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अधुनिक महाराष्ट्र के शिल्पकार-८१

गृहमंत्री

गुलझारीलाल नंदा गृहमंत्री थे । गृहमंत्री के रूप में उनका कार्यकाल संपूर्ण असफल हुआ था । मार्क्सवादी कम्युनिस्टों के खिलाफ आयोजित दमनचक्र उपायों से वे बहुत बदनाम हुए थे । उनके कुछ निर्णय और कृतियाँ बहुत वादग्रस्त थीं । वे सब गैरजिम्मेदार ठहरी । जैसे साधुओं के निदर्शनों के प्रकरण में आँसधुआँ, गोलीकांड और जुल्म की नीति आदि कृतियों के कारण उन्हें गृहमंत्री पद से निकालना आवश्यक था । तब उनकी जगहपर कौन ? यह प्रश्न जब निर्माण हुआ तब यशवंतरावजी का नाम सामने आया और श्रीमती गांधी ने यशवंतरावजी का गृहमंत्री पद के लिए चुनाव किया ।

यशवंतरावजी गृहमंत्री हुए । फिर नयी जिम्मेदारी और नये आव्हान उनके सामने थे ।  गृहमंत्री पद यह संसद में बडे सन्मान का पद उन्हें मिला । इस काल में देश की परिस्थिति स्फोटक हुई थी । यशवंतरावजी ने शांति और सुव्यवस्था रखकर उसे पूर्व पद पर लाने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया ।  

कुल मिलाकर यशवंतरावजी ने गृहमंत्री पद की जिम्मेदारी अच्छी तरह संभाली । यह समय उनके मंत्रिपद का सुनहरा काल था । विपक्ष के भडिमार को शांति से, उत्तेजित न होते हुए उत्तर देना, दिक्कत के प्रश्न शांति से और सामोपचारसे सुलझाना यह उनकी पद्धत थी ।

१९६७ के चुनाव के बाद वे इंदिराजी के मंत्रिमंडल में फिर से गृहमंत्री हुए । १९६७ के चुनाव में देश में ९ राज्यों में काँग्रेसेतर विधायक दल की सरकार आयी थी । ईशान्य भारत के राज्यों में अस्वस्थता और फुटीरतावादी प्रवृत्तियाँ बढ रही थी । यशवंतरावजी ने उन भागों का दौरा किया । वहाँ के जनजीवन और संस्कृति का अभ्यास किया । उसके अनुसार उस प्रदेश में लोगों की माँगे ध्यान में लेकर उनकी कुछ राज्यों में विभाजन करने की शिफारीस की । संसद ने उसे मंजुरी देनेपर उस प्रदेश में अच्छी तरह शांति प्रस्थापित हुई ।  

गृह विभाग की व्याप्ति बडी थी । राष्ट्रीय जीवन के चारों ओर से संबंध था । कानून और सुव्यवस्था अबाधित रखनेसे लेकर आंतरराज्य संबंधों तक प्रत्येक क्षेत्र में असंख्य उलझे हुए प्रश्न निर्माण हुए थे । इस समय यशवंतरावजी के हाथ में गृह विभाग के सूत्र आये थे । कुल मिलाकर वह वर्ष भारतीय राजनीति में बहुत तीव्र संघर्ष का था । हिंदुओं के और शीखों के जीर्णोद्धारका प्रश्न उभरकर सामने आया था । भाषिक, प्रादेशिक अस्मिता धारदार बनी हुई थी । आत्मदहन की धमकियाँ देकर संत फत्तेसिंग और आठ शीख नेता गृहमंत्रालय को आव्हान दे रहे थे । उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार के विद्यार्थियों का असंतोष दबाने के लिए पुलिस विभाग अमानुष स्तर तक पहुँच गया था । चव्हाणजी ने कार्यभार लेने पर तीनही दिनों में विद्यार्थियों का जुलूस चलकर आया ।

चव्हाणजीने अपनी शैली से इन प्रश्नों की ओर ध्यान दिया । प्रासंगिक विद्रोह का दमन यह किसी भी प्रश्न के निर्णायक सुलझाने का मार्ग नहीं हो सकता ऐसी चव्हाणजी की पक्की नीति थी । उन्होंने विविध समितियाँ नियुक्त कर के हर एक प्रश्न की मूलग्राही चिकित्सा, विषयों का सर्वांगीण दृष्टि से अभ्यास कर निर्णय लिए और उनकी कारवाई की । यशवंतरावजी जब गृहमंत्री थे तब उन्होंने अपनी सत्ता का उपयोग राष्ट्र के पुरोगामी, आर्थिक और सामाजिक उद्देश साध्य करने के लिए किया और देश के सामने आनेवाले आवाहनों का बडे सामर्थ्य से मुकाबला किया ।