आज के महाराष्ट्र में मानों यौवन की एक नई छटा देखने को मिलती है । सभी क्षेत्रो में विशेष उत्साह तथा लगन के दर्शन होते है । वहां के न केवळ वर्तमा नेताओ में अपितु जन जन में इस उल्लास का भाव दृष्टिगोचर होता है । भारत के अन्य प्रदेशो के छात्रो से हम यहां के छात्रो की तुलना करें तो हमें ज्ञात होगा कि जो अनुशासन व कर्त्तव्य पालन की भावना यहां के छात्रो में है वह अन्य प्रदेशों के छात्रो के लिये अनुकरणीय है । चाहे वहां के कृषक समाज को लें या शासन के कर्मचारियो को जनसाधारण को या करीगर व मजदूर समुदाय को, सभी में हमें एक नयी उद्योग-भावना का दर्शन होता है । मानो महाराष्ट्र का मानव नये सिरे से नव जीवन, नव समाज निर्माण के लिये कटिबद्ध है । यही वस्तू महाराष्ट्र दर्शन में आज प्रमुख रूप से दर्शनीय है । बस आवश्यकता इतनी भर है कि इस उत्साह के रहते ही उसके सदुपयोग द्वारा देश के भावी निर्माण का कार्य पूरा हो अन्यथा आन्ध्र की भांति यहां भी यदि फूट-वैमनस्य व अन्य सामाजिक दुरहताओ का बीजारोपण हो गया तो यह महान विषाद का कारण सिद्ध हो जाएगा । किन्तु जो भी परिस्थितियां व प्रगति के लक्षण हमें आज यहां नजर आते है उनसे सहज ही विश्वास होता है कि जिस प्रकार कोयना के जलप्रवाह को संयत कर उससे राष्ट्रीय योजनाओं की पूर्ति का पूरा प्रयास किया जा रहा है वैसे ही यहां की जनता की अपरिमिती कार्यशक्ति का सदुपयोग अवश्य ही उस प्रदेश को भारत का भावी सिरमोर होने का सौभाग्य प्रदान करेगा ।
"महाराष्ट्र का निर्माण इतिहास का एक आव्हान है । इस आव्हान की पूर्ति उसकी जनता किस प्रकार करेगी इस पर उस का भविषअय निर्भर है । शुभारंभ के लिए और शक्ति संग्रह के लिए महान् और गौरवपूर्ण परंपरा का उत्तराधिकार इस राज्य को प्राप्त है । मानवों के उत्कृष्ट गुणों का उस मे प्रतिष्ठापना की गयी है ।
अब एक नयी यात्रा शुरू होती है - एक दीर्घ तथा परिश्रमपूर्ण यात्रा- क्योकि इसी याता के अंत में जनता का अंतिम लाभ सुप्त है । "
- यशवंतराव चव्हाण