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अधुनिक महाराष्ट्र के शिल्पकार-८०

युद्धसामग्री प्राप्‍त करने की दृष्टि से उन्होंने अमरिका, रशिया का दौरा किया ।  पं. नेहरू के निधन के बाद लालबहादूर शास्त्री प्रधानमंत्री बने । उनके मंत्रिमंडल में यशवंतरावजी फिरसे रक्षा मंत्री हो गये । उन्होंने फिर रशिया का दौरा किया और वह यशस्वी हुआ । १९६५ में पाकिस्तानने शरारत करने की शुरूआत की । यशवंतरावजी ने सेना को तैयार रहने का आदेश दिया । पाकिस्तान के आक्रमण को साफ जवाब दिया ।  भारतीय सेना ने पाक की ऐसी नाकाबंदी की कि अन्त में उन्हें युद्धविराम घोषित करना पडा । युद्ध की समाप्ति होने पर भी दोनों देशों में शांति स्थापित नहीं हुई थी । उस संबंध में बातचीत करने के लिए यशवंतरावजी शास्त्रीजी के साथ ताश्कंद गये थे ।  बातचीत होने पर शांति समझौते पर हस्ताक्षर हुए । उसके बाद शास्त्रीजी विश्रांति के लिए अपने कमरे में गये, वहाँ हृदय विकास का झटका आनेसे उनका प्राणोत्क्रमण हुआ ।  यशवंतरावजी उनका पार्थिव देह लेकर भारत में आये । भारत के समर्थ रक्षा-मंत्री के रूप में भारत-पाक युद्ध के फैसले से उनकी प्रतिमा प्रकाशमान बनी । सेना में जवानों के और अधिकारियों के मन में उनके बारे में चरम सीमा का आदर और आत्मीयता बढ गयी ।

लाल बहादूर शास्त्री के निधन के बाद यशवंतरावजी को प्रधानमंत्री बनने का मौका आया था । उन्होंने इंदिरा गांधी को अपना समर्थन दिया । फिर वे इंदिरा गांधीजी के मंत्रिमंडल मे रक्षा मंत्री हो गये ।

१९६३ के अप्रैल महीने में तुलजाभवानीदेवी के दर्शन के लिए यशवंतरावजी गये थे ।  तुलजापूर की सभा में भाषण करते हुए संरक्षण का अर्थ स्पष्ट करते हुए संरक्षण की व्याख्या स्पष्ट की - 'भारत का रक्षण करना है इसका अर्थ भारत ने जिन नवीन तत्त्वों की हिफाजत की है, जिन तत्त्वों के बल पर अपना स्वातंत्र्य खडा किया है, उन तत्त्वों का और स्वातंत्र्य का हमें रक्षण करना है । प्रसंग आया तो हमें अपने प्राण देकर अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए ।' इस भाषण से स्पष्ट होता है कि रक्षा मंत्री यशवंतरावजी ने भारत के लोगों में राष्ट्रवाद, संरक्षण और सामाजिकता के विषय में प्रखरता की हिफाजत करने का प्रयत्‍न किया है ।

रक्षा मंत्री यशवंतराव चव्हाण बातों पर ध्यान देते हैं । कि हिन्दुस्थान एक राष्ट्र बना हुआ है और कितने भी आर्थिक संकट आये तो हम उनसे मुकाबला कर सकते हैं, यह बात भारतीय तरुणों को अन्य राष्ट्रोंके सामने लानी चाहिए । उनकी देशभक्ति की सच्ची कसौटी उनके बर्ताव से लगेगी । केवल नेता पर अथवा पक्ष पर निर्भर न रहकर हर एक सुज्ञ नागरिक को राष्ट्र निर्माण के लिए समर्पित होना चाहिए ।

सुज्ञ नागरिक को सरकार पर निर्भर रहना राष्ट्रीय हित की बात नहीं है । राष्ट्र के सामने विशेषतः अंतर्गत संरक्षण यह कठिन प्रश्न बना हुआ है । यह बात हमे स्वीकार करनी पडेगी । अब राष्ट्रीय संरक्षण यह एक सुज्ञ नागरिकों का भाग है । उसके लिए तत्पर रहना काल की जरूरत है ।

इ.स. १९६२ में चीन की ओर से भारत का हुआ मानहानिक पराभव से प्रधानमंत्री नेहरूजी पूर्णतः वैचारिक दृष्टि से चकरा गये थे । इस समय श्री. यशवंतराव चव्हाण ने रक्षा मंत्री पद के सूत्र अपने हाथ में लिये । यशवंतरावजी एक उत्कृष्ट संरक्षक और विचारक थे ।  उन्होंने संरक्षण और सामाजिकता के संबंध में जो भाषण किये थे, वे बहुध्रुवीय थे ।  जागतिक राजनीति के काल में भारतीय नागरिकों के लिए मार्गदर्शक थे ।

रक्षा मंत्री यशवंतरावजी ने देश की सुरक्षा के लिए जो अद्वितीय कार्य किया है, वह आधुनिक भारत के इतिहास में सुवर्णअक्षरों से लिखा जायेगा । मेरी दृष्टि से यह महाराष्ट्र का सह्याद्रि श्री. यशवंतराव चव्हाण इतिहास का सुनहरा पन्ना है ।  यशवंतरावजी के कर्तृत्व के कारण भारतीय जनता हमेशा उनका स्मरण करती रहेगी ।