बम्बई के उद्योगो ने देश के सभी भागों से पूंजी और साहसी व्यापारियों को अपनी ओर खींचा है । सीमा और प्रशासन सम्बन्धी अदलाबदली के बावजूद यह प्रक्रिया अभी भी जारी है । सबसे बडी कमी बम्बई के देहाती क्षेत्रो में और सच पूछा जाय तो बम्बई नगरी को छोड राज्य के सभी भागों मे बिजली का अभाव था । इसी समस्या के निवारण के लिये कोयना योजना हाथ में ली गयी है जिसका सर्वप्रथम उद्देश्य सस्ती बिजली उपलब्ध करना है । इस योजना के कार्यान्वित होते ही महाराष्ट्र बडे पैमाने पर घरेलू और छोटे उद्योगो को प्रोत्साहन दे सकेगा । सवाल केवल समय का है । कोई भी इस बात की कल्पना कर सकता है कि कुठ ही सालो में महाराष्ट्र के विस्तृत प्रदेश में औद्योगिक योजनाओं का पूर्ण विस्तार हो जायेगा ।
महाराष्ट्र की औद्योगिक संभावनाओ के विषय में यदि किसी को संदेह था तो वह वहां की खनिज संपत्ति के पर्यवेक्षण से दूर हो गया है । विदर्भ और मराठवाडा की खनिज संपत्ति इतनी अधिक और विस्तृत है कि उसके आधार पर लोग इस क्षेत्र को भारत का भावी "सर" ( यूरोप का प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र ) समझने लगे है । इन साधनों का पूरा पूरा उपयोग किया जाएगा । महाराष्ट्र सरकार की दृढ नीति और केन्द्र में उसकी साख इस बात की गारन्टी है ।
शिक्षा और संस्कृति के क्षेत्र में महाराष्ट्र का नेतृत्व सर्वसान्य है । राज्य के सभी भागों में शिक्षा के विकास में केवल राज्य सरकार की सहायता से नहीं, निजी रुप से भी अनेकविध संस्थाओनें पूरा योगदा दिया है । महाराष्ट्र की यात्रा करत हुए सभी स्थानों में इन संस्थाओ की कृतियों के आदर्श नमूने हमारे सामने प्रस्तुत होते है । और संपूर्ण महाराष्ट्र-भूमि वास्तव में विद्यार्जन के लिए बनी एक तपोभूमि मालूम होती है जहां आचार्य और विद्यार्थी विनय और अनुशासन का आज के युग में अकल्पनीय उदाहरण प्रस्तुत कर हमारी उस बिसरती हूई प्राचीन परंपरा का स्मरण दिलाते है । प्राचीन परंपरा के साथ चली आती हुई इस कडी का नया जोड हम चिपळूणकर, आगरकर और तिलक के दिनों से जुडा पाते है जिन्होने पूर्वी और पश्चिमी, प्राचीन और अर्वाचीन ज्ञान की धाराओ को मिलाया और भारतीय वातावरण में नवशिक्षण का मार्ग प्रशस्त किया । इससे पूर्व उच्च शिक्षा की प्राय: सभी संस्थाएं तत्कालीन सरसर अथवा ईसाई पादरियो द्वारा संचालित थीं । इसके प्रतिक्रिया स्वरुप महाराष्ट्र में 'दक्षिण एज्युकेशन सोसायटी' की स्थापना हुई और यह कदम संक्रामक बन गया । महाराष्ट्रीय नेताओं के सेवाभाव, विद्यानुराग और त्याग के कारण ऐसी ही कई संस्थाओ का जन्म हुआ जिससे महाराष्ट्र के सभी बालक बालिकाओ के लिये विद्यामंदिर का द्वार खुल गया । कोंकण एज्युकेशन सोसायटी, महाराष्ट्र एज्युकेशन सोसायटी, शिवाजी एज्युकेशन सोसायटी और रैय्यत एज्युकेशन सोसायटी इत्यादि ऐसी संस्थाएं है जिनके कारण महाराष्ट्र शिक्षा के क्षेत्र में भारत भर में अग्रणी हो गया है और इस प्रकार महाराष्ट्र में नवजागरण के युग का उदय हुआ । आज महाराष्ट्र की प्रगति को देखते हुए यह विश्वास होता है कि इस क्षेत्र में महाराष्ट्र अपने नेतृत्व को बनाए रक्खेगा । शिक्षा के अतिरिक्त महाराष्ट्र संस्कृत और शास्त्रीय अध्ययन तथा भारतीय पुरातत्त्व भारत विज्ञान सम्बन्धी अनुसंधान में भी अग्रणी रहा है । इस अध्ययन और अनुसंधान को अब पूना विश्वविद्यालय की स्थापना से और भी अधिक प्रोत्साहन मिलेगा । राज्य सरकार की ओर से भी अनुसंधान कार्य के लिये विशेष उदारता की नीति वरती जा रही है । यह भी पूरी आशा है कि संस्कृत की कुछ अप्राप्य कृतियों के प्रकाशन द्वारा हमें अपनी प्राचीन संस्कृति के विषय मे विशेष ज्ञान प्राप्त हो सकेगा ।