• 001_Krishnakath.jpg
  • 002_Vividhangi-Vyaktimatva-1.jpg
  • 003_Shabdhanche.jpg
  • 004_Mazya-Rajkiya-Athwani.jpg
  • 005_Saheb_14.jpg
  • 006_Yashodhan_76.jpg
  • 007_Yashodharshan.jpg
  • 008_Yashwant-Chintanik.jpg
  • 009_Kartrutva.jpg
  • 010_Maulik-Vichar.jpg
  • 011_YCHAVAN-N-D-MAHANOR.jpg
  • 012_Sahyadricheware.jpg
  • 013_Runanubandh.jpg
  • 014_Bhumika.jpg
  • 016_YCHAVAN-SAHITYA-SUCHI.jpg
  • 017_Maharashtratil-Dushkal.jpg
  • Debacle-to-Revival-1.jpg
  • INDIA's-FOREIGN-POLICY.jpg
  • ORAL-HISTORY-TRANSCRIPT.jpg
  • sing_3.jpg

अधुनिक महाराष्ट्र के शिल्पकार-३३

झंडा फहराने का प्रसंग

यशवंतरावजी और उनके मित्रों ने झंडा फहराने का निर्णय लिया । दूसरे दिन सुबह आठ बजे यशवंतरावजी और उनके मित्र हाइस्कूल के मैदान में जो नीम का पेड है उसके आसपास इकठ्ठा हो गये । यशवंतरावजी ने पेड पर चढकर झंडा फहराया । फिर सबने ध्वज-वंदन करके झंडे को सलामी दी । यशवंतरावजी और उनके मित्रों ने 'वंदे मातरम' की घोषणाएँ दी और राष्ट्रगीत होने के बाद सब विद्यार्थी अपने-अपने घर गए । परंतु शाला की जाँच के लिए आये हुए एज्युकेशनल इन्स्पेक्टर सामनेवाले बहुलेकरजी के बंगले में मुकाम के लिए ठहरे थे । उन्होंने यशवंतरावजी का झंडा वंदन का कार्यक्रम देखा था ।  यह कार्यक्रम देखने के बाद उन्होंने प्रधान अध्यापक से पूछताछ शुरू की ।

इधर पांडू तात्या डोईफोडेजी को पुलिस ने गिरफ्तार किया । दूसरे दिन यशवंतरावजी ११ बजे हाइस्कूल में गए । हाइस्कूल शुरू हुआ और यशवंतजी अपनी कक्षा में बैठे ।  हाइस्कूल की तासिका शुरू थी । पर यशवंतरावजी का उस में ध्यान नहीं था । हाईस्कूल की तासिका समाप्‍त होने से पहले मुख्याध्यापक एक पुलिस अधिकारी को लेकर यशवंतरावजी की कक्षा में आए । उन्होंने यशवंतरावजी को बाहर बुलाकर झंडावंदन के कार्यक्रम के बारे में पूछा -

यशवंतराव ने कहा - 'हाँ, मैंने यह सब किया और ऐसा करते रहना मेरा निश्चय है ।'

पुलिस अधिकारीने मुख्याध्यापक से कहा, 'मैं इस विद्यार्थी को गिरफ्तार करता हूँ और ले जाता हूँ । उसके अभिभावकों को सूचना दो ।'

और इस प्रकार यशवंतरावजी की पहली शास्त्रशुद्ध गिरफ्तारी हुई ।

पूरे दिनभर पुलिस-कचहरी में यशवंतरावजी को बिठाकर रखा । वे बीच बीच में यशवंतरावजी के पास आते और उनसे कुछ जानकारी मिलती है कि नहीं, इसकी पूछताछ करते । लेकिन यशवंतरावजी कुछ भी नहीं कहते थे । दिनभर प्रयत्‍न करनेपर भी यशवंतरावजी की ओर से कुछ अधिक जानकारी नहीं मिलती, यह देखने के बाद रात होते ही उन्होंने यशवंतरावजी को जेल की एक कोठरी में ढकेल दिया ।

यशवंतरावजी के घर के लोगों को यह खबर मिली थी । पर वे इस संबंध में कुछ नहीं कर सकते थे ।

कुछ दिन चले जाने के बाद एक दिन यशवंतरावजी और तात्या डोईफोडेजी इन दोनों को मॅजिस्ट्रेट के आगे खडा कर दिया । उन्होंने उन पर लगाये गए इलजाम पढकर उनको सुनाये दिए । यशवंतरावजी ने अपने ऊपर लगाए इलजाम स्वीकार किये । फिर मॅजिस्ट्रेट का काम आसान हो गया । उसने तुरंत यशवंतरावजी को अठारह महिनों की सख्त कैद की सजा फरमायी और मुकदमे का काम समाप्‍त हुआ ।

एक मिनट के पहले यशवंतरावजी कच्चे कैदी थे और अब पक्के कैदी बन गये । उस उम्र में अठराह महीने घर से और गाँव से दूर रहने की कल्पना यशवंतरावजी को थोडी-सी अस्वस्थ करनेवाली लगी ।

सजा के दूसरे दिन माँ और घर के सब लोक यशवंतरावजी से मिलने के लिए आये ।  उनके साथ उनकी मराठी शाला में के एक पुराने शिक्षक भी आये थे । पुलिस ने यशवंतरावजी को कोठरी से बाहर निकाला और उनके पहरे में उन्हें फौजदार के कार्यालय की ओर ले गये । फौजदार की उपस्थिति में माँ की भेंट हुई । यशवंतरावजी को देखते ही माँ की आँखों में आँसू आये । यशवंतरावजी उम्र से छोटे, इसी उम्र में सजा, वह भी दीर्घ अवधि की । इसलिए माँ का रोना स्वाभाविक था । शिक्षक घर के लोगों को दिलासा दे रहे थे । बीच में ही उन्होंने यशवंतरावजी से कहा -

'फौजदार साहब दयालु है । क्षमा मांगी तो छोड देंगे ।' 'मास्तरजी, क्या बोलते है आप ? क्षमा माँगना ! मुआफी मांगने का कोई एक कारण नहीं । तबीयत को संभालो ।'

'भगवान अपने पीछे हैं ।' माँ ने यह बात कहीं और उठकर चली गयी ।

यशवंतरावजी और माँ की भेंट समाप्‍त हुई ।

माँ के इस स्वाभिमाणी गुण की धरोहर अपने हृदय में सुरक्षित रखकर यशवंतरावजी अपनी कोठरी में वापस गये । वे अपने मन से निश्चिंत हो गये ।  

यशवंतरावजी ने कहा था कि -'आज जब यह प्रसंग याद आता है, तब माँ का यह बडप्पन मुझे कितना उदात्त मोड देकर गया, यह मुझे महसूस होता है ।'

जिन्दगी में बहुत वर्ष दुख की साथ करने पर भी दिलासा देना, दिलदार रहना यह ईश्वर की देन होती है ।

यशवंतरावजी कहते हैं कि - 'मेरी माँ का जीवन हमेशा दीपक की ज्योति के समान लगता है । दीपक जलता है । उसके प्रकाश में मनुष्य विचरते हैं, घूमते हैं । लेकिन लोगों को मेरा उपयोग होता है, यह उस ज्योति को, उस प्रकाश को मालूम नहीं होता ।  उस दीपक ज्योति का जलना मेरी माँ का जलना है ।'

यशवंतरावजी कहते हैं - 'पेड पर झंडा फहराने के कारण मुझे सजा हुई ।' ऐसे अनेक प्रसंग आगे मेरे जीवन में आये । दुख के प्रसंग आये, वैसे सुख के भी प्रसंग आये । हर प्रसंग के समय मेरी माँ एक ही वाक्य बोलीती रहती थी कि - 'ईश्वर अपने पीछे है ।'  यशवंतरावजी के जीवन की कठिन सफर में उन्हें ईश्वर अपने पीछे है का अनुभव आता रहा ।

ऐसा पुत्र-प्रेम और मातृभक्ति अन्यत्र दुर्लभ है ।