(२) विभूषित कर दो 'संरक्षण' पद तुम बनो 'यशवंत' ।
सह्याद्रि की हर कगार में गूँज उठी जय ध्वनि
विशाल भारत भर में पहूँची क्षणभर में यह ध्वनि ॥१॥
'यशवंत' के यश कीर्ति की वार्ता ज्यो ज्यो आई
महाराष्ट्र की भोली जनता हर्षभरित तब हुई ॥२॥
देकर तुम्हें 'संरक्षण' पद दिया श्रेष्ठ यह मान
'पंडित' जीने महाराष्ट्र का कर दिया सम्मान ॥३॥
जल स्फूर्तिप्रद महाराष्ट्र का प्राशन तुमने किया
शिवराजा की पावन भू पर अखंड विचरण किया ॥४॥
धडक उठा दिल मुगलशाही का दम खम देख मराठों का
फहराकर ही रुके अटकपर जो उत्तंग पताका ॥५॥
भरा हुआ है उन वीरों का साहस तव अंतर में
कण-कण से निःसृत महाराष्ट्र की देशभक्ति तब मानस में ॥६॥
'जिजाबाई' का 'छत्रपती' का कविवर संतों का
आशीर्वाद दे रहा तुम्हे यह पवन दख्खन का ॥७॥
धन्य जन्म-भू ! धन्य मातृ तव ! वेणुताई भी धन्य हुई
तब कार्य रूप में फली फूली उन सबकी पुण्याई ॥८॥
हर हर गरजकर 'संरक्षण' पद विभूषित कर दो 'यशवंत'
सम्मान भरा यह महाराष्ट्र का प्रणाम लो गुणवंत ॥९॥
(३) यशवंतरावजी का व्यक्तिमत्त्व और कर्तृत्व देखकर अनेक कवियों ने हिंदी-मराठी भाषा में यशवंतरावजी के गुणगौरव पर अनेक कविताएँ लिखी है । 'नया जीवन' नाम के एक हिंदी कविने लिखा है-
ये मेनन नहीं, ये चव्हाण हैं ।
ये स्वीकार नहीं, ये एक आन है ॥
'हटो' और 'हटो', इसका नारा नहीं ।
'बढो' और 'बढो', इसकी यह शान है ॥
लडेगा जो इससे, वो पिस जायेगा ।
अडेगा जो इससे, वह पिट जायेगा ॥
कोई जाके कह दो, ये आयुब से ।
अडेगा जो इससे, वह मिट जाएगा ॥
कवि यशवंत, कवि कुसुमाग्रज, कवि ना. धों. महानोर आदि कवियोंने यशवंतरावजी को काव्यांजली समर्पित की है ।
यशवंतराव चव्हाण १९५६ से १९६२ तक महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे । उन्होंने सांगली के भाषण में कहा था - 'महाराष्ट्र का भाग्योदय मुझे मेरी आँखों के सामने दिखाई देता है । थोडी दूर की मंजिल है, वहाँ तक आपको जानाही पडेगा । मंजिल तक पहुँचने का पथ कठीन है । कष्ट कम नहीं है, लेकिन यश निश्चित है ।' आगे चलकर उन्होंने गुणवत्ता को प्रधानता देने की बात तय की थी । 'महाराष्ट्र में गुणों की अवहेलना नहीं की
जायेगी । किसी भी क्षेत्र में, सत्ता स्थान में, चुनाव में गुणवत्ता को महत्त्व दिया जायेगा, उस महत्त्व को कायम रखा जायेगा । उसके बिना हम महाराष्ट्र का भला नही कर सकेंगे ऐसी मेरी श्रद्धा है ।' इस में उनकी राजनीति की दिशा प्रतिबिंबित होती है । इसलिए सच्च अर्थों में महाराष्ट्र के इस भूमिपुत्र को महाराष्ट्र का 'शिल्पकार' कहना उचित है ।