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अधुनिक महाराष्ट्र के शिल्पकार १०९

काव्य में यशवंतरावजी का गौरव गान

(१)  यशवंतराव चव्हाण रक्षा-मंत्री का पद सँभालने दिल्ली जा रहे थे । उस अवसर पर महाराष्ट्र कवि यशवंत ने उनके सम्मान में यह कविता लिखी । उसका हिंदी अनुवाद पूना विद्यापीठ के भूतपूर्व प्राध्यापक डॉ. गजानन चव्हाण ने किया है ।

अहा यह अपूर्व संगम, जमुना से मिलने ।
निकल पडी यह सह्यगिरि की कन्या ॥
परचक्र की छाया अशुभ
सँवला रही जमुना जल को ।
साहाय्य करने संकट में यह
निकल पडी सह्यगिरी की कन्या ।
चीनी नहीं, अरे वह तो दुष्ट कालिया ।
लाँघ हिमाद्रि को आया है वह ।
मर्दन करने मूर्ति सांवली धन्या
निकल पडी सह्यगिरि की कन्या ॥
कृष्णा यह केशरी ध्वजा
स्फुरित हो रही शौर्य भुजा
लेकर घृति-मति और दक्खन की संपदा ।
निकल पडी सह्यगिरी की कन्या ॥
सरिता कृष्णा स्व-कछार में देख
ज्वार-बाजरों के खिन्न उंठल भालों को
रोक न पायी अपने को वह
निकल पडी सह्यगिरि की कन्या ॥
कृष्णा यह वीरों की जन्मदात्री
यह दुर्गा, खल दमन कारिणी
विजय प्राप्ति का संकल्प किये वह
निकल पडी सह्यगिरि की कन्या ॥
ज्वलंत कल्लोलिनी कृष्णा यह
कलि काल को धमकाती हुई
कालिंदी रक्षा की कटिबद्धता यह
निकल पडी सह्यगिरि की कन्या ॥