोदा महाराजा के निजी काम करते थे । उनके विश्वासपात्र गृहस्थ थे । तब उनकी रहन-सहन और जीवन पद्धति उच्च दर्जे की थी । इस पद्धति का विचार करते हुए विवाह के बाद उसे तुरंत जेल में जाना पडा, यह बात मानसिक यंत्रणा देनेवाली थी, ऐसे कुछ विचार यशवंतरावजी के मन में आ गये । लेकिन यशवंतरावजी ने स्वयं को समझाया कि प्रत्यक्ष बलिदान करने का काम लोग आंदोलन में करते हैं, तो इस इतनीसी मामूली बात का अपने मनपर बोझ क्यों । इसलिए यशवंतरावजी ने इस बोझ को दूर कर दिया ।

सौ. वेणूताईजी को पुलिस ने लगभग छः सप्ताह कराड और इस्लामपूर जेल में रखा था ।

आंदोलन समाप्‍त होनेपर मैंने जब उसे पूछा -

'पुलिसने तुम्हारे साथ कैसा बर्ताव किया ?'

तब उसने कहा -

'पुलिस जैसे बर्ताव करती है, वैसा बर्ताव किया ।'

जब वे पूछताछ के प्रश्न पूछते थे, तब प्रश्न पूछने की पद्धति में उद्धता थी । पर शेष कुछ परेशानी नहीं हुई । जेल का अन्न घर के अन्न जैसा नहीं था, इसलिए उसे कुछ थोडा बहुत कष्ट हुआ होगा ।

इस पद्धति से उनके परिवार पर भूमिगत आंदोलन का आघात धीरे-धीरे पड रहा था ।  श्री. गणपतरावजी विजापूर जेल में थे । सौ. वेणूताई कराड या इस्लामपूर जेल में थी ।  और यशवंतरावजी ऐसे ही कहीं घुमक्कडी करते हुए घुमते फिरते रहे । इसकी कुछ टीस यशवंतरावजी के मन को हमेशा लगी रही ।

यशवंतरावजी पुणे शहर और जिले के ग्रामीण क्षेत्र में भूमिगत पद्धति से काम करके नये संपर्क सूत्र जोडने का प्रयत्‍न कर रहे थे । इस समय एक दिन मई महीने के मध्य में यशवंतरावजी को फलटण से संदेश आया कि सौ. वेणूताईजी की तबीयत बिगड गयी है और वह मरणोन्मुख है । उस पूरे दिन और रात में यशवंतरावजी सो नहीं सके । मेरा कर्तव्य क्या है, इसका यशवंतरावजी अपने मन में विचार करने लगे कि - 'परिवार के लिए मेरी कुछ जिम्मेदारी है कि नहीं, इसी विचार से मैं अस्वस्थ हो गया और दूसरे दिन फलटण जाने का निर्णय लिया ।'

यशवंतरावजी फलटण पहूँचे । यशवंतरावजी फलटण आनेपर वेणूताईजी की तबीयत पर अच्छा परिणाम हुआ । उसके मन का धैर्य बढ गया । उसकी बीमारी जैसे शारीरिक थी वैसे मानसिक भी थी । यशवंतरावजी ने वेणूताई से कहा कि आज का दिन यहाँ रहूँगा और रात में निकल जाऊँगा । फलटण में डॉक्टर बर्वेजी प्रसिद्ध देशभक्त थे ।  यशवंतरावजी ने उन्हें बुलाया । यशवंतरावजी को देखकर उन्हें धक्का लगा ।  यशवंतरावजी ने उन्हें सभी परिस्थिति और उनकी मानसिक स्थिति की कल्पना दी ।

यशवंतरावजी ने उनसे कहा - 'किसी अच्छे डॉक्टर के पास वेणूताईजी को सौंपा जाना चाहिए, इसलिए मैं यहाँ आया हूँ ।'

डॉ. बर्वेजी ने यशवंतरावजी की बात स्वीकार की और उस दिन यशवंतरावजी वहाँ ठहरे ।

यशवंतरावजी की कल्पना के अनुसार वे वहाँ आने की जानकारी बहुत कम लोगों को होगी । लेकिन कहा नहीं जा सकता । आसपास के घरों में रहनेवाले लोगों में से किसीने देखा होगा । क्योंकि दूसरे दिन वे वेणूताईजी के पास बैठे थे । उसी दिन दोपहर के समय संस्थान के पुलिसोंने उनके ससुराल के घर को घेरा डाल दिया ।